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Covid-19 : क्वारंटाइन सेंटर में फंसे बच्चों को सुरक्षा के साथ शिक्षा भी दें रहीं कांस्टेबल कमला

लॉकडाउन के चलते क्वारंटाइन सेंटर में फंसे बच्चों की देखभाल के लिए वह मां समान हैं तो उनकी पढ़ाई के लिए शिक्षिका भी।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 21 Apr 2020 04:30 PM (IST)Updated: Tue, 21 Apr 2020 04:30 PM (IST)
Covid-19 :  क्वारंटाइन सेंटर में फंसे बच्चों को सुरक्षा के साथ शिक्षा भी दें रहीं कांस्टेबल कमला
Covid-19 : क्वारंटाइन सेंटर में फंसे बच्चों को सुरक्षा के साथ शिक्षा भी दें रहीं कांस्टेबल कमला

खटीमा, राजू मिताड़ी : कोरोना संक्रमण से लोगों की सुरक्षा के लिए वह सिपाही हैं। दूसरी ओर लॉकडाउन के चलते क्वारंटाइन सेंटर में फंसे बच्चों की देखभाल के लिए वह मां समान हैं, तो उनकी पढ़ाई के लिए शिक्षिका भी। ड्यूटी के बाद फिर उसे घर-परिवार भी संभालना है। चम्पावत के बनबसा स्थित क्वारंटाइन सेंटर में ड्यूटी दे रहीं महिला सिपाही कमला चौहान इन दिनों ऐसी ही भूमिका निभा रही हैं। वह यहां ठहराए गए लोगों के बच्चों को निजी खर्च से कापी-किताब, पेंसिल आदि उपलब्ध करा रही हैं। साथ ही ड्यूटी टाइम में बच्चों को पढ़ाकर सही मायने में कोरोना वॉरियर बनकर उभरी हैं। कमला के इसी जज्बे ने उनको खास बना दिया है और महकमा ही नहीं हर कोई उनकी पहल की तारीफ कर रहा है। 

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लॉकडाउन के चलते बनबसा में फंसे लोगों को प्रशासन ने भजनपुर राजकीय इंटर कालेज के राहत शिविर में रोका है। जिसमें उत्तराखंड के अलावा नेपाल व उप्र से 41 पुरुष, 13 महिलाएं एवं 19 बच्चे शामिल हैं। यहां बनबसा थाने में तैनात महिला कांस्टेबल कमला चौहान की ड्यूटी लगी है। कमला की ड्यूटी सुबह छह से दो बजे तक सेंटर के गेट पर रहती है। कमला ने देखा कि तीन से 12 साल तक के बच्चे खेलने के लिए फील्ड में तो कभी गेट तक आ जाते थे। कई बार डांटा तो उदास रहने लगे। 

तभी विचार भी आया कि यदि बच्चे कमरों में बंद रहे और खेल भी नहीं सके तो निश्चित ही उनके मन पर इसका बुरा असर पड़ेगा। लिहाजा इन्हें रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ने का मन बनाया। बच्चे इधर-उधर भी न जा सके और उनका मनोरंजन भी होता रहे। वह सभी बच्चों के लिए पुस्तक, कापी, पेंसिल, रबड़ आदि खुद के खर्च से ले आई और सभी को लिखने और पढ़ने के लिए अलग-अलग बैठा दिया। एक शिक्षिका की तरह ही वह कविता, कहानी और चुटकुलों के साथ जनरल नॉलेज पर चर्चा करने लगीं। अब इस मुहिम का असर यह हो गया कि अब बच्चे पढ़ाई के लिए पूरा समय दे रहे हैं। होमवर्क भी खुद ही मांग रहे हैं। कमला ने बताया कि उनके भी दो बेटे हैं। ड्यूटी के बाद वह दोनों बच्चों और परिवार को समय देती हैं।

सभी बच्चों को घर से लाकर दिए कपड़े 

कमला बताती हैं सभी बच्चे गरीब परिवार से हैं। अधिकांश नेपाली मूल के मजदूर यहां ठहराए गए हैं। ऐसे में बच्चों के लिए वह कुछ कपड़े अपने घर से ही ले आई। पुलिस महकमे के अधिकारी भी कमला की मुहिम से प्रभावित हुए तो खुद ही मदद के लिए आगे आ गए। कमला चौहान तीन महिने पहले ही चम्पावत जिले के पाटी थाने से स्थानांतरित होकर बनबसा आई हैं। आठ अप्रैल से क्वारंटाइन सेंटर में ड्यूटी लगी हुई है। उनके पति कुलदीप चौहान भी टनकपुर थाने में तैनात हैं।

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