Uttarakhand News: प्रदेश में अतिक्रमण के मामले तेजी से बढ़े, कई क्षेत्रों में फूल-फल रहे हैं 'बनभूलपुरा'
Banbhoolpura राज्य बनने के बाद से उत्तराखंड में विभिन्न क्षेत्रों में अतिक्रमण के मामले तेजी से बढ़े हैं। प्रदेश में नदियों-नालों के समीप सरकारी भूमि पर बढ़ते अतिक्रमण को रोकना सरकार के लिए चुनौती बन चुका है। प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में कई बनभूलपुरा अस्तित्व में आ चुके हैं।

राज्य ब्यूरो, देहरादून : Banbhoolpura: नैनीताल जिले के हल्द्वानी में बनभूलपुरा में अतिक्रमण के मामले ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण को नजरअंदाज करने की तंत्र की प्रवृत्ति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राज्य बनने के बाद से उत्तराखंड में विभिन्न क्षेत्रों में अतिक्रमण के मामले तेजी से बढ़े हैं।
एक ओर सरकार को अपनी ही आवश्यकता की पूर्ति के लिए भूमि उपलब्ध नहीं हो पा रही है, दूसरी ओर से सरकारी भूमि पर धड़ल्ले से अतिक्रमण और फिर इसके नियमितीकरण का दबाव सरकार की मुश्किलें बढ़ा रहा है।
अतिक्रमण को रोकना सरकार के लिए चुनौती
प्रदेश में नदियों-नालों के समीप सरकारी भूमि पर बढ़ते अतिक्रमण को रोकना सरकार के लिए चुनौती बन चुका है। हालत ये है कि पंचायतों और निकायों की भूमि पर अवैध रूप से कब्जे बढ़े हैं।
केंद्र सरकार और उसके प्रतिष्ठानों के लिए आवंटित भूमि भी कब्जाधारकों से बच नहीं सकी है। अब तक सरकारों ने इसे बेहद सामान्य तरीके से लिया है। परिणामस्वरूप प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में अवैध तरीके से कई 'बनभूलपुरा ' अस्तित्व में आ चुके हैं।
देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर और नैनीताल जिलों में अतिक्रमण के दायरे में सरकारी भूमि का बड़ा क्षेत्र है। प्रदेश में सरकारी भूमि पर 600 मलिन बस्तियां खड़ी हो चुकी हैं। मैदानी ही नहीं, अब पर्वतीय जिलों में भी अतिक्रमण के मामले तेजी से पांव पसार रहे हैं।
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कई क्षेत्रों में यह जनसांख्यिकीय परिवर्तन का कारण भी बन चुके हैं। राजनीतिकों की छत्रछाया में फूल-फल रहा अतिक्रमण अब बड़ी समस्या का रूप धर चुका है। जंगल भी इससे बच नहीं पा रहे हैं। वन क्षेत्रों में अवैध रूप से धार्मिक स्थलों के निर्माण भी सामने आए हैं। इस समस्या के आगे वर्तमान भू-कानून भी कारगर साबित नहीं हो रहे हैं।
अतिक्रमण को लेकर भाजपा व कांग्रेस आमने-सामने
हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण को लेकर राजनीति गर्मा गई है। सत्ताधारी दल भाजपा और विपक्ष कांग्रेस आमने-सामने आ गए हैं। भाजपा ने अतिक्रमण के लिए कांग्रेस शासन काल को जिम्मेदार ठहरा रही है। वहीं कांग्रेस हल्द्वानी नगर निगम पर वर्ष 1996 से भाजपा के कब्जे को लेकर सवाल दाग रही है।
बनभूलपुरा की समस्या पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों की देन: भट्ट
भाजपा ने हल्द्वानी के बनभूलपुरा मामले के लिए कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा कि आज अदालती लड़ाई में जूझ रहे हजारों परिवारों के सामने यह समस्या पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकारों की देन है। पूर्व में इस मुद्दे का हल निकाल लिया जाता तो आज यह समस्या खड़ी नही होती।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भट्ट ने एक बयान में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि न्यायालय का निर्णय सर्वोपरि है और सबको उसका सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायालय ने अभी राज्य सरकार और रेलवे से जवाब मांगा है और उन्हें पूरी उम्मीद है कि पीडि़तों की समस्या का समाधान हो सकेगा।
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उन्होंने कहा कि मामले में राज्य सरकार पार्टी नहीं है और न ही यह राज्य का विषय है, लेकिन भाजपा को वहां के हजारों परिवारों से सहानुभूति है। भट्ट के अनुसार कांग्रेस इसे राजनीतिक अवसर के तौर पर देखती रही है और संभव है कि अब उसकी कोशिशों पर विराम लगेगा।
भाजपा सरकार का सामने आया अमानवीय चेहरा: माहरा
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने भाजपा सरकार पर बनभूलपुरा मामले में अमानवीय होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से कानून और लोकतंत्र की रक्षा हुई है। इन पर भरोसा बढ़ा है।
माहरा ने कहा यदि सरकार को इन परिवारों को हटाना ही था तो पहले उन्हें बसाने की कार्यवाही होनी चाहिए थी। मलिन बस्तियों के नियमितीकरण के लिए कानून की समय सीमा सरकार ने तीन वर्ष के लिए बढ़ाई है।
वर्ष 2024 से पहले बस्तियों के नियमितीकरण और पुनर्वास का कार्य किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद राज्य मंत्रिमंडल का अतिक्रमण को लेकर तुरंत निर्णय करना सवाल खड़े करता है।
इससे भाजपा की नीयत का पता भी चलता है। प्रदेश में 600 बस्तियों का सर्वे होना है, लेकिन हल्द्वानी की चार बस्तियों को छोड़ दिया गया। भाजपा को इस पर भी जवाब देना चाहिए। उन्होंने सरकार पर सांप्रदायिक वातावरण बिगाडऩे का प्रयास करने का आरोप भी लगाया।
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