आइएफएस संजीव के प्रार्थना पत्र व केंद्र के झूठे हलफनामे पर कैट ने मांगा जवाब
एम्स दिल्ली में 2014 में हुए भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) की नैनीताल बेंच ने केंद्र सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
नैनीताल, जेएनएन : अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली में 2014 में हुए भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) की नैनीताल बेंच ने केंद्र सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। साथ ही झूठा हलफनामा देने पर भी केंद्र से जवाब तलब किया है। आइएफएस संजीव ने कैट की कोर्ट में दो प्रार्थना पत्र दाखिल किए थे। एक में उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार द्वारा उनकी चरित्र पंजिका में किए गए जीरो अंकन मामले में दिया हलफनामा झूठा है। संजीव ने इस मामले में आपराधिक केस चलाने का आदेश पारित करने की फरियाद की है, जबकि दूसरे में उन्होंने एम्स दिल्ली में घपलों का उल्लेख किया है। साथ ही कहा कि इसी वजह से उन्हें निशाना बनाया गया। संजीव के अनुसार 2014 में उनके द्वारा एम्स में अनियमितता के 13 मामले पकड़े, जिसमें निदेशक से लेकर संकाय अधिकारी, 93 बैच के आईपीएस व 83 बैच के आईएएस शामिल बताए जाते हैं। मंत्री की भूमिका भी सवालों के घेरे में रही। जिसके बाद ही संजीव को एम्स से हटा दिया गया। अब कैट की कोर्ट ने दोनों मामलों में जवाब दाखिल करने के आदेश पारित किए हैं। कैट के प्रशासनिक सदस्य अजंता दयालन व न्यायिक सदस्य राकेश सागर जैन की संयुक्त पीठ ने अगली सुनवाई 25 जून नियत की है।
इस तरह चली अब तक की कार्रवाई
नैनीताल : आइएफएस संजीव चतुर्वेदी के चरित्र पंजिका पर जीरो अंकन करने का मामला कैट में विचाराधीन है। कैट चेयरमैन संजीव के केस को दुर्लभ श्रेणी का बता चुके हैं। साथ ही वादी को दूसरे सक्षम न्यायालय में वाद दायर करने व रजिस्ट्रार को उन्हें केस से संबंधित फाइल लौटाने के निर्देश हाल में दे चुके हैं। पिछले साल जुलाई में कैट चेयरमैन न्यायमूर्ति एल. नरसिम्हन रेड्डी ने मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संजीव के सीआर से संंबंधित नैनीताल बेंच में चल रही सुनवाई को छह माह के लिए स्थगित कर दिया था। 21 अगस्त को नैनीताल हाई कोर्ट ने आदेश को रद करने के साथ ही केंद्र सरकार पर 25 हजार जुर्माना लगा दिया था। एम्स दिल्ली ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की। सर्वोच्च न्यायालय ने नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए केंद्र पर 25 हजार जुर्माना और लगा दिया था। 20 फरवरी को हाई कोर्ट ने कैट चेयरमैन के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी किया था। इस नोटिस के खिलाफ जस्टिस रेड्डी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना नोटिस पर तीन माह के लिए रोक लगा दी। 29 मार्च को जस्टिस रेड्डी ने खुद को इस मामले से अलग करने का फैसला किया।
संजीव के मामलों से अलग हट चुके हैं जज
नैनीताल : चर्चित अफसर संजीव के केस से चार न्यायाधीश खुद को अलग कर चुके हैं। 2013 में संजीव द्वारा हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व उनकी सरकार के अन्य मंत्रियों व अधिकारियों के विरुद्ध सीबीआइ जांच को लेकर दायर याचिका से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने खुद को अलग कर लिया था। इस केस में हरियाणा सरकार की ओर से प्रसिद्ध अधिवक्ता आर नरीमन पेश हुए थे। अगस्त 2016 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित ने अपने को इस मामले से अलग कर लिया। जून 2017 को नैनीताल हाई कोर्ट के जस्टिस केएम जोजफ इस मामले पर सुनवाई से इन्कार करते हुए केस कैट में भेजने के आदेश पारित किए थे। अप्रैल 2018 में शिमला की निचली अदालत के जज सिद्धार्थ ने संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव विनीत चौधरी द्वारा दायर आपराधिक मानहानि के मामले में खुद को अलग कर लिया था।
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