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    मधेश के बाद अब पश्चिमी नेपाल में भी ड्रैगन की दस्तक, निवेश बढ़ाने के समझिए मायने

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Wed, 24 Jun 2020 01:55 PM (IST)

    मधेश के बाद चीन ने नेपाल के सुदूर पश्चिमी क्षेत्र पर भी नजर गड़ा दी है। कोरोना काल में भारत से लौटे युवाओं को चीनी दल रोजगार का सपना दिखा रहा है।

    मधेश के बाद अब पश्चिमी नेपाल में भी ड्रैगन की दस्तक, निवेश बढ़ाने के समझिए मायने

    हल्द्वानी, अभिषेक राज : मधेश के बाद चीन ने नेपाल के सुदूर पश्चिमी क्षेत्र पर भी नजर गड़ा दी है। कोरोना काल में भारत से लौटे युवाओं को चीनी दल रोजगार का सपना दिखा रहा है। खासकर उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल से लगने वाले डोटी, अछाम, बझां, बैतड़ी, दार्चुला, कैलाली और कंचनपुर में।

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    सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार चीन यहां पर्यटन, उद्योग, कृषि व विद्युत परियोजनाओं में निवेश की तैयारी में है। इसके लिए उसने दूरगामी योजना तैयार की है। सीमावर्ती प्रमुख स्कूलों में चीनी भाषा केन्द्र पहले से संचालित हैं। इन्हीं के बल पर कोरोना काल में ही उसने तेजी से भाषाई सक्रियता भी बढ़ाई है।

     

    बदले हालात में चीन ने पश्चिम नेपाल की नब्ज पकडऩे की कोशिश की है। इसमें रोजगार को बेहतर माध्यम माना। इसके लिए चीन की विशेष टीम इन क्षेत्रों का अभी भ्रमण कर रही है। वह नेपाली युवाओं को बंपर रोजगार का सपना दिखाकर चीन के प्रति सहानुभूति भी जुटा रही है।

     

    इसे भारतीय सुरक्षा एजेंसियां सामान्य नहीं मान रहीं। नेपाल के केरुंग और कोरला नाका खुलने के बाद मधेश के बाद चीन की सक्रियता इधर तेजी से बढ़ी है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार चीन की योजना भैरहवा को ट्रांजिट सिटी बनाने की है। इससे वह एक साथ दो अहम निर्णयों को साधेगा। पहला नेपाल के तराई में अपनी पकड़ और दूसरा भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी माल को खपाने के लिए बड़ा बाजार भी तैयार करेगा।

     

    नेपाली खनिजों पर भी नजर

    सुरक्षा एजेंसियों की हालिया रिपोर्ट के अनुसार चीनी कंपनियों को पश्चिमी नेपाल में भरपूर खनिज भंडार की जानकारी मिली है। यहां बड़ी मात्रा में लोहा, सीसा, जस्ता, लिगनाइट, निकल, अभ्रक, मैगनीज, कोयला, टाल्क, चीनी मिट्टी, संगमरमर का पता चला है। पेट्रोलियम एवं सोने की खानों को भी चिह्नित किया गया है। ऐसे में चीन की नजर नेपाली खनिजों पर भी है।

     

    धार्मिक पैठ भी

    चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में धाॢमक रूप से भी दखल दखल शुरू कर दिया है। इसी योजना के अनुसार हाल के दिनों में मंदिरों का निर्माण कराया जा रहा है, जहां बकायदे बौद्ध भिक्षुओं को तैनात किया जा रहा है।

     

    इन शहरों पर भी पड़ेगा असर

    चीन की दखल का सर्वाधिक प्रभाव पूर्वी उत्तर प्रदेश के महराजगंज, सिद्धार्थनगर जिले पर पड़ेगा। इसके इतर लखमीपुर खीरी, गोंडा, बलरामपुर, बहराइच व पीलीभीत जिले भी प्रभावित होंगे। नेपाल से सटे बिहार के पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज और र्पूणिया तक पर असर पड़ सकता है। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़, चम्पावत, ऊधमसिंह नगर भी नेपाल में चीनी दखल से प्रभावित हो सकते हैं।

     

    चीन की ये परियोजनाएं कुछ कहती हैं

    • भैरहवा अंतरराष्ट्रीय एअरपोर्ट : चीन का 6.22 करोड़ का निवेश। निर्माण चीनी कंपनी नार्थ वेस्ट सिविल एविएशन की ओर से
    • नवगठित जिला नवलपुर के बेनीमानीपुर के पास ह्वांग सी शिवम सीमेंट प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना। लागत करीब 36 अरब रुपये
    • पश्चिम सेती में छह अरब डॉलर की लागत से 750 मेगावॉट विद्युत परियोजना में निवेश
    • तामाकोशी में 650 मेगावॉट की हाइड्रो पावर परियोजना का निर्माण चीनी कंपनी के जिम्मे

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