Move to Jagran APP

साढ़े तीन वर्ष की उम्र में पहली बार गोविंद सिंह को देखा था पिता ने, जानिए पूरा जीवन

श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज का जन्म माता गुजरी की कोख से 22 दिसंबर सन् व 1666 को पटना साहिब में हुआ।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 13 Jan 2019 06:27 PM (IST)Updated: Sun, 13 Jan 2019 06:27 PM (IST)
साढ़े तीन वर्ष की उम्र में पहली बार गोविंद सिंह को देखा था पिता ने, जानिए पूरा जीवन
साढ़े तीन वर्ष की उम्र में पहली बार गोविंद सिंह को देखा था पिता ने, जानिए पूरा जीवन

जीवन सिंह सैनी, बाजपुर : श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज का जन्म माता गुजरी की कोख से 22 दिसंबर सन् व 1666 को पटना साहिब में हुआ। इस समय पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी गुरमत प्रचार के लिए ढाका गए हुए थे। 1670 में आसाम से वापस आकर उन्होंने अपने सुपुत्र को प्रथम बार साढ़े तीन वर्ष बाद देखा। 
पटना में तीर-कमान चलाना, सेना बनाकर बनावटी युद्ध करना इत्यादि खेल खेले जाने के कारण सभी बालक गोविंद राय को सरदार मानते थे। गुरु तेग बहादुर साहिब ने आनंदपुर साहिब जाकर परिवार को भी वहीं बुला लिया। पांच वर्ष की आयु में गुरु जी ने फारसी, हिंदी, संस्कृत, बृज इत्यादि भाषाएं सीखीं। पिता तेग बहादुर ने भविष्य में आने वाले संकटों का मुकाबला करने के लिए गुरु जी को निपुण बना दिया था। 11 नवंबर 1675 में पिता गुरु तेग बहादुर दिल्ली में औरंगजेब द्वारा शहीद कर दिए गए तब गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने अपने पिता की गद्दी नौ वर्ष की अल्पायु में संभाली। गुरु जी ने अपनी शास्त्र विद्या को बढ़ावा दिया तथा 52 कवियों द्वारा वीर रस का साहित्य तैयार किया। सन 1682 में विशाल रणजीत नगाड़ा तैयार करवाया गया। 1684 से 1687 तक नाहन में रहते हुये राजा मेदनी प्रकाश तथा श्रीनगर के राजा फतेहशाह की सुलह करवाई। 1685 में यमुना के किनारे पौंटा साहिब गुरुद्वारा बनवाया यहीं पर आपने जपु साहिब सवैये तथा अकाल उसत बाणियों की रचना की। पीर सैयद बुद्धू शाह उनके सेवक बने जिन्होंने पांच सौ पठान गुरु जी की फौज को अर्पित किया।

loksabha election banner

15 अप्रैल 1687 को भंगाणी का युद्ध हुआ। जिसमें कहिलूर के राजा भीमचंद ने अन्य राजाओं को साथ लेकर गुरु जी पर आक्रमण किया। पौंटा साहिब से सात मील पूर्व की तरफ यमुना और गिरी नदियों के बीच के स्थान भंगाणी पर युद्घ हुआ। इस युद्घ में गुरु जी की बुआ बीबी वीरों जी के पांचों पुत्रों तथा मामा कृपाल चंद जी ने हिस्सा लिया। गुरु जी के सिक्ख महंत कृपालदास जी उदासी ने भारी लाठी द्वारा हयात खान का सिर फोड़ दिया, इसमें गुरु जी की जीत हुई।

भंगाणी के युद्घ के बाद गुरु जी अक्टूबर 1687 में वापिस आनंदपुर आ गए। सन 1683 में नदौन का युद्घ जम्मू के नवाब अलफ खान के साथ हुआ। सन 1689 में हुसैनी युद्घ हुआ। दोनों युद्धों में गुरु जी की जीत हुई और पहाड़ी राजाओं को मुंह की खानी पड़ी। सन 1697 में भाई नंद लाल जी गुरु गोविंद सिंह के सिंघ बने। सन 1699 को बैसाखी के दिन गुरु जी ने केसगढ़ के स्थान पर पांच प्यारों को अमृत छकाकर खालसा तैयार किया। सन 1700 से लेकर 1703 तक पहाड़ी राजाओं ने आनंदपुर साहिब में चार लड़ाइयां लड़ीं गुरु जी की प्रत्येक बार जीत हुई। सन 1704 के मई महीने में आनंदपुर साहिब की आखिरी लड़ाई लड़ी गई बहुत समय तक युद्घ होता रहा। सरहद के सूबेदार वजीर खां भी फौज लेकर पहुंच गया था। मुगल फौज ने 6 महीने आनंदपुर साहिब को घेरे में रखा किले में भोजन समाप्त हो गया। अंत में 6-7 पोष की मध्यरात्रि को गुरु जी ने किला छोड़ा। सिंघ अभी कीरतपुर से गुजर ही रहे थे कि वैरी दल सिंहों पर टूट पड़ा। सरसा नदी के किनारे भयानक जंग हुई माता गुजरी जी छोटे साहिबजादों समेत गुरु जी से बिछुड़ गईं।

चमकौर युद्ध : 40 सिंहों ने दस लाख फौज का मुकाबला किया
गुरु जी चमकौर साहिब पहुंचे जहां 8 पौष संवत 1761 को चमकौर का युद्घ हुआ। 40 सिंहों ने दस लाख फौज का मुकाबला बड़ी वीरता से किया। बड़े साहिबजादे अजीत सिंह तथा बाबा जुझार सिंह दुश्मन से लड़ते हुए शहीद हो गए व पंच प्यारों के हुक्म से गुरु गोविंद सिंह जी महाराज माछीवाड़े के जंगलों में जा पहुंचे तथा 13 पौष संवत 1761 को छोटे साहिबजादों द्वारा अपने आप को दीवारों में चिनवाकर शहादत हासिल की।

बैसाखी के दिन खालसा पंथ की हुई स्थापना
गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने 13 अप्रैल 1699 में बैसाखी वाले दिन खालसा पंथ की स्थापना की व 7 अक्टूबर 1708 को गुरु जी ज्योति ज्योत समा गए। उससे पूर्व उन्होंने हुक्म दिया था कि आज से पंथ के गुरु गं्रथ साहिब ही गुरु होंगे। अत: अपना सर्वस्व न्यौछावर कर गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने जहां ङ्क्षहदुत्व की रक्षा की, वहीं न्यारा खालसा पंथ की संरचना की।

यह भी पढ़ें : स्वामी विवेकानंद के कदम पड़ते ही धन्य हो गई लोहाघाट की धरा
यह भी पढ़ें : उत्तरायणी पर ही हुआ था कुली बेगार कुप्रथा का अंत


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.