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एसआइटी ने हाईकोर्ट से कहा, छात्रवृत्ति घोटाला जांच मामले में समाज कल्याण विभाग के अधिकारी नहीं कर रहे सहयोग

देहरादून व हरिद्वार जिले के एसआईटी प्रमुख टीसी मंजूनाथ ने कोर्ट को अवगत कराया कि जांच में समाज कल्याण विभाग द्वारा सहयोग नहीं किया जा रहा जिस कारण जांच में विलम्ब हो रहा है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 04 Mar 2020 03:39 PM (IST)Updated: Wed, 04 Mar 2020 08:58 PM (IST)
एसआइटी ने हाईकोर्ट से कहा, छात्रवृत्ति घोटाला जांच मामले में समाज कल्याण विभाग के अधिकारी नहीं कर रहे सहयोग
एसआइटी ने हाईकोर्ट से कहा, छात्रवृत्ति घोटाला जांच मामले में समाज कल्याण विभाग के अधिकारी नहीं कर रहे सहयोग

नैनीताल, जेएनएन : हाई कोर्ट ने करीब पांच सौ करोड़ रुपये से अधिक के चर्चित छात्रवृत्ति घोटाला मामले में सुनवाई की। इस दौरान देहरादून व हरिद्वार जिले के एसआइटी प्रमुख टीसी मंजूनाथ ने कोर्ट को अवगत कराया गया कि जांच में समाज कल्याण विभाग द्वारा सहयोग नहीं किया जा रहा है, जिस कारण जांच में विलंब हो रहा है।  कोर्ट ने इस पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए समाज कल्याण सचिव को 13 मार्च तक शपथ पत्र के साथ जवाब दाखिल कर जवाब पेश करने को कहा है। जवाब दाखिल न करने पर सचिव को व्यक्तिगत रूप से पेश होना होगा।

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मामले की सुनवाई के दौरान पूर्व में तमाम कॉलेजों द्वारा कोर्ट को अवगत कराया गया कि वह छात्रवृत्ति की रकम जमा करना चाहते हैं परंतु एसआइटी जमा नही कर रही है। बुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में मामले पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान एसआइटी प्रभारी मंजूनाथ हाई कोर्ट में पेश हुए। इस दौरान कॉलेजों के पैसा जमा नहीं करने के सवाल पर एसआइटी प्रभारी द्वारा बताया कि यह पैसा जमा कराने के लिए उनके पास कोई अलग से खाता नहीं है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव वित्त को आदेशित किया है कि पैसा जमा कराने वाले संस्थानों के लिए अलग से खाता खोला जाए। जिसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 16 मार्च की तिथि नियत की है।

देहरादून निवासी राच्य आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान व अन्य ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि प्रदेश में अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों की छात्रवृत्ति का घोटाला वर्ष 2005 से किया जा रहा है। यह घोटाला करीब पांच सौ करोड़ रुपये से अधिक है, इसलिए इस मामले की जांच सीबीआइ से कराई जाए। कहा कि छात्रवृति का पैसा छात्रों के बजाय स्कूलों को दिया गया।

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