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भारतीयों की जमीन हड़पने को नेपाल चल रहा है चाल, व्यास घाटी के ग्रामीणों ने इस डर से छोड़ी थी जमीन

भारत नेपाल सीमा पर काली नदी पार नेपाली भू भाग में भारतीय ग्रामीणों की हजारों हेक्टेयर भूमि हैं। जिसके दस्तावेज भारतीय नागरिकों के पास है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 29 Jun 2020 08:41 AM (IST)Updated: Mon, 29 Jun 2020 04:58 PM (IST)
भारतीयों की जमीन हड़पने को नेपाल चल रहा है चाल, व्यास घाटी के ग्रामीणों ने इस डर से छोड़ी थी जमीन
भारतीयों की जमीन हड़पने को नेपाल चल रहा है चाल, व्यास घाटी के ग्रामीणों ने इस डर से छोड़ी थी जमीन

तेज सिंह गुंज्याल, धारचूला : भारत नेपाल सीमा पर काली नदी पार नेपाली भू भाग में भारतीय ग्रामीणों की हजारों हेक्टेयर भूमि हैं। जिसके दस्तावेज भारतीय नागरिकों के पास है। नेपाल सीमा से लगे भारत के व्यास घाटी के सात गांवों के ग्रामीणों को माओवाद के दौरान अपनी जायदाद भय के मारे छोडऩी पड़ी। भारत के ग्रामीणों की इस भूमि को हड़पने के लिए नेपाल सरकार ने कालापानी, लिपुलेख का मामला उठा कर ध्यान भटकाने का प्रयास कर रहा है।

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वर्ष 1815 की सुगोली संधि में अंग्रेजों और नेपाल के बीच हुई संधि में कालापानी से निकलने वाली काली नदी को भारत-नेपाल की सीमा तय कर दी गई थी। इस दौरान भारत का विस्तृत भू भाग नेपाल के हिस्से में चला गया। जिसमें अस्कोट के पाल राजवंश के तत्कालीन राजा को सुगोली बुलाकर उनकी भूमि का मुआवजा दिलाया था। सीमा तय होने के बाद वर्तमान नेपाल में भूमिधर रहे व्यास घाटी के ग्रामीण अपनी भूमि पर खेती बाड़ी करते रहे। यहां तक कि भारत के इन ग्रामीणों के मकान, खेत व अन्य जायदाद नेपाल में है। वर्तमान में भारतीय ग्रामीण अपनी भूमि से वंचित हैं। कुछ ही लोग जो नेपाल में बस चुके हैं वे अपनी भूमि का उपयोग कर रहे हैं।

माओवाद के समय छोडऩी पड़ी अपनी खेती

नेपाल में माओवाद के दौर में भारतीय नागरिकों अपनी खेती छोडऩी पड़ी थी। माओवादियों द्वारा परेशान किए जाने के बाद भारतीय ग्रामीणों ने वर्तमान नेपाल में स्थित अपनी भूमि पर खेती करना बंद किया। इसके बाद अधिकांश ग्रामीणों ने खेती के लिए नेपाल स्थित अपने खेेतों तक नहीं जा पाए। इसी दौरान नेपाल में कालापानी विवाद को जन्म दिया जाने लगा। वर्तमान में कालापानी, लिपुलेख, लिम्पिया धुरा तक के क्षेत्र को नेपाल के नक्शे में शामिल कर विवाद पैदा कर भारत वालों की जमीन हथियाने का प्रयास हो रहा है।

भारत के व्यास घाटी के सात गांवों की भूमि है नेपाल में

चीन और नेपाल सीमा से लगे व्यास घाटी के सात गांवों बूंदी, गब्र्यांग, नपलच्यू, गुंजी, नाबी, रोंगकोंग और कुटी के ग्रामीणों की कृषि भूमि नेपाल में है। दुलीगाड़ा, स्याप्ता और रायसुंग में नाबी, कुटी, रोंगकोंग, नपलच्यु के ग्रामीणों की भूमि है। भारत के बूंदी गांव के सामने की नेपाल की भूमि भारत के बुदियालों की है। नेपाल के छांगरू में अप्पी क्षेत्र में भारत के गब्र्यालों की भूमि है। गुंजी के सामने कव्वा क्षेत्र में गुंजी के गुंज्यालों की भूमि है। जिस कालापानी, ऊं पर्वत, नाबीढांग, लिपुलेख को नेपाल अपने नक्शे में शामिल कर रहा है वह सारी भूमि गुंजी के गुंज्यालों और गब्र्यांग के गब्र्यालों की है।

नेपाल सरकार पैदल पुल नहीं खोल रही

एके शुक्ला, एसडीएम, धारचूला ने बताया कि नेपाल में भारत के व्यास के ग्रामीणों की भूमि है जिसके प्रमाण अस्कोट रियासत के उत्तराधिकारी के पास है। अंग्रेजों ने सुगोली संधि के बाद यह भूमि नेपाल को दी है। जिसमें कुछ भूमि का तो अंग्रेजों ने अस्कोट के तत्कालीन राजा को मुआवजा दिया था। इसके प्रमाण हैं। चीन के इशारे पर काठमांडू यह कर रहा है। भारत सीमा से लगे नेपाल में शांति है। किसी तरह का कोई तनाव नहीं है। सीमा पर रोटी, बेटी का संबंध है। किसी तरह का कोई तनाव नहीं है। नेपाल सरकार पैदल पुल नहीं खोल रही है। 

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