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    राजाजी टाइगर रिजर्व में फिर से सुनाई देगी सोन कुत्ते की 'सीटी'

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    Updated: Thu, 02 Jul 2020 08:40 PM (IST)

    राजाजी टाइगर रिजर्व से 30 साल पहले विलुप्त हो चुके वाइल्ड डॉग (सोन कुत्ते) का वहां फिर से बसेरा होगा। सोन कुत्तों को महाराष्ट्र अथवा कर्नाटक से लाया जाएगा।

    राजाजी टाइगर रिजर्व में फिर से सुनाई देगी सोन कुत्ते की 'सीटी'

    देहरादून, राज्य ब्यूरो। राजाजी टाइगर रिजर्व से 30 साल पहले विलुप्त हो चुके वाइल्ड डॉग (सोन कुत्ते) का वहां फिर से बसेरा होगा। भौंकने की बजाए सीटी की तरह आवाज निकालने वाले सोन कुत्तों को महाराष्ट्र अथवा कर्नाटक से लाया जाएगा। उत्तराखंड राज्य वन्यजीव बोर्ड से हरी झंडी मिलने के बाद वन महकमा इसके लिए कसरत शुरू करने जा रहा है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) की मदद से यह मुहिम परवान चढ़ेगी।

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    डब्ल्यूआइआइ ने राजाजी टाइगर रिजर्व में सोन कुत्तों को लेकर अध्ययन किया था। इसके आधार पर ही वन महकमे ने सोन कुत्तों को राजाजी में लाने के मद्देनजर राज्य वन्यजीव बोर्ड के समक्ष रखा था, जिसे मंजूरी मिल चुकी है। हाल में हुई बोर्ड की बैठक में इस मुहिम में तेजी लाने पर जोर दिया गया। राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजीव भरतरी के अनुसार अब राजाजी में सोन कुत्तों को लाने के लिए कवायद शुरू की जा रही है।

    1990 के बाद नहीं दिखे सोन कुत्ते

    भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.वाईबी झाला बताते हैं कि सोन कुत्तों का बसेरा एक दौर में कश्मीर से लेकर बिहार तक था। राजाजी टाइगर रिजर्व के अलावा पूर्वी तराई क्षेत्र में इनकी मौजूदगी थी, लेकिन 1990 में ये विलुप्त हो गए। उन्होंने कहा कि राजाजी में इनके लिए बेहतर पर्यावास है और इन्हें फिर से वहां बसाया जा सकता है।

    भौंकता नहीं सीटी बजाता है

    डॉ.झाला बताते हैं कि सोन कुत्ता सामान्य कुत्तों की भांति भौंकता नहीं, बल्कि सीटी बजाने जैसी आवाज निकालता है। झुंड में रहने वाले सोन कुत्तों का भी पूरी तरह से एक सामाजिक सिस्टम होता है। झुंड में ही ये जंगली जानवरों का शिकार करते हैं।

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    मनुष्य को नहीं इनसे कोई खतरा

    डॉ.झाला के अनुसार विलुप्त प्रजाति में शामिल सोन कुत्तों को लाने पर राजाजी में एक और मांसाहारी जीव बढ़ जाएगा। इस पहल से गुलदारों पर भी प्राकृतिक तरीके से नियंत्रण होगा, जिनका राजाजी से लगे क्षेत्रों में खौफ है। वह बताते हैं कि पिछले पांच सौ वर्षों में कहीं ऐसा वाकया नहीं आया, जब सोन कुत्तों ने मनुष्यों पर हमला किया हो। ये मवेशियों का भी शिकार कम करते है।

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