इस बार पर्यटकों को लुभाएंगे अल्पाइन ग्लेशियर, शीतकाल लंबा होने से सीजनल ग्लेशियरों की उम्र बढ़ी
लेशियरों को लेकर तमाम तरह की बातें होती हैं। हिमालय में आने वाले पर्यटकों की पहली इच्छा ग्लेशियर देखने की होती है।
पिथौरागढ़, जेएनएन : ग्लेशियरों को लेकर तमाम तरह की बातें होती हैं। हिमालय में आने वाले पर्यटकों की पहली इच्छा ग्लेशियर देखने की होती है। हिमालय में जहां तक पर्यटक पहुंंच सकता है वहां तक ग्लेशियरों का दीदार कम हो पाता है। ग्रीष्म में आने वाले पर्यटकों को टूटे हुए ग्लेशियरों के खंड नजर आते हैं । इस बार प्रकृति ऐसी मेहरबान हुई है कि मई माह तक उच्च हिमालय में आने वाले पर्यटकों को सीजनल यानि अल्पाइन ग्लेशियरों का दीदार होने वाला है। दीदार ही नहीं अपितु ग्लेशियरों पर चलने का अवसर भी मिलने संकेत हैं।
इस वर्ष बढ़ जाएगी अल्पाइन ग्लेशियरों की उम्र
प्रतिवर्ष शीतकाल में बर्फबारी के चलते उच्च हिमालय में सीजनल ग्लेशियर बनते हैं। उच्च हिमालय के सभी नाले, गधेरे ग्लेशियर के रू प में तब्दील हो जाते हैं। इसके अलावा सारे बुग्याल भी ग्लेशियर बने होते हैं। विगत कई वर्षों से हिमपात कम होने या फिर फरवरी , मार्च माह में हिमपात होने से सीजनल ग्लेशियरों की उम्र कम हो गई थी। देर में हिमपात होने के कारण हल्की गर्मी पड़ते ही पिघलने लगते थे। जब तक पर्यटक उच्च हिमालय में पहुंचते थे तब तक अधिकांश ग्लेशियर पिघल जाते थे। ग्लेशियरों के कुछ खंड ही मार्गों के आसपास नजर आते थे। इस वर्ष लंबे समय बाद शीतकाल की अवधि बढ़ी है। भारी हिमपात से ग्लेशियरों की संख्या ही नहीं अपितु उनकी उम्र भी बढ़ेगी ।
अलग-अलग आकार के होते हैं सीजनल ग्लेशियर
उच्च हिमालय में बनने वाले सीजनल यानि अल्पाइन ग्लेशियरों का आकार अलग -अलग होता है। छोटे ग्लेशियर सौ से डेढ़ सौ मीटर तो बड़े ग्लेशियर पांच सौ मीटर या इससे अधिक के होते हैं। बीते वर्ष मिलम मार्ग में छिरकानी में पांच सौ मीटर का ग्लेशियर बना था । मई माह में लोग इस ग्लेशियर से ही चल कर आगे जा रहे थे। बीते वर्ष छिरकानी में ग्लेशियर अक्टूबर माह में पिघला था। इस वर्ष उच्च हिमालय के जानकारों ने तो कुछ स्थानों पर साल भर सीजनल ग्लेशियर रहने की संभावना जताई है।\
पर्यटकों की पहली पसंद हैं ग्लेशियर
उच्च हिमालय में जाने वाले पर्यटकों की पहली पसंद ग्लेशियर देेखने की होती है। पर्यटक ग्लेशियरों को लेकर उत्सुक रहते हैं। बड़े ग्लेशियरों तक पहुंचना सभी के लिए संभव नहीं होता है। इस बार ग्लेशियर देखने के शौकीनों को ग्लेशिर देखने ही नहीं अपितु उस पर चलने का अवसर मिलने के आसार हैं। विशेषकर दारमा घाटी सीजनल ग्लेशियरों के लिए पर्यटकों के लिए मुफीद साबित होने वाली है। तीन उच्च हिमालयी घाटियों में दारमा घाटी ही मोटर मार्ग से जुड़ी है। जहां पहुंंच पाना सरल होगा।
जल के बड़े स्रोत हैं सीजनल ग्लेशियर
शीतकाल में बनने वाले सीजनल ग्लेशियर जल के बड़े स्रोत माने जाते हैं। गर्मी बढ़ते ही पिघलने लगते हैं, जिससे हिमानी नाले ऊफान पर आ जाते हैं और हिमानी नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है।
सीजनल ग्लेशियरों को कहा जाता है अल्पाइन ग्लेशियर
पर्वतारोही एवं पर्यावरण के जानकार पीएस धर्मशक्तू ने बताया कि आल्पस पर्वत की तर्ज पर बनने वाले इन सीजनल ग्लेशियरों को अल्पाइन ग्लेशियर कहा जाता है। इनकी संख्या काफी अधिक होती है। गर्मी बढ़ते ही ये पिघलते हैं इस वर्ष इनका आकार और बर्फ अधिक होगी जिसके चलते पिघलने में समय लगेगा। पर्यटक इनका दीदार कर सकेंगे।
खलिया ग्लेशियर में मई तक रहेगी बर्फ
ट्रेकर एवं उच्च हिमालय के जानकार सुरेंद्र पवार ने कहा कि मौसम की मेहरबानी से इस वर्ष सीजनल ग्लेशियरों की भरमार होने वाली है। पर्यटन और ट्रेकिंग को लाभ होगा। खलिया ग्लेशियर में मई माह तक बर्फ रहेगी। ग्लेशियर देखने आनेे वाले पर्यटक ग्लेशियरों का दीदार कर सकेंगे।
यह भी पढ़ें : सेना भर्ती के लिए हो जाइए तैयार, 10 जनवरी करें ऑनलाइन आवेदन, 26 फरवरी से रानीखेत में भर्ती मेला
यह भी पढ़ें : सौ साल पहले कुली बेगार प्रथा के विरोध में उत्तराखंड में हुई थी रक्तहीन क्रांति, जानिए