हाईकोर्ट की टिप्पणी, चपरासियों को न्यायाधीशों से अधिक रियायत पर कैसे मिल रही बिजली
हाईकोर्ट ने ऊर्जा निगम के अधिकारियों-कर्मचारियों को रियायती दरों पर बिजली देने और आम जनता के लिए दरें बढ़ाने के खिलाफ दायर याचिका पर एमडी को दो सप्ताह में जवाब देने को कहा है।
नैनीताल, जेएनएन : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ऊर्जा निगम के अधिकारियों-कर्मचारियों को रियायती दरों पर बिजली देने और आम जनता के लिए दरें बढ़ाने के खिलाफ दायर याचिका पर एमडी को दो सप्ताह में जवाब देने को कहा है। मंगलवार को कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि चपरासियों को न्यायाधीशों से अधिक रियायती बिजली कैसे दी जा रही है। यही नहीं अभी तक निगम द्वारा स्पष्ट जवाब पेश नहीं करने पर भी कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है।
ऊर्जा निगम ने तैयार किया है ये प्रस्ताव
मंगलवार को देहरादून आरटीआइ क्लब की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान ऊर्जा निगम की ओर से बताया गया कि बोर्ड की मीटिंग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को सालाना आठ हजार यूनिट, तृतीय श्रेणी को दस हजार व प्रथम श्रेणी कार्मिकों को 11 व 12 हजार यूनिट बिजली देने का प्रस्ताव रखा गया है। अगर ये कार्मिक इससे अधिक बिजली खर्च करते हैं तो वह 50 प्रतिशत की दर के हिसाब से भुगतान करेंगे। हालांकि इस प्रस्ताव को अब तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है।
न्यायाधीशों से अधिक चपराशियाें को दी जा रही बिजली
इस पर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि है कि देश के सभी न्यायाधीशों को साल में दस हजार यूनिट बिजली दी जाती है और इससे अधिक खर्च करने पर उनसे प्रचलित दर पर बिल वसूला जाता है। जबकि यहां चपरासी को न्यायाधीशों से अधिक बिजली दी जा रही है।
ऊर्जा प्रदेश होने के बावजूद जनता पर बिजली का भार
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि हिमाचल प्रदेश ऊर्जा प्रदेश नहीं है, मगर वहां एक रुपया प्रति यूनिट बिजली है। उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश होते हुए भी यहां आम जनता से साढ़े चार रुपया प्रति यूनिट के हिसाब से बिल वसूला जाता है। यही नहीं, हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों को सौ से दो सौ यूनिट बिजली सब्सिडी में दी जाती है, जबकि उत्तराखंड में आठ हजार से बारह हजार यूनिट। कोर्ट ने इस पर दो सप्ताह में एमडी से जवाब पेश करने को कहा है। साथ ही अगली सुनवाई की तिथि दस फरवरी के लिए नियत कर दी।
कोर्ट ने एमडी से मांगा इनका जवाब
- अभी तक कितने कर्मचारियों के घरों में मीटर लग चुके हैं।
- उन्हें साल में कितनी यूनिट बिजली दी जाती है और किस दर से।
- 2018-19 में कितना राजस्व वसूला गया और निगम को कितना घाटा हुआ।
अधिकारियों के बिल का जनता पर पड़ रहा बोझ
जनहित याचिका में कहा गया है कि सरकार ऊर्जा निगम के अधिकारी-कर्मचारियों से एक महीने का बिल मात्र 400 से 500 रुपये व इनके आश्रितों से 100 रुपये वसूला जा रहा है। जबकि इनका बिल लाखों में आता है, जिसका बोझ सीधे जनता पर पड़ रहा है। याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य के तमाम ऊर्जा निगम अधिकारियों के घर पर मीटर तक नहीं लगे हैं, जो लगे हैं वह खराब हैं। उदाहरण के तौर पर जनरल मैनेजर का 25 माह का बिजली बिल चार लाख 20 हजार आया था और उनके बिजली के मीटर की रीडिंग 2005 से 2016 तक नही ली गई।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।