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    शिक्षक की नौकरी छोड़कर पेड़ों काे बचाने में जुटे चंदन, जानिए इनके प्रयास को : nainital news

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 14 Jun 2019 06:39 PM (IST)

    पहाड़ों में तेजी से सूख रह जलस्रोत एक गंभीर समस्या से रूप में उभर रहे हैं। जलस्रोतों में साल दर साल कम होता पानी भविष्य में पहाड़ों पर मंडरा रहे पेयजल ...और पढ़ें

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    शिक्षक की नौकरी छोड़कर पेड़ों काे बचाने में जुटे चंदन, जानिए इनके प्रयास को : nainital news

    हल्द्वानी, जेएनएन : पहाड़ों में तेजी से सूख रह जलस्रोत एक गंभीर समस्या से रूप में उभर रहे हैं। जलस्रोतों में साल दर साल कम होता पानी भविष्य में पहाड़ों पर मंडरा रहे पेयजल संकट के संकेत दे रहा है। अगर सभी ने मिलकर पानी बचाने का प्रयास शुरू नहीं किया तो इसके परिणाम भयावह हो सकते हैं। वहीं समाज के बीच में से कुछ ऐसे जागरूक लोग भी सामने आने लगे हैं जो संकल्प लेकर पानी बचाने व धरा को हराभरा बचाने के लिए जीवन समर्पित कर रहे हैं। इन्हीं में से एक ओखलकांडा ब्लाक के नई गांव में रहने वाले चंदन सिंह नयाल भी हैं। चंदन इससे पहले एक निजी स्कूल में शिक्षक थे। 

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    पर्यावरण व जल संरक्षण के लिए पिछले पांच सालों के प्रयासों ने चंदन नयाल को जलनायक के रूप में पहचान दी है। चंदन बताते हैं कि एक दशक पहले तक पहाड़ों के नौले-धारे, चाल-खाल व झीलें पानी से लबालब रहती थीं। पहाड़ों में पानी की पर्याप्त मात्रा होने के पीछे असल वजह बांज के पेड़ों का होना था। छोटे व घने बांज के पेड़ मौसम को ठंडा रखने के साथ ही जल संरक्षण में अहम भूमिका निभाते हैं। बांज के जंगल दावाग्नि की भेंट चढ़ते गए। इसके अलावा लोगों ने भी बांज के पेड़ों का जमकर दोहन किया। जिसका खासा प्रभाव जलस्रोतों में पड़ गया। पहाड़ पर तेजी से जलस्रोत सूखने लगे। चंदन ने पांच साल पहले बांज के पेड़ों को बचाने के लिए मुहिम शुरू की। चंदन ने बताया कि वह ओखलकांडा ब्लॉक के दर्जनों गांवों में जाकर लोगों को पानी व पर्यावरण के महत्व के बारे में जागरूक करते हैं। इसके साथ ही पौधरोपण कर लोगों को भी आगे आने के लिए प्रेरित किया जाता है। अब तक वह 40 हजार पौधों का रोपण कर चुके हैं। इसमें से 28 हजार पौध बांज के हैं। फिलहाल उनका अभियान ओखलकांडा ब्लॉक के अलावा धारी, भीमताल और मुक्तेश्वर ब्लॉक में चल रहा है। वह कहते हैं कि धीरे-धीरे आसपास के जिलों में भी पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों को बांज व अन्य प्रजातियों के पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करेंगे। 

    30 फीसद जलस्रोतों का आस्तित्व पर संकट

    चंदन बताते हैं कि रामगढ़, धारी व ओखलकांडा ब्लॉक में प्राकृतिक जलस्रोत पर उन्होंने लंबे समय से रिसर्च की। इसमें जो परिवार आए, वो चौकाने वाले हैं। इन ब्लॉकों में 30 फीसद प्राकृतिक जलस्रोत सूख चुके हैं। चंदन गांव में बनने वाले नौलों को सीमेंट से बनाने के भी पक्षधर नहीं हैं। उन्होंने कहा कि नौलों को सीमेंट से बनाने के विरोध में वह अभियान चलाकर प्रयास कर रहे हैं। साथ ही ग्रामीणों को मिट्टी व पत्थर से नौलों के जीर्णोद्धार करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। 

    हजारों लीटर पानी संरक्षित करते हैं बांज के पौध

    चंदन सिंह नयाल बीएड कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि बांज के 30 पौधे हर साल 40 हजार लीटर पानी संरक्षित करते हैं। बांज की पत्तियां चौड़ी होती हैं। जो टूटकर गिरने के बाद बारिश के पानी को जमीन के सोखने में मदद करती हैं। इस पेड़ की लकड़ी लंबे समय तक न तो सड़ती है और न ही इससे दुर्गंध उठती है। 

    12 सौ से 35 सौ मीटर ऊंचाई तक उगता है बांज 

    मध्य हिमालयी क्षेत्र में बांज की विभिन्न प्रजातियां (बांज, तिलौज, रियाज व खरसू आदि) 1200 मीटर से लेकर 3500 मीटर की ऊंचाई के मध्य स्थानीय जलवायु, मिट्टी व ढाल की दिशा के अनुरूप पायी जाती हे। इसकी लकड़ी का घनत्व 0.75 ग्राम प्रति घन सेमी होता है और यह अति मजबूत व सख्त होती है। इस पर फफूद, कीटों का असर नहीं होता है। साथ ही इसकी जड़ें भी नहीं उखड़ती हैं। 

    बांज की उपयोगिता पर बच चुके हैं संगीत 

    बांज को उत्तराखंड का हरा सोना भी कहा जाता है। पर्यावरण खेतीबाड़ी, समाज-संस्कृति से गहरा ताल्लुक रखने वाला बांज ऐसा वृद्ध है, जिसकी उपयोगिता अन्य की अपेक्षा अधिक है। उत्तराखंड में बांज की महत्वता को लेकर कई लोकगीत भी बन चुके हैं। इसमें से बांजै की जडय़ो को ठंडो पानी... एक है।

    100 से अधिक स्कूलों में कर चुके हैं कार्यशाला 

    चंदन पर्यावरण व जल संरक्षण के लिए बच्चों को प्रेरित करते हैं। अब तक वह 100 से अधिक स्कूलों में कार्यशाला आयोजित कर पेड़ों के महत्व की जानकारी दे चुके हैं। साथ ही पहाड़ पर पेड़ों की कौन की प्रजातियां उपयोगी हैं, इसके बारे में भी वह बच्चों को जागरूक करते हैं। उन्होंने खुद की भूमि पर नर्सरी भी खोली है। इसके साथ ही वह पानी व पर्यावरण बचाने के लिए भी शिक्षा दे रहे हैं।

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