अब पता लग सकेगा कब और कहां फटेगा बादल, अल्मोड़ा के वैज्ञानिक मॉडल तैयार करने में जुटे
बादल फटने जैसी भयंकर प्राकृतिक घटना के बाद होने वाले नुकसान से अब काफी हद तक बचा जा सकेगा। यानी अब बादलों पर भी जमीं से पैनी निगाह रखी जा सकेगी। ...और पढ़ें

रानीखेत, दीप सिंह बोरा : बादल फटने जैसी भयंकर प्राकृतिक घटना के बाद होने वाले नुकसान से अब काफी हद तक बचा जा सकेगा। यानी अब बादलों पर भी जमीं से पैनी निगाह रखी जा सकेगी। यह संभव हो सकेगा 'वैदर मॉनीटरिंग नेटवर्किंग' तकनीक से। अत्यधिक संवेदनशील हिमालयी राज्यों में इसकी शुरूआत हिमाचल से की जाएगी। जहां गोविंद बल्लभ पंत हिमालयन पर्यावरण शोध एवं विकास संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) के वैज्ञानिक इस मॉडल को तैयार करने में जुटे हैं। इसका लाभ भूगर्भीय व प्राकृतिक लिहाज से अतिसंवेदनशील उत्तराखंड समेत सभी राज्यों को मिलेगा।
बादलों में नमी कितनी है। किस ओर कितने बादल जमा हो रहे और बादल फटने की घटना कब व कितनी देर में कहां होगी। इन सब सवालों के जवाब अब जल्द मिल सकेंगे। साथ ही बादल फटने के बाद होने वाली तबाही से काफी हद तक बचाव की राह भी मिलेगी। जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण शोध एवं विकास संस्थान कोसी कटारमल के वैज्ञानिक इस प्रयोग को सफल बनाने के लिए रात दिन जुटे हैं। इसके तहत अत्याधुनिक मॉडल 'वैदर मॉनीटरिंग नेटवर्किंग सिस्टम' तैयार किया जा रहा है। हिमाचल में इसकी बकायदा शुरुआत की जा चुकी है। वैज्ञानिक इस मॉडल के प्रयोग के पहले चरण में पहुंच गए हैं। नेटवर्किंग के मूर्तरूप ले लेने के बाद बादल फटने की घटनाओं के बाद जानमाल की क्षति को रोकने में बड़ी मदद मिलेगी।
पर्वतीय इलाकों में इसलिए फटते हैं बादल
वैज्ञानिकों की मानें तो अत्यधिक नमी लेकर बादल एक स्थान पर जमा हो जाते हैं। तब पानी की बूंदें आपस में मिलने लगती हैं। इस प्रक्रिया के बाद बादलों का घनत्व इतना बढ़ जाता है कि अचानक अतिवृष्टि के रुप में एक ही स्थान पर बरसने लगते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में 15 किमी की ऊंचाई पर बादल फटने की घटनाएं होती हैं। पानी से भरे बादल पहाडिय़ों में फंसे रह जाते हैं। फिर यकायक एक ही जगह पर पूरी ताकत से कुछ सेकंड में दो सेमी से ज्यादा बरसते हैं, जो पलक झपकते ही सैलाब की शक्ल ले तबाही लाते हैं।
व्यास घाटी में स्थापित होगा मॉडल
हिमाचल में जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण शोध संस्थान के वैज्ञानिक वहां की सरकार के साथ मिल कर मॉडल तैयार कर रहे हैं। उसमें सेटेलाइट व ग्राउंड डाटा दोनों की मदद ली जाएगी। अत्याधुनिक कंप्यूटर आधारित इस मॉडल को पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी में स्थापित किया जाएगा। जहां से बादलों की निगरानी की जा सकेगी।
वैदर मॉनीटरिंग नेटवर्किंग रखेगा नजर
प्रो. किरीट कुमार, वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण विकास एवं शोध संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा ने बताया कि वैदर मॉनीटरिंग नेटवर्किंग बादलों की स्थिति पर नजर रखने में कारगर रहेगा। संस्थान के वैज्ञानिक हिमाचल में मॉडल तैयार कर रहे हैं। अभी यह शुरुआती चरण में है। इसके तैयार होने के बाद हमें पहले ही पता लग जाएगा कि कब कहां बादल फट सकते हैं। इससे बचाव के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा और जानमाल की क्षति को कम किया जा सकेगा।

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