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चम्पावत में ब्रोकली बदलेगी काश्तकारों की तकदीर, उत्‍पादन का प्रशिक्षण देकर उपलब्‍ध कराया जाएगा बीज

पौष्टिक गुणों से भरपूर और स्वादिष्ट सलाद के रूप में उपयोग होने वाली ब्रोकली अब जिले के काश्तकारों की आजीविका का साधन बनेगी।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 17 Jan 2020 03:49 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jan 2020 03:49 PM (IST)
चम्पावत में ब्रोकली बदलेगी काश्तकारों की तकदीर, उत्‍पादन का प्रशिक्षण देकर उपलब्‍ध कराया जाएगा बीज
चम्पावत में ब्रोकली बदलेगी काश्तकारों की तकदीर, उत्‍पादन का प्रशिक्षण देकर उपलब्‍ध कराया जाएगा बीज

म्पावत, विनोद कुमार चतुर्वेदी : पौष्टिक गुणों से भरपूर और स्वादिष्ट सलाद के रूप में उपयोग होने वाली ब्रोकली अब जिले के काश्तकारों की आजीविका का साधन बनेगी। इसके लिए कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र काश्तकारों को उन्नत बीज और उत्पादन का तकनीकि का प्रशिक्षण देगा। जिले में अब तक गिने चुने क्षेत्रों में चुनिंदा काश्तकार ही ब्रोकली पैदा कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र की इस पहल से काश्तकार बड़े पैमाने पर ब्रोकली का उत्पादन कर उसे बाजार में बेच सकेंगे।      

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100 काश्तकारों को ब्रोकली उत्पादन का दिया जाएगा प्रशिक्षण

कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र सुईं में विगत दस वर्षों से ब्रोकली पैदा की जा रही है। अनुसंधान का लाभ काश्तकारों तक पहुंचाने के लिए केंद्र की ओर से जिले के 100 प्रगतिशील काश्तकारों को ब्रोकली उत्पादन का प्रशिक्षण देकर उन्हें पर्वतीय परिवेश में पैदा होने वाला बीज उपलब्ध कराया जा रहा है लेकिन लाभ कम होने के कारण अधिकांश काश्तकार इसके उत्पादन में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। केंद्र ने अब 100 और चुनिंदा काश्तकारों को ब्रोकली उत्पादन का तकनीकि प्रशिक्षण देने के साथ उन्हें बीज उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है।

गोभी के मुकाबले कम वजन का होता है ब्रोकली

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉ. एमपी सिंह ने बताया कि गोभी के मुकाबले ब्रोकली का वजन काफी कम होने के कारण काश्तकार इसे लाभ का सौदा नहीं मान रहे हैं जिसके कारण इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं हो पा रहा है। उन्होंने बताया कि ब्रोकली के एक फूल का अधिकतम वजन 400 ग्राम तक हो सकता है जबकि गोभी का वजन अमूमन डेढ से दो किलो या उससे अधिक हो सकता है। इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्र में ब्रोकली का क्रेज न होना भी इसके उत्पादन में कमी की मुख्य वजह है। जबकि सलाद के तौर पर खाई जानी वाली ब्रोकली पौष्टिक गुणों से भी भरपूर है। उन्होंने बताया कि ब्रोकली के प्रति लोगों को जागरूक भी किया जाएगा ताकि लोग इसका अधिक से अधिक सेवन कर सकें।

पॉलीहाउस में होता है अच्छा उत्पादन

ब्रोकली का उत्पादन पॉलीहाउस में काफी अच्छा होता है। पॉलीहाउस के बाहर इसकी खेती करने का पूरा लाभ कास्तकारों को नहीं मिलता। पॉलीहाउस में यह डेढ़ से दो माह के भीतर खाने योग्य हो जाती है। इसका उत्पादन फूल गोभी की तरह ही होता है। पॉलीहाउस में साल भर में इसकी दो खेती की जा सकती हैं।

ब्रोकली खाने के फायदे

ब्रोकली एक सब्जी है जो देखने में फूलगोभी जैसी होती है लेकिन रंग अलग होता है। फूलगोभी केवल सफ़ेद रंग की होती है पर ब्रोकली गाढ़े हरे रंग, बैंगनी और सफ़ेद रंगों में पायी जाती है। यह कच्ची और उबाल कर दोनों तरह से खाई जाती है.कई पौष्टिक गुणों से भरपूर ब्रोकली में कैंसर निरोधी क्षमता भी होती है। कृषि विज्ञान केंद्र की वैज्ञानिक गायत्री देवी ने बताया कि ब्रोकली में कई ऐसे रसायन होते हैं जो कैंसर से लडऩे का काम करते हैं। इसके अलावा कैल्सियम, फास्फोरस और आयरन की मात्रा भी इसमें भरपूर होती है।

पर्वतीय वातावरण के लिए उपयोगी प्रजातियां

पर्वतीय परिवेश के लिए ब्रोकली की ग्रीन मैजिक, एनएस-50, केटीएस-1 और कैप्टन 488 नामक प्रजातियां उपयुक्त हैं। कृषि विज्ञान केंद्र ने इन प्रजातियों का परीक्षण कर इसे यहां की पर्यावरणीय परिस्थिति के अनुकूल पाया है। प्रभारी अधिकारी, कृषि विज्ञान केंद्र सुईं डॉ. एमपी सिंह ने बताया कि  जिले में ब्रोकली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों ने दिलचस्पी ली तो ब्रोकली उत्पादन उनकी आजिविका का प्रमुख साधन बन सकता है। केंद्र की ओर से सौ प्रगतिशील काश्तकारों को उत्पादन का तकनीकि प्रशिक्षण दिया जाएगा।

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