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    जिस सीमा पर चीन-नेपाल फोर जी यूज करते हैं, वहां भारतीयों का नेटवर्क तक नहीं मिलता

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 14 Mar 2019 12:12 PM (IST)

    संचार क्रांति के इस दौर में भी चीन और नेपाल सीमा से लगे लोगों को अपने चहेतों की खबर आज भी चिट्ठी के जरिए मिलती है।

    जिस सीमा पर चीन-नेपाल फोर जी यूज करते हैं, वहां भारतीयों का नेटवर्क तक नहीं मिलता

    पिथौरागढ़, जेएनएन : संचार क्रांति के इस दौर में भी चीन और नेपाल सीमा से लगे लोगों को अपनों की खबर आज भी चिट्ठी के जरिए मिलती है। जब पूरी दुनिया सोशल मीडिया और फोर जी के दौर से गुजर रही है, स्मार्ट फोन लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं, ऐसे में खत के भरोसे रहने वाले लोगों की मुश्किलों को आसानी से समझा जा सकता है। जहां नेटवर्क नहीं पहुंचा है वहां सड़कें क्या खाक बनी होंगी। मूलभूत सुविधाओं का क्या हाल होगा? कैसे लोग अपनी समस्याएं अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों तक पहुंचाते होंगे? अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन सीमांत के लोगों को ऐसे ही मुसीबतों से गुजरना पड़ रहा है।

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    समान भौगोलिक स्थिति के बावजूद ये हैं हालात
    सीमांत जिले की चीन और नेपाल सीमा पर बसे लोगों को आज भी संचार सेवा उपलब्ध नहीं हो पाई है। लंबे इंतजार के बाद भी सिस्टम इन क्षेत्रों को संचार सुविधा से जोडऩे में विफल रही है। ताज्जुब की बात यह कि लगभग समान भौगोलिक स्थिति वाले नेपाल और तिब्बत चीन में फोर जी सेवा चल रही है। 

    सीमा के 49 गांव हैं संचार विहीन
    पिथौरागढ़ जिले की धारचूला विधानसभा क्षेत्र में धारचूला तहसील की लगभग सौ किमी सीमा नेपाल से व तिब्बत से लगती है। मुनस्यारी तहसील की लंबी सीमा चीन से है। यह सारा क्षेत्र उच्च हिमालयी है। इन क्षेत्रों में 31 गांव शामिल हैं। यह सभी गांव संचार से विहीन हैं। मुनस्यारी तहसील के तल्ला जोहार क्षेत्र के लगभग 18 गांव संचार से विहीन हैं। इसी तरह डीडीहाट विधानसभा क्षेत्र के तल्ला बगड़ से लेकर पिथौरागढ़ विधानसभा क्षेत्र में पंचेश्वर तक की नेपाल सीमा पर भी संचार सेवा नहीं के बराबर है।

    जवानों के परिवारों को रहता है खत का इंतजार
    सेना के जवान भी अपनी खैरियत खतों में ही भेजते हैं, जिसका परिजनों को हर वक्त इंतजार रहता है। नेटवर्ट काम न करने के कारण वे फोन तक पर बातचीत नहीं कर पाते हैं। कभी नेटवर्क आ भी जाता है तो बार-बार कनेक्टशन टूटने कारण बातचीत नहीं हो पाती है।

    नेटवर्क के लिए पहाड़ी पर चढ़ते हैं लोग
    तल्लाबगड़ से लेकर पंचेश्वर तक कुछ क्षेत्रों में यदा-कदा बीएसएनएल के सिग्नल मिलते हैं। फोन करने के लिए उपभोक्ताओं को या तो पेड़ों पर या फिर गांव से दो से तीन सौ मीटर ऊपर पहाड़ी पर चढऩा पड़ता है। कालापानी से पंचेश्वर तक की लगभग दो सौ किमी लंबी नेपाल सीमा पर स्थित गांवों के ग्रामीण बात करने को नेपाली सिम का प्रयोग करते हैं। वहीं मुनस्यारी के संचार विहीन क्षेत्र में कोई विकल्प नहीं है।

    स्वीकृत हैं टावर मगर...
    विभाग व जनप्रतिनिधियों के दावे को मानें तो धारचूला के चीन सीमा तक के क्षेत्र को संचार सेवा से जोडऩे के लिए व अन्य गांवों के लिए बारह मोबाइल टॉवर स्वीकृत हैं। बीएसएनएल की टीम सर्वे भी कर चुकी है। हकीकत यह है कि कहीं पर भी टावर लगने की प्रक्रिया प्रारंभ नहीं हो सकी है।

    देश का राजस्व जा रहा नेपाल की संचार कंपनियों को
    नेपाल सीमा से लगे अधिकांश गांव बड़े हैं। पूरी सीमा में हजारों की संख्या में उपभोक्ता हैं। देश की संचार सेवा नहीं होने से अधिसंख्य उपभोक्ता नेपाली सिम का प्रयोग करते हैं। जिसका राजस्व भी नेपाली संचार कंपनियों को मिलता है। जिन गांवों तक भारत की संचार कंपनियों के सिग्नल नहीं पहुंचते हैं उन गांवों में नेपाली संचार कंपनियों के सिग्नल सहजता से पहुंचते हैं। 

    इंतजार करते-करते थक चुकी है जनता
    संचार विहीन क्षेत्रों में संचार का इंतजार करते-करते जनता थक चुकी है। बीते सालों में इसके लिए बड़े आंदोलन हो चुके हैं। धारचूला के कांग्रेस विधायक हरीश धामी तो संचार सुविधा के लिए जंतर-मंतर में तक धरना दे चुके हैं।

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