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    नोटबंदी: कई भक्त दीन-हीन, कुछ दिखा रहे 'दरियादिली'

    By sunil negiEdited By:
    Updated: Fri, 18 Nov 2016 05:00 AM (IST)

    इन दिनों जहां कुछ भक्तगण देवी-देवताओं के आगे सिर्फ हाथ जोड़कर लौट जा रहे हैं, वहीं 500 और 1000 रुपये के नोट चढ़ाने वाले भक्तों की संख्या भी एकाएक तेजी आई है।

    रुड़की, [रीना डंडरियाल]: बड़े नोटों की बंदी ने लोगों की जीवन शैली ही नहीं बदली, भगवान के दर पर जाने वाले भक्तों का आचार-व्यवहार भी बदल गया है। इन दिनों जहां कुछ भक्तगण देवी-देवताओं के आगे सिर्फ हाथ जोड़कर लौट जा रहे हैं, वहीं 500 और 1000 रुपये के नोट चढ़ाने वाले भक्तों की संख्या भी एकाएक तेजी आई है। ऐसा प्रतीत होता है कि एक तरफ दीन-हीन भक्त हैं और दूसरी तरफ संपन्न एवं दरियादिल।

    500 और 1000 रुपये के नोट अमान्य करार दिए जाने के बाद से कई ऐसे भक्त भी मंदिरों की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, जो इससे पहले मंदिर में कम ही देखे जाते थे। ये भक्त पंडितों से छिपते-छिपाते दानपात्र में बड़े नोट डाल दे रहे हैं। हालांकि, कुछ मंदिरों में ऐसे शख्स देखे जाने पर पंडितों की ओर से उनसे अनुरोध किया जा रहा है कि बंद हो चुके नोट भगवान को न चढ़ाएं।

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    उधर, मंदिर में नियमित रूप से देवी-देवताओं के दर्शनों और पूजा-अर्चना को आने वाले भक्तों की भी मुश्किलें बढ़ गई हैं। छुट्टे पैसों की कमी के चलते ये भक्त भगवान को चढ़ावा नहीं चढ़ा पा रहे और भगवान के आगे हाथ जोड़कर चुपचाप लौट जा रहे हैं। जबकि, जो भक्त 10, 20 और 50 रुपये तक आरती की थाली में रखते थे, अब वे एक या दो रुपये ही चढ़ा पा रहे हैं।

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    साकेत स्थित दुर्गा चौक मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित जगदीश प्रसाद पैन्यूली कहते हैं कि जो नोट बंद हो गए हैं, उन्हें भगवान को चढ़ाना उचित नहीं। बताया कि नोट बंदी के बाद से चढ़ावा अर्पित करने वालों की संख्या में 30 से 40 फीसद तक की कमी आई है। हालांकि, कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो बचते-बचाते 500 और 1000 के नोट दान पात्र में डाल रहे हैं।

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    गंगनहर किनारे स्थित श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर के पुजारी रामगोपाल पराशर और राजपूताना के सोना देवी मंदिर के पंडित रमेश सेमवाल कहते हैं कि बड़े नोट अमान्य होने के बाद लोगों के पास घर खर्च के लिए भी रुपयों का अभाव है। ऐसे में रोजाना मंदिर आने वाले भक्त सिक्के चढ़ाकर या फिर हाथ जोड़कर ही लौट जा रहे हैं। लेकिन, ऐसे लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है, जो पुराने हजार-पांच सौ के नोट चुपचाप दान पात्र में डाल रहे हैं।

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