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एक हाथी को बचाने के लिए 174 दिन से से चल रही कवायद, अब तक लाखों रुपए हो चुके खर्च

पांच महीने से लक्ष्मी (हथिनी) निढाल पड़ी है। पैर में संक्रमण है और उसकी जान बचाने के लिए वन विभाग के अफसरों ने ताकत झोंक रखी है। दक्षिण अफ्रीका से तक डॉक्टर बुलाए गए हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 24 Apr 2019 10:11 AM (IST)Updated: Wed, 24 Apr 2019 10:11 AM (IST)
एक हाथी को बचाने के लिए 174 दिन से से चल रही कवायद, अब तक लाखों रुपए हो चुके खर्च
एक हाथी को बचाने के लिए 174 दिन से से चल रही कवायद, अब तक लाखों रुपए हो चुके खर्च

रामनगर, त्रिलोक रावत : किसी जानवर की जिंदगी जंगल के लिए कितनी महत्वपूर्ण है, यह जंगलात से पूछिए। पांच महीने हो गए। लक्ष्मी (हथिनी) निढाल पड़ी है। पैर में संक्रमण है और उसकी जान बचाने के लिए वन विभाग के अफसरों ने पूरी ताकत झोंक रखी है। इलाज के लिए दक्षिण अफ्रीका से तक डॉक्टर बुलाए गए हैं। प्रतिमाह एक लाख 60 हजार रुपये उसके इलाज में खर्च किया जा रहा है और अभी तक लक्ष्मी को मौत के मुंह से बचाने के लिए करीब आठ लाख रुपये वन विभाग खर्च कर चुका है। देश-दुनिया में मशहूर कॉर्बेट नेशनल पार्क के गढ़ और उत्तराखंड में यह अपने तरह का पहला 'ऑपरेशन' है जब किसी वन्यजीव की जान की खातिर पूरा वन विभाग हर मोर्चे पर डटकर खड़ा है। मंगलवार 23 अप्रैल को इस ऑपरेशन को 174 दिन पूरे हो गए हैं। डॉक्टर 24 घंटे निगरानी कर रहे हैं और इंतजार उस पल का है, जब लक्ष्मी स्वस्थ्य होकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए।

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56 घंटे तक हथिनी को क्रेन के सहारे उठाए रखा

पिछले साल दस अगस्त को रामनगर वन प्रभाग ने ढिकुली स्थित रिसॉर्ट से लक्ष्मी नाम की हथिनी को कब्जे में लिया था। तब उसके पैर का नाखून निकला था। अक्टूबर आखिर में पैर में संक्रमण बढ़ा तो एक नवंबर से उसका इलाज शुरू कर दिया गया। हालत इस कदर खराब हो गई कि वह अपने पैरों पर खड़ी तक नहीं हो सकी। वन विभाग को उसे उठाने के लिए के्रन मंगानी पड़ी। पिछले माह उसे आठ घंटे तक के्रन के सहारे खड़ा किया गया। इसके बाद 18 अपै्रल को भी 48 घंटे तक उसे के्रन से उठाकर खड़ा रखा गया। सोमवार को वह फिर खड़ी नहीं हो सकी और जंगलात ने क्रेन का ही सहारा लिया। अलग-अलग चार दिन 56 घंटे तक हथिनी को के्रन की मदद से खड़ा किया गया।

अब तक का खर्च

नियमित दवा, चिकित्सकों के आने-जाने का खर्च, महावत, हथिनी के लिए लेदर शूज बनाने, जांच के लिए सैंपल लैब में भेजने व रिपोर्ट मंगाने, सुरक्षा, एनर्जी वाले फूड सप्लीमेंट, उसके खाने-पीने के सामान, देखरेख, रोजाना डे्रसिंग आदि पर अब तक आठ लाख खर्च हो चुके हैं। सबसे ज्यादा के्रन पर खर्च किया गया। हथिनी को क्रेन से उठाने के एवज में 30 हजार रुपये भुगतान किया गया है। प्रतिदिन का औसत निकालें तो यह खर्च पांच हजार से ज्यादा आता है।

पशु चिकित्सकों की फौज उतारी

ऐसा पहली बार हुआ जब किसी वन्यजीव के इलाज के लिए वन विभाग को दक्षिण अफ्रीका के चिकित्सक की भी मदद लेनी पड़ी। इसके अलावा आइवीआरआइ बरेली, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून, मथुरा एसओएस, पंतनगर के पशु चिकित्सक अब तक उपचार के लिए पहुंच चुके हैं। स्थानीय व हल्द्वानी-बैलपड़ाव के पशु चिकित्सकों की भी मदद ली जा रही है।

यह दिया जा रहा भोजन

हथिनी को खाने के लिए सुबह व शाम के समय शहद के अलावा एक किलो मक्खन, तीन किलो मंूग दाल, 20 किलो पत्तागोभी, 22 किलो लौकी, दस किलो खीरा, पांच किलो पपीता, गन्ना, चना और गुड़ दिया जा रहा है।   

सुरक्षा के लिए पीआरडी जवान

हथिनी की देखभाल में पूरा वन महकमा जुटा है। सुरक्षा के लिए चार पीआरडी जवान तैनात किए गए हैं। इसके अलावा पूरा वन विभाग के कर्मचारी भी 24 घंटे उस पर निगरानी रख रहे हैं। उसे तीन बार नहलाने के अलावा सौ मीटर की परिधि में घुमाया जा रहा है। 

वन विभाग के लिए परिवार की तरह है लक्ष्‍मी 

डॉ. पराग मधुकर धकाते, वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त बताते हैं कि लक्ष्मी नाम की यह हथिनी वन विभाग के लिए परिवार के सदस्य की तरह है। उस पर कितना खर्च हो रहा है, इसकी चिंता नहीं है। बस उसकी हालत ठीक होनी चाहिए। इसके लिए पूरे चिकित्सक बुला लिए हैं। वन महकमा जुटा है। हमें कामयाबी जरूर मिलेगी।

हालत में सुधार लाने का प्रयास है जारी 

बीपी सिंह, डीएफओ रामनगर वन प्रभाग ने कहा कि अभी तक हथिनी के इलाज में करीब आठ लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है। किसी भी तरह उसकी हालत में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है। 

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