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    ग्लेशियरों की सेहत पर गंभीर खतरा, 30 सालों में घटी 36 फीसद बर्फ; 200 करोड़ की आबादी के लिए बुरी खबर

    World Water Day विश्व जल दिवस की थीम ग्लेशियर संरक्षण है। उत्तराखंड के ग्लेशियरों में बर्फ की मात्रा में 36.75 प्रतिशत की कमी पाई गई है। जलवायु परिवर्तन के कारण स्नो लाइन भी ऊपर की तरफ सरक रही है। ग्लेशियरों में आ रहे बदलाव के कारण कृषि के लिए जल उपलब्धता में कमी अचानक बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं में तीव्रता और सूखे की स्थिति बढ़ सकती है।

    By Suman semwal Edited By: Nirmala Bohra Updated: Sat, 22 Mar 2025 01:44 PM (IST)
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    World Water Day: 30 सालों में सेंट्रल हिमालय के ग्लेशियरों में 36.75 प्रतिशत घट गई बर्फ की मात्रा. जागरण ग्राफ‍िक्‍स

    सुमन सेमवाल, देहरादून। World Water Day: विश्व जल दिवस की इस बार की थीम ग्लेशियर संरक्षण है। यह विषय इसलिए भी सर्वाधिक प्रासंगिक है, क्योंकि दुनिया के ताजे पानी का करीब 68.7 प्रतिशत भाग ग्लेशियरों में संरक्षित है और वर्तमान समय में ग्लेशियरों की सेहत पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।

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    तेजी से पिघलते ग्लेशियर भविष्य में गंभीर जल संकट के संकेत दे रहे हैं। विश्व की तमाम विशेषज्ञ एजेंसी मानती हैं कि यह संकट सर्वाधिक दक्षिण एशिया पर मंडरा रहा है। यहां हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की दर अधिक होने से इससे लाभान्वित हो रहे भारत समेत दक्षिण एशिया की 200 करोड़ की आबादी गंभीर रूप से प्रभावित होगी।

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    दक्षिण एशिया का यह संकट सेंट्रल हिमालय (उत्तराखंड) के ग्लेशियरों की नासाज सेहत में भी नजर आ रहा है। मिजोरम यूनिवर्सिटी का हाल का एक अध्ययन बताता है कि उत्तराखंड में बीते 30 वर्षों (1991 से 2021) में ग्लेशियरों में बर्फ की मात्रा में 36.75 प्रतिशत की कमी पाई गई है।

    जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे से जूझ रहे ग्लेशियर

    मिजोरम यूनिवर्सिटी के प्रो. विश्वंभर प्रसाद सती के अनुसार उत्तराखंड या सेंट्रल हिमालय के ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे से जूझ रहे हैं। बर्फ की मोटी चादर निरंतर पतली हो रही है और उसकी जगह जल्द प्रभावित होने वाली पतली चादर में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिल रही है। जलवायु परिवर्तन और गर्मी के बढ़ते प्रभाव से स्नो लाइन भी ऊपर की तरफ सरक रही है।

    प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर।

    मिजोरम यूनिवर्सिटी के सीनियर प्रोफेसर विश्वंभर प्रसाद सती और रिसर्च स्कालर सुरजीत बनर्जी के अध्ययन के मुताबिक उत्तराखंड के ग्लेशियरों में बर्फ की स्थिति का आकलन वर्ष 1991 से 2021 के आंकड़ों के आधार पर किया गया। 30 वर्षों की अवधि में पाया गया कि बर्फ की मोटी परत (ग्लेशियर का मुख्य भाग) 10 हजार 768 घन किलोमीटर थी, जो अब घटकर महज 3258.6 घन किलोमीटर रह गई है। जिसका सीधा मतलब है कि ग्लोबल वार्मिंग के असर के कारण अधिक समय तक टिकी रहने वाली बर्फ की मोटी चादर निरंतर घट रही है।

    उच्च हिमालय के क्षेत्रों में बढ़ते मानवीय दखल और निरंतर बढ़ते गर्म दिनों के कारण स्नो लाइन वर्ष 1991 से लेकर वर्ष 2021 के बीच 700 मीटर ऊपर सरक गया है। यानी कि पूर्व में स्नो कवर आदि के रूप में बर्फ का जो दायरा निचले क्षेत्रों तक सालभर नजर आता था, वह अब समाप्त होता जा रहा है। यह स्थिति भारत में भविष्य के गंभीर जल संकट पैदा कर सकती है।

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    4881 घन किलोमीटर घट गई उत्तराखंड में बर्फ की मात्रा

    सीनियर प्रोफेसर विश्वंभर सती के मुताबिक वर्ष 1991 में उत्तराखंड में बर्फ की मात्रा 13 हजार 281 घन किलोमीटर थी, जो वर्ष 2021 में घटकर 8400 घन किलोमीटर रह गई है। 30 वर्षों में 4881 घन किलोमीटर बर्फ कम होना बेहद चिंता की बात है।

    शोध के प्रमुख बिंदु

    • गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान, ऊपरी भागीरथी जलग्राही क्षेत्र और टौंस नदी बेसिन में बर्फ की चादर के नुकसान और विखंडन की स्थिति अधिक तीव्र है।
    • इन क्षेत्रों में अल्प समय में बर्फ के बनने और पिघलने की गति तेज है।
    • केदारनाथ के ऊपरी क्षेत्रों में भी बर्फ की मोटी चादर तेजी से कम हो रही है।
    • ग्लेशियरों में आ रहे बदलाव के कारण कृषि के लिए जल उपलब्धता में कमी लेकर आ सकती है।
    • अचानक बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं में तीव्रता आएगी और फिर धीरे-धीरे सूखे की स्थिति बढ़ती चली जाएगी।

    यह रही बर्फ की स्थिति

    • बर्फ की मोटी चादर में कमी, 69. 73 प्रतिशत
    • बर्फ की पतली चादर में बढ़ोतरी, 80.71 प्रतिशत
    • बर्फ की मात्रा में कुल कमी, 36.75 प्रतिशत

    ग्लेशियर क्षेत्र में अध्ययन करते वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डा. मनीष मेहता।

    पश्चिमी हिमालय के ग्लेशियरों की सेहत पर भी खतरा

    वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ हिमनद विशेषज्ञ (ग्लेशियोलाजिस्ट) डा मनीष मेहता के अनुसार वाडिया संस्थान सेंट्रल हिमालय में 03 ग्लेशियर और पश्चिमी हिमालय, काराकोरम में 06 ग्लेशियरों की सेहत की निरंतर निगरानी कर रहा है। दीर्घकालिक भू-आधारित अध्ययन से पता चलता है कि भागीरथी बेसिन में डोकरियानी ग्लेशियर 1995 से 15 से 20 मीटर प्रति वर्ष पीछे हट रहा है, जबकि अलकनंदा बेसिन में चोराबारी ग्लेशियर 2003 से 9-11 मीटर प्रति वर्ष पीछे हट रहा है। इसके अलावा, पश्चिमी हिमालयी ग्लेशियर, पेनसिलुंगपा ग्लेशियर लिटिल आइस एज (एलआइए) से 2019 तक 5.6 मीटर पर साल की औसत दर से 2941 मीटर पीछे हट गया है। इसी तरह द्रुंग द्रुंग ग्लेशियर (डीडीजी) वर्ष 1971 से 2019 के बीच 12 मीटर प्रति साल की औसत दर से 624 मीटर पीछे हट गया है। वहीं, रिमोट सेंसिंग, जीआइएस और जमीनी अवलोकनों का उपयोग करके सुरू बेसिन, जांस्कर, लद्दाख हिमालय के ग्लेशियरों की सूची तैयार की गई और पाया गया कि उप-बेसिन में 252 ग्लेशियर शामिल हैं। अध्ययन अवधि में यह 481.32 वर्ग किमी (ग्लेशियर क्षेत्र का 11%) के क्षेत्र को कवर करते पाए गए। हालांकि, 1971-2017 की अवधि के दौरान इनका ग्लेशियेटेड (हिमाच्छादित) क्षेत्र 513 वर्ग किमी (1971) से घटकर 481 वर्ग किमी (2017) हो गया, जो 32 वर्ग किमी (6%) की समग्र कमी को प्रदर्शित करता है।