दस वर्षों में तेजी से गांव खाली हुए पहाड़ के गांव, उत्तराखंड में 12 लाख लोगों ने किया पलायन
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में पिछले दस वर्षों से तेजी से गांव खाली हो रहे हैं। यहां की कुल 3946 ग्राम पंचायतें पूरी तरह खाली हो चुकी हैं। इन गांवों की करीब 12 लाख की आबादी पलायन कर चु
हल्द्वानी, जेएनएन : प्रदेश में पिछले दस वर्षों से तेजी से गांव खाली हो रहे हैं। प्रदेश की कुल 3946 ग्राम पंचायतें पूरी तरह खाली हो चुकी हैं। इन गांवों की लगभग 12 लाख की आबादी पलायन कर चुकी है। कुमांऊ के 6 जिलों में पिछले दस सालों में 1665 ग्राम पंचायतें पूरी तरह खाली हो चुकी हैं। यहां रहने वाली करीब साढ़े चार लाख की आबादी दूसरे शहरों, राच्यों में पलायन कर चुकी है।
यह है हमारे पहाड़ की कड़वी हकीकत। पलायन का दर्द बयां करती यह तस्वीर आज की नहीं है। अलग राज्य बनने के बाद हमने जो खुशहाल व समृद्ध पहाड़ के सपने देखे थे वह सब इन आंकड़ों से धूमिल लगते हैं। पहाड़ के दूरस्थ गांवों तक बिजली, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं हमारे हुक्मरान पहुंचा ही नहीं सके। नतीजा यह हुआ कि इन सुविधाओं के लिए तरस रहे गांव वालों ने गांव ही छोडऩे में भलाई समझी। रोजगार के संसाधन न होने से युवाओं ने मैदानी क्षेत्र या फिर उप्र, दिल्ली, मुम्बई जैसे बड़े शहरों का रुख किया और अधिकांश वहीं के होकर रह गए। समस्या इतनी ही नहीं है, साल दर साल पहाड़ के गांव खाली होते जा रहे हैं। सरकार के ही आंकड़े इस सच्चाई का आइना दिखाते हैं, बावजूद इसके पलायन के दंश को खत्म करने के दिली प्रयास आज तक नहीं दिखे। फिर चाहे सत्ता पर बैठने वाली पार्टी कांग्रेस रही हो या भाजपा।
आओ फिर बुला रहा है अपना पहाड़
वीरान होते पहाड़ के घर फिर से हमें वापस बुला रहे हैं। वहां की ताजी आबोहवा, शुद्ध पानी, ताजे फल व मोटा अनाज सब कुछ फिर से उन्हें बुला रहा जो यह सब छोड़ कर चले गए। दैनिक जागरण इसी मुहिम की शुरुआत कर रहा है। शासन-प्रशासन को जगाने की इस मुहिम में आप भी हमारे साथ आइये। पहाड़ के प्राकृतिक सौंदर्य के बीच लौटने के लिए जरूरत है एक ठोस प्रयास की। बुनियादी सुविधाओं के लिए हुक्मरानों को यह अहसास दिलाने के लिए कि अब तक उन्होंने क्या किया और कितना कुछ करना बांकी है। दैनिक जागरण ऐसे गांवों और लोगों की आवाज बनेगा जो आज वीरान होते जा रहे हैं या फिर हो चुके हैं। इस अभियान को नाम दिया गया है- 'पर्वतीय पलायन: पहाड़ों से दूर होते पहाड़ी'।
अल्मोड़ा ने पलायन का दंश सर्वाधिक झेला
पहाड़ से बढ़ते पलायन को देखते हुए सरकार ने पलायन आयोग बनाया है। जो हर साल पलायन की रिपोर्ट सरकार को सौंपता है। अद्यतन 10 साल का जो आंकड़ा बता रहा है उसमें सबसे अधिक पलायन का दंश अल्मोड़ा जिला झेल रहा हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी भी 1.73 प्रतिशत की दर से घटी है। कुमाऊं में पहाड़ के अन्य जिलों में भी यही हाल है। पहाड़ में रोजगार के संसाधन नहीं होने से पिछले 2009 के बाद सबसे अधिक 50 फीसदी लोगों ने पलायन किया है। इसके बाद कारण शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य मूलभूत सुविधाओं का ना होना है। कुमाऊं के 6 जिलों के 159 गांव ऐसे हैं जो सड़क मार्ग से नही जुड़ पाए हैं। सबसे अधिक पिथौरागढ़ में 53 व चंपावत में 43 गांव ऐसे हैं। वहीं 181 गांवों में पानी की गंभीर समस्या है। पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार रुद्रप्रयाग, टिहरी, पौड़ी, पिथौरागढ़ व अल्मोड़ा जिलों के गांवों से अधिक पलायन हो रहा है। यहां के 50 फीसद लोगों ने आजीविका के लिए गांव छोड़ा। जबकि 73 फीसद ने बेहतर शिक्षा के उद्देश्य से। इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधा के अभाव के चलते करीब 10 फीसद लोग पलायन को विवश हुए। उम्मीद जताई जा रही है कि रिपोर्ट आने के बाद सरकार सकारात्मक कदम उठाएगी। फिलहाल इस दिशा में कोई भी प्रयास दिखाई नही दे रहा है। लोग अपनी बुनियादी जरुरतों के लिए आज भी गांव छोडऩे को मजबूर हो रहे हैं।
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