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60 हजार की कुर्सी नहीं मिली तो जमीन पर सजाया दफ्तर

प्रधानमंत्री देश में जहां वीआइपी कल्चर खत्म करने की बात कर रहे हैं, वहीं उत्तराखंड संस्कृत विवि के कुलपति ब्रांडेड कुर्सी की जिद कर बैठे। कुर्सी न मिलने पर वह जमीन पर बैठने लगे।

By BhanuEdited By: Published: Fri, 21 Apr 2017 09:28 AM (IST)Updated: Sat, 22 Apr 2017 05:05 AM (IST)
60 हजार की कुर्सी नहीं मिली तो जमीन पर सजाया दफ्तर
60 हजार की कुर्सी नहीं मिली तो जमीन पर सजाया दफ्तर

हरिद्वार, [जेएनएन]: प्रधानमंत्री देश में जहां वीआइपी कल्चर खत्म करने की बात कर रहे हैं वहीं उत्तराखंड संस्कृत विवि के कुलपति ब्रांडेड कुर्सी खरीदने की जिद पर अड़े हैं। 60 हजार रुपये की इस कुर्सी को खरीदने के लिए उन्होंने कार्यालय का सारा फर्नीचर ही हटाकर जमीन पर बैठना शुरू कर दिया। यही नहीं, मिलने आए लोगों को भी जमीन पर बिठाया। विवि में कुर्सी का यह पूरा तमाशा वित्त विभाग की आपत्ति के बाद हुआ।

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कुर्सी को लेकर नेताओं का हठयोग जगजाहिर है, लेकिन उत्तराखंड संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. पियूषकांत दीक्षित ने तो कुर्सी प्रेम को लेकर तमाशा खड़ा कर दिया। मामला कुलपति कार्यालय में पुरानी पड़ी कुलपति की कुर्सी को बदलने से जुड़ा है। पुरानी और टूट चुकी इस कुर्सी की जगह कुलपति नई ब्रांडेड कुर्सी चाहते हैं। 

उनकी पसंद गोदरेज कंपनी की ब्रांडेड कुर्सी है, जिसकी बाजार में कीमत 57 हजार रुपये है, जोकि खरीद के बाद 3 हजार का टैक्स मिला कर 60 हजार रुपये की पड़ रही है। इतनी महंगी कुर्सी की खरीद पर वित्त विभाग ने आपत्ति जताई है। 

वित्त विभाग ने विवि के कार्यालयों के फर्नीचर के लिए सालाना एक करोड़ के बजट का हवाला देते हुए यह आपत्ति जताई। साथ ही इसकी जगह 15-20 हजार रुपये की अच्छी व सस्ती कुर्सी खरीदे जाने की सलाह देते हुए, नई कुर्सी आने तक विवि के रजिस्ट्रार कार्यालय में खाली पड़ी कुर्सी के इस्तेमाल का सुझाव भी दिया। 

आरोप है कि वित्त विभाग की इस आपत्ति से कुलपति प्रो. दीक्षित नाराज हो गए और उन्होंने अपने कार्यालय का सभी फर्नीचर बाहर निकलवा दिया, और गद्दे बिछवा कर काम करना शुरू कर दिया। कार्यालय में होने वाली बैठकों, या अन्य सभी कामों को उन्होंने नीचे बैठ कर ही निपटाया। इस दौरान उनके कार्यालय में आने वालों को भी जमीन पर बिठाया गया। इस बाबत पूछे जाने पर पहले तो कुलपति प्रो. दीक्षित ने किसी तरह के विवाद या नाराजगी की बात से इन्कार किया। 

उन्होंने कहा कि वह भारतीय परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। उनसे कुर्सी की खरीद को लेकर सवाल किया गया तो कहा कि कुलपति की कुर्सी भी उसके पद के अनुरूप होनी चाहिए। कहा कि ब्रांडेड कुर्सी देखने में भी अच्छी होती है और चलती भी ज्यादा है। कुर्सी आने पर भारतीय परंपरा के निर्वहन का क्या होगा, पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह दोनों व्यवस्था को साथ लेकर चलेंगे।

उधर, विवि के वित्त नियंत्रक मोहम्मद तसलीम ने भी पूरे प्रकरण की पुष्टि की। उनका कहना था कि कुलपति को ब्रांडेड कुर्सी महंगी होने के बारे में बताते हुए उन्हें रजिस्ट्रार कार्यालय में खाली पड़ी कुर्सी या 15-20 हजार रुपये की कुर्सी खरीदने का सुझाव दिया गया था। बावजूद इसके वह नहीं माने और जमीन पर बैठकर काम करना शुरू कर दिया। 

इस पर वित्त विभाग ने नरमी बरतते हुए देहरादून से कुलपति की मनपसंद कुर्सी खरीदने का आर्डर दे दिया। यह कुर्सी अगले सप्ताह तक आ जाएगी। फिलहाल 'कुर्सी' का यह पूरा प्रकरण विवि स्टाफ और वहां आने वाले लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

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