स्वच्छ सर्वेक्षण में उत्तराखंड के बड़े शहर फिर फिसड्डी, पढ़िए पूरी खबर
स्वच्छ सर्वेक्षण-2019 में राजधानी दून समेत सभी नगर निगम व अन्य प्रमुख शहर स्वच्छता के मोर्चे पर आखिरी पायदान पर खड़े हैं।
देहरादून, जेएनएन। स्वच्छ सर्वेक्षण-2019 में भी उत्तराखंड के बड़े शहर फिसड्डी साबित हुए। राजधानी दून समेत सभी नगर निगम व अन्य प्रमुख शहर स्वच्छता के मोर्चे पर आखिरी पायदान पर खड़े हैं। 425 शहरों की रैकिंग में कोई भी शहर टॉप 100 तो छोड़िए, टॉप 200 में भी जगह नहीं बना पाया। शुक्र रहा कि गंगा किनारे वाले शहरों में देशभर में पहली रैंकिंग हासिल कर गौचर ने उत्तराखंड का मान रख लिया। इसके अलावा मुनिकीरेती, अगस्त्यमुनि जैसे छोटे शहरों व कुछ कैंट बोर्ड ने बेहतर प्रदर्शन कर राज्य की खराब स्थिति को कुछ हद तक बेहतर बनाया है।
राजधानी देहरादून ने स्वच्छ सर्वेक्षण 2017 व 2018 के मुकाबले अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया है। 425 शहरों की रैंकिंग में दून को 384वां स्थान मिला, जबकि पिछली रैंकिंग में दून का स्थान 259वां था। नगर निगम रुड़की पिछली रैंकिंग में प्रदेश का सबसे बेहतर शहर था। यह तमगा अब भी रुड़की को मिला है, मगर इस सर्वेक्षण में रुड़की की रैंकिंग में 123 की गिरावट दर्ज की गई है। इसी तरह हरिद्वार, हल्द्वानी व रुद्रपुर की रैकिंग भी पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले काफी गिरी है। सिर्फ काशीपुर ने दो रैंक का सुधार किया।
छोटे शहरों में मुनिकीरेती ने इस बार उत्तर जोन के 1013 शहरों में 53वां स्थान हासिल किया है, हालांकि पिछली दफा इस शहर को दूसरा स्थान हासिल हुआ था। इसी के अनुरूप उत्तराखंड के कैंट बोर्ड में अल्मोड़ा को 11वां स्थान मिला है, जबकि 2018 के सर्वेक्षण में इसका स्थान भी दूसरा था।
बढ़ रही शहरों की आबादी, सिमट रहे संसाधन
ये हम किस तरह के शहर बसा रहे हैं। जहां आबादी का दबाव तो निरंतर बढ़ रहा है, मगर उसके अनुरूप स्वच्छता जैसे मूलभूत संसाधन तक नहीं जुटाए जा रहे। यही कारण है कि स्वच्छता के पैमाने पर हमारे शहर निरंतर फेल हो रहे हैं। जो हालात राजधानी दून के हैं, कमोबेश वैसे ही हालात प्रदेश के अन्य प्रमुख शहरों के भी हैं। खासकर राजधानी दून का न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ना, बल्कि प्रदेश के ही प्रमुख छह शहरों में पांचवें स्थान पर आना अपने आप में पूरी कहानी बयां करने के लिए काफी है।
स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 में परिसीमन के बाद शहर के बढ़े हिस्सों को शामिल नहीं किया गया है। इससे बड़ा सवाल यह भी खड़ा होता है कि जब हम शहरों के पुराने हिस्सों को ही स्वच्छ नहीं बना पा रहे हैं तो नए इलाकों लायक जरूरी संसाधन किस तरह जुटा पाएंगे। क्योंकि भविष्य नए इलाकों को भी स्वच्छ सर्वेक्षण का हिस्सा बनाया जाएगा। ऐसे में उत्तराखंड के शहरों की रैंकिंग और खराब होगी, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता। स्थिति यह हो गई है कि शहर के अंदरूनी इलाके बसावट से पैक होने के बाद बाहरी इलाकों में भी जगह नहीं बची है और नदी-नालों तक में लोग घुस बैठे हैं। ऐसे में सफाई की मशीनरी का दम हर समय फूला रहता है।
मदन कौशिक (आवास एवं शहरी विकास मंत्री) का कहना है कि ऐसा लगता है कि इस बार देश के सभी शहरों का सर्वेक्षण एक साथ किया गया है। फिर भी रैंकिंग में सुधार के लिए सरकार व निकाय स्तर पर उचित प्रयास किए जाएंगे।
सुनील उनियाल गामा (महापौर) का कहना है कि दून की रैंकिंग में गिरावट की जो भी वजह रही हैं, उनकी गहनता से पड़ताल की जाएगी। जिस भी स्तर पर कमी रह गई है, उसे दूर करने के प्रयास किए जाएंगे। स्वच्छता को लेकर जल्द बड़े स्तर पर काम होंगे, ताकि अगली रैकिंग में दून को बेहतर स्थान मिल सके।
स्वच्छता के मोर्चे पर दून का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन
ज्यों-ज्यों मर्ज की दवा की, त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता गया। दून का हाल भी कुछ ऐसा ही है। कहने को यह शहर प्रदेश की राजधानी है और प्रदेशभर की मशीनरी का संचालन भी यहीं से होता है। बजट की भी यहां कोई कभी नहीं है, बल्कि दून को बेहतर बनाने के लिए नगर निगम समेत तमाम मशीनरी काम कर रही हैं। इसके बाद भी 425 शहरों की प्रतियोगता में दून को 384वां स्थान मिलना पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। राजधानी बनने के बाद साल दर साल यहां के हालात बद से बद्तर हो रहे हैं। हर बार स्वच्छ सर्वेक्षण से पहले दून को लेकर बड़े-बड़े दावे जरूर किए जाते हैं, मगर परिणाम आता है तो पता चलता है कि स्वच्छता के नाम पर यहां सिर्फ बजट खपाया जा रहा है।
स्वच्छ सर्वेक्षण-2019 की बात करें तो पांच हजार अंकों की परीक्षा में दून को 384वीं रैंक के साथ महज 1342.53 अंक ही मिल पाए हैं। 2018 में यह रैंक 259 थी और 2017 में 316। यानी कि बेहतरी के दावों के बीच हमारा शहर लगातार पिछड़ रहा है। दून की सेवाओं का मूल्यांकन 1250 अंकों के पांच वर्गों में किया गया। गंभीर यह कि किसी भी वर्ग में दून को इसके आधे से अधिक अंक नहीं मिल पाए।
किसी भी शहर की स्वच्छता को परखने का पहला पैमाना वह लोग होते हैं, जो उस शहर में रह रहे हैं। इस तरह देखें तो दून के लोगों के अनुभव के आधार पर जो अंक मिले हैं, वह राज्य व राष्ट्रीय दोनों औसत से कम हैं। इसके अलावा सफाई व्यवस्था को लेकर नगर निगम ने जो दावे स्वयं किए हैं, उन्हें सर्वेक्षण टीम ने बुरी तरह खारिज कर दिया।
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