इस ग्रह पर मिली अति दुर्गंध वाली हाइड्रोजन सल्फाइड गैस
हमारे सातवें नंबर के ग्रह यूरेनस पर इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने अत्यंत दुर्गंध वाली गैस खोज निकाली है। इस गैस का नाम हाइड्रोजन सल्फाइड है।
नैनीताल, [रमेश चंद्रा]: इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने हमारे सातवें नंबर के ग्रह यूरेनस पर ऐसी गैस खोज निकाली है, जो अत्यंत दुर्गंध वाली है। इस गैस का नाम हाइड्रोजन सल्फाइड है। वैज्ञानिकों ने सड़े अंडों जैसी तीव्र दुर्गंध वाली इस गैस की मात्रा 0.4 से 8.8 पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) आंकी है। इस खोज से सौरमंडल के निर्माण के समय की परिस्थितियों को समझने में मदद मिल सकती है।
भारतीय तारा संस्थान बंगलुरु के प्रोफेसर आरसी कपूर ने बताया कि वैज्ञानिकों ने हवाई द्वीप समूह में स्थापित जेमिनी नॉर्थ दूरदर्शी के जरिए यूरेनस ग्रह के वातारण का आकलन किया। यूरेनस के वातावरण में हाइड्रोजन सल्फाइड गैस की मात्रा अमोनिया से काफी अधिक पाई गई। इसकी तुलना में सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति व शनि की बात करें तो इन दोनों ग्रहों के उपरी बादलों वाले क्षेत्र में अमोनिया गैस फैली हुई है, जो वहां बर्फ के रूप में मौजूद है।
वैज्ञानिकों का अनुमान था कि यूरेनस के वातावरण में भी अमोनिया की मात्रा अधिक होगी, परंतु परिणाम इसके उलट निकला। यूरेनस में हाइड्रोजन सल्फाइड की मात्रा शनि के मुकाबले चार गुना अधिक है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह महत्वपूर्ण खोज सौरमंडल के जन्म की परिस्थितियों पर प्रकाश डालने में बेहद मददगार साबित होगी।
धरती जैसा गहरा नीला है यूरेनस
यूरेनस पृथ्वी से अधिक नीले रंग का ग्रह है। कम चमक वाला होने के कारण इसे दूरबीन के जरिए ही बखूबी देखा जा सकता है। आकार में पृथ्वी से चार गुना और भार में 14 गुना अधिक है। यह 84 साल में सूर्य की परिक्रमा पूरी कर पाता हैै। इसका अक्ष अपनी कक्षा में 99.8 डिग्री झुका हुआ है। जिस कारण यह अपने पथ में लुढ़कता हुआ चलता है। इसका आधा हिस्सा 42 साल तक सूर्य के सामने रहता है, जबकि दूसरा भाग अंधेरे में डूबा रहता है। जिसके चलते इसका मौसम अन्य ग्रहों की तुलना में बिलकुल अलग है। इस ग्रह के वातावरण में 83 फीसद हाइड्रोजन, 15 फीसद हीलियम व 2.3 प्रतिशत मीथेन समेत अन्य गैस हैं।
यूरेनस के रिंग्स की खोज में एरीज के वैज्ञानिकों का नाम भी
अपने छल्लों की खूबसूरती को लेकर खास पहचान रखने वाले शनि ग्रह की तरह यूरेनस में भी छल्ले हैं। यूरेनस की छल्लों की खोज में भारत के नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज), राजकीय वेदशाला उत्तर प्रदेश व भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बंगलुरु का अहम योगदान रहा है। वर्ष 1977 में एरीज के वैज्ञानिक डा. एचएस मेहरा व डॉ. एसके गुप्ता ने इसके छल्लों की खोज में अहम शोध किए थे। इनके अलावा एरीज के वर्तमान निदेशक डॉ. अनिल कुमार पांडे ने भी लगातार तीन शोध किए और इस महत्वपूर्ण खोज में देश का नाम खगोल विज्ञान की दुनिया में रोशन किया।
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