खुद की ख्वाहिशों से समझौता कर परिचालक ओम प्रकाश ने बेटे को बनाया साइंटिस्ट nainital news
ओमप्रकाश ने बेटे को काबिल बनाने का सपना यूपी के बिजनौर जिले के छोटे से गांव धामपुर पाडली मांडू में देखा था जो साकार हुआ उत्तराखंड के हल्द्वानी में।
हल्द्वानी, अविनाश श्रीवास्तव : हर पिता की तरह रोडवेज के परिचालक ओमप्रकाश का भी बेटे को काबिल बनाने का सपना था, जो हर रोज उनकी आंखों में उभरता था। अपनी जिंदगी तो जैसे-तैसे बसों में टिकट काटते गुजर गई, पर वह चाहते थे कि बेटा ऐसा मुकाम हासिल कर ले, जिसमें शोहरत भी हो और सम्मान भी। मेहनतकश हाथों और उम्मीद भरी आंखों का सपना कभी अधूरा नहीं रहता, ओमप्रकाश ने यह सच कर दिखाया। आखिर वह दिन आ गया, जिसका हर पिता को इंतजार रहता है। वह वक्त जब पिता अपने बेटे से पहचाना जाता है। आज ओमप्रकाश का बेटा उत्कर्ष भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट है, जहां हर दिन वह विज्ञान के नए ज्ञान को परिभाषित कर रहा है।
बसों में टिकट बनाते गुजरी जिंदगी
ओमप्रकाश ने बेटे को काबिल बनाने का सपना यूपी के बिजनौर जिले के छोटे से गांव धामपुर पाडली मांडू में देखा था, जो साकार हुआ उत्तराखंड के हल्द्वानी में। बसों का रूट चार्ट। किराये का हिसाब। कैश मिलाने से जो मौका मिला, उसे ओमप्रकाश शर्मा ने बेटे के 'उत्कर्ष' पर ही खर्च किया। किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले ओमप्रकाश के पैरों पर खड़े होने से पहले ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। हालात से लड़ते हुए उन्होंने खुद की पहचान बनाई। रोडवेज की हल्द्वानी डिपो में परिचालक की नौकरी मिली तो जिंदगी की गाड़ी कुछ पटरी पर आई। हालांकि वेतन कम और पूरे परिवार की जिम्मेदारी का बोझ होने के कारण परिस्थिति बहुत ही विषम थी। फिर परिवार बढ़ा। बेटे उत्कर्ष के साथ दो बेटियां हुईं तो पूरा घर चहक उठा। कम संसाधन में भी ओमप्रकाश ने सबको सहेजा।
देहरादून से बीटेक, मुंबई से कराया एमटेक
बेटे उत्कर्ष का दाखिला हल्द्वानी के बाल विद्या निकेतन प्राथमिक विद्यालय में कराया। इसके बाद छठीं से आठवीं तक नैनीताल रोड स्थित श्री केदार हाईस्कूल में प्रवेश दिलाया। आठवीं के बाद इंटर तक की शिक्षा उत्कर्ष ने नैनीताल रोड स्थित बीरशिबा से पूर्ण की। इस बीच ओमप्रकाश ने उत्कर्ष के साथ दोनों बेटियों के सपनों में भी रंग भरना शुरू किया। वहीं उत्कर्ष तकनीकी शिक्षा की ओर बढ़े। देहरादून से बीटेक और फिर मुंबई से एमटेक करने के बाद भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र तक पहुंच गए। आज ओमप्रकाश की आंखों में चमक है। उम्र की ढलान में भी हौसला बुलंद है। हो भी क्यों न, आखिर बेटे के साथ उनकी दो बेटियां ने भी मल्टीनेशनल कंपनी में अपनी पहचान बना ली है।
यह भी पढ़ें : यहां पीठ और डोली ही एंबुलेंस है, क्योंकि सड़क अब तक इन गांवों में नहीं पहुंची
यह भी पढ़ें : जिम कॉबेट नेशनल पार्क में मां के साथ जंगल सफारी करने पहुंचे सिने स्टार रणदीप हुड्डा