Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    World Sparrow Day: बचपन में देखी जाने वाली पहली चिड़िया शहरों में 'खामोश', लेकिन गांवों में गूंज रही चहचाहट

    Updated: Thu, 20 Mar 2025 01:11 PM (IST)

    World Sparrow Day 2025 विश्व गौरैया दिवस पर जानिए कैसे शहरों से गौरैया का पलायन हो रहा है और गांवों में उनकी चहचाहट गूंज रही है। अध्ययन करने पर पता चला कि गौरैया की संख्या में सबसे ज्यादा गिरावट बाजार क्षेत्र में आई है। जानिए इसके कारण और गौरैया के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में।

    Hero Image
    World Sparrow Day: शहरों में गौरैया का दिखना कम ग्रामीण क्षेत्रों में गूंज रही चहचाहट. Jagran Graphics

    सुमित थपलियाल, जागरण देहरादून । World Sparrow Day: बचपन में देखी जाने वाली पहली चिड़िया गौरैया ही होती थी। लेकिन अब शहर में बच्चों को गौरैया के बारे में ज्यादा पता नहीं है। पेड़ों के कटान, शोरगुल और सघन आबादी के कारण यह छोटी सी सुंदर चिड़िया ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पलायन कर रही है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    शहरों में गौरैया का खामोश होना पक्षी प्रेमियों को बैचेन कर रहा, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में गूंजती चहचाहट मन को सुकून दे रही है। हालांकि, कुछ संगठनों की ओर से शहरों में कृत्रिम घोंसले बनाकर गौरैया का अस्तित्व बचाने का प्रयास किया जा रहा है।

    यह भी पढ़ें- Chardham Yatra पर आने वाले पर्यटक वाहनों के लिए ये कार्ड जरूरी, वरना नहीं मिलेगी एंट्री

    पहाड़ों के गांव अब भी गौरैया की पनाहगाह बने हुए हैं, जहां वह अपने घोंसले बना रही हैं और खाने की भी कमी नहीं। दून घाटी में विशेषज्ञों की ओर से किए गए अध्ययन में गौरैया के पलायन की तस्वीर उजागर हुई है। हालांकि, राहत की बात ये है कि गौरेया की संख्या में बड़ी गिरावट दर्ज नहीं की गई है, केवल शहरवासी उनके दीदार से वंचित हो गए हैं।

    ग्राफिक एरा हिल विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डा. कमल कांत जोशी अपनी टीम के साथ दून घाटी में गौरैया संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे हैं। इसी क्रम में हिमालय की शिवालिक श्रेणी के दून घाटी में पिछले कुछ समय से गौरैया पक्षी की संख्या में होने वाली कमी के कारणों का पता लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं। जिसके लिए गौरैया के व्यवहार व दून घाटी के शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में उनकी संख्या के आंकड़े जुटाए गए। आंकड़ों का विश्लेषण करने पर जो तथ्य मिले उनसे पता चला कि दून घाटी के मैदानी क्षेत्रों में गौरैया की संख्या पर्वतीय क्षेत्रों की तुलना में बेहद कम रही है।

    प्रो कमलकांत जोशी बताते हैं कि अपने अध्ययन में टीम ने शहर को तीन भागों में बांटकर अध्ययन किया। जिसमें पहला भाग बाजार क्षेत्र रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और घंटाघर क्षेत्र, दूसरे भाग में देहरादून क्षेत्र में स्थित रिहायशी कालोनियों में गैरेया की गणना, जबकि तीसरे भाग में उन स्थानों में अध्ययन किया गया, जहां निर्माण कार्य गतिमान हैं।

    Jagran File.

    तीनों क्षेत्र से प्राप्त आंकड़ों का अध्ययन करने पर पता चला कि गौरैया की संख्या में सबसे ज्यादा गिरावट बाजार क्षेत्र में आई है। जबकि ग्रामीण क्षेत्र में इनकी संख्या काफी अच्छी मिली। कई घरों में गौरेया के बनाए घोंसले भी पाए गए। भविष्य में गौरैया के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए प्रयास बेहद जरूरी हैं। इसके लिए बच्चों को सांस्कृतिक व पारंपरिक ज्ञान देने की आवश्यकता है।

    पेड़ और झाड़ियों में कमी, सीमेंट का बढ़ता दायरा

    लगातार हो रहे निर्माण के बीच गौरैया के लिए घोंसले बनाने की जगह ही समाप्त हो गई है। शहरी क्षेत्रों से पलायन करने का एक प्रमुख कारण भीड़-भाड़ और शोरगुल के साथ ही यह भी है कि लोग जहां पहले घरों के आगे बाउंड्री की जगह झाड़ियां और पेड़ अधिक संख्या में लगाते थे। इसलिए वहां गौरैया भी आती थी। लेकिन अब सीमेंट और कंकरीट बिछ रहा है। इसलिए गौरैया को पर्वतीय इलाके अथवा जहां आबादी कम है, वही क्षेत्र रास आ रहे हैं।

    यह भी पढ़ें- Dehradun Metro के इंतजार में बीते 8 साल, 80 करोड़ खर्च होने के बाद खाली हाथ; अब फीडर लाइन पर कसरत

    गांव में घर की देहरी पर गौरेया की बढ़ रही संख्या

    अध्ययन के अनुसार देहरादून के विकासगन, डोईवाला सहसपुर, रायपुर आदि ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी परंपरागत भवन स्थित हैं। इसके साथ ही यहां भीड़ और शोरगुल काफी कम है। ऐसे में घर की देहरी पर सहज ही गौरैया मंडराती नजर आती हैं। ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोग अक्सर खाना डस्टबिन में डालने के बजाए बाहर मोंडरी में डाल देते हैं। अन्न के दाने होने के कारण गौरैया को आसानी से भोजन उपलब्ध हो जात है।

    घोंसले बनाकर गौरैया के संरक्षण का दे रहे संदेश

    टीम मैं हूं सेवादार के 13 लोगों की टीम लंबे समय से गौरैया संरक्षण को प्रयास कर रही है।

    सेवादार संदीप गुप्ता बताते हैं कि भोजन संकट, पेड़ों का कटान, घरों की बनावट का बदला स्वरूप गौरैया को घरों से दूर करता जा रहा है। लेकिन टीम वर्ष 2020 से गौरैया को घर बुलाने और बसाने के लिए प्रयासरत है। अबतक देहरादून में टीम ने विभिन्न क्षेत्रों में जाकर 3500, जबकि पंजाब, काशी, नोएडा, दिल्ली, बलिया, मुंबई, पुणे आदि जगहों पर पक्षी प्रेमियों को कोरियर के माध्यम से 500 घोंसले वितरित किए हैं। यह काम मन का है, इसलिए जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं और उनके यहां गौरैया आती है तो घोंसले निश्शुल्क लगाते हैं। इसके अलावा श्री महाकाल सेवा समिति के अध्यक्ष रोशन राणा भी 15 वर्षों से इस सेवा कार्य में जुटे हैं। उनका परिवार भी इस कार्य में साथ देता है। विभिन्न क्षेत्रों में जाकर हर हफ्ते घोंसले बनाकर वितरित करते हैं।

    comedy show banner