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जंगल में तस्‍करी की सूचना पर ट्यूब से शारदा नदी पार कर रहे थे डीएफओ व एसडीओ, जानिया क्‍या थी घटना

पेड़ कटान की सटीक सूचना मिलने के बावजूद अब अफसर जंगल जाने से परहेज करते हैं। लेकिन पुराने अधिकारी जान की परवाह किए बगैर तुरंत इस तरह की घटनाओं पर एक्शन लेते थे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 16 Sep 2019 10:49 AM (IST)Updated: Tue, 17 Sep 2019 11:04 AM (IST)
जंगल में तस्‍करी की सूचना पर ट्यूब से शारदा नदी पार कर रहे थे डीएफओ व एसडीओ, जानिया क्‍या थी घटना
जंगल में तस्‍करी की सूचना पर ट्यूब से शारदा नदी पार कर रहे थे डीएफओ व एसडीओ, जानिया क्‍या थी घटना

हल्द्वानी, गोविंद बिष्ट : पेड़ कटान की सटीक सूचना मिलने के बावजूद अब अफसर जंगल जाने से परहेज करते हैं। लेकिन पुराने अधिकारी जान की परवाह किए बगैर तुरंत इस तरह की घटनाओं पर एक्शन लेते थे। साल 1987 का एक वाक्या इस बात की तस्दीक करता है। जब कटान की जानकारी मिलने पर डीएफओ व एसडीओ सिर्फ ट्यूब के सहारे शारदा को पार कर जंगल जा रहे थे। और बीच में ट्यूब संग एसडीओ भी पलट गए। तब बड़ी मुश्किल से उन्हें बाहर निकाला गया। 
गौला रेंज में वनक्षेत्राधिकारी का जिम्मा संभाल रहे गणेश चंद्र त्रिपाठी 1987 में शारदा रेंज में तैनात थे। हल्द्वानी डिवीजन के अधीन इस रेंज का जंगल नदी पार नेपाल के जंगल से भी सटा है। एक बार सूचना मिली थी कि नेपाल के लोगों ने बड़ी संख्या में खैर के पेड़ काट दिए। रेंजर त्रिपाठी के मुताबिक प्रमुख वन संरक्षक के पद से सेवानिवृत्त हो चुके श्रीकांत चंदोला तब डीएफओ थे। जबकि एसडीओ का दायित्व चिंतामणि नौटियाल के पास था। खैर कटान की जांच करने की बात कहकर दोनों बड़े अफसर वनकर्मियों संग नेपाल से सटे शारदा रेंज के जंगल को जाने लगे। इससे पहले बीट वाचर को बुलाकर बड़ी गाडिय़ों की ट्यूब में हवा भर डीएफओ व एसडीओ को उसमें बिठाया गया। जिसके बाद बाकि टीम भी धीरे-धीरे नदी पार करने लगी। इस बीच अचानक पानी का वेग बढऩे से एसडीओ नौटियाल ट्यूब समेत पानी में गोते खाने लगे। यह देख वनकर्मियों की सांसे भी फुल गई। बड़ी मुश्किल से उन्हें पानी से बाहर निकाला गया। उसके बाद जीप मंगाकर बनबसा से नेपाल सीमा के अंदर एंट्री कर अफसरों ने मौके पर जाकर पेड़ कटान की जांच की।

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चप्पल को बनाते थे चप्पू
रेंजर त्रिपाठी के मुताबिक उस दौरान वनकर्मी अक्सर ट्यूब के सहारे नेपाल से सटे शारदा रेंज के जंगल में गश्त करने चले जाते थे। पानी के वेग में चप्पलों से चप्पू की तरह काम लिया जाता था। एक तरह से वनकर्मी जान जोखिम में डाल ड्यूटी करते थे।

बार्डर एरिया में तमाम औपचारिकताएं पूरी करना जरूरी
रेंजर गणेश त्रिपाठी के मुताबिक शारदा में पुल नहीं होने की प्रसिद्ध ब्रहृमदेव मंदिर के आसपास का जंगल दो देशों में आता है। बाजार से उपर का जंगल भारत में है। सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए नेपाल बार्डर पर भंसार कटाने के साथ 10-12 किमी खराब रास्ते पर जीप दौड़ानी पड़ती थी। कई बार गाड़ी फंस भी जाती थी। इसलिए नदी को पार कर अपने हिस्से के जंगल पहुंचना आसान लगता था। 

नेपाली हमारी खैर काटते थे
शारदा रेंज के उस हिस्से में खैर व शीशम के पेड़ तब भारी मात्रा में होते थे। लेकिन नेपाली लोग अपना जंगल छोड़ सिर्फ भारतीय खैर के पेड़ों पर चढ़ बकरियों के लिए पत्ते तोडऩे के साथ पेड़ भी काट देते थे। खैर की लकड़ी को बीच से फाडऩे के बाद उसे छप्परनुमा घर की दीवारों पर इस्तेमाल करते थे। मिट्टी से पूरी तरह लेंपने की वजह से पता ही नहीं चलता था कि इसमें खैर की लकड़ी लगी है। 

घटना सितंबर 1987 की : रेंजर  
गणेश चंद्र त्रिपाठी, गौला रेंजर ने बताया कि यह घटना सितंबर 1987 की है। नदी में खतरे का सामना करने बावजूद अधिकारी जंगल निरीक्षण करने गए थे। वनकर्मी अक्सर नदी पार कर जंगल पहुंचते थे।

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