प्रकृति की गोद में विज्ञान, पर्यटन और ज्ञान का संगम, देश-दुनिया में मिसाल उत्तराखंड के ग्रीन इनोवेशन सेंटर
उत्तराखंड का ग्रीन इनोवेशन सेंटर प्रकृति, विज्ञान, पर्यटन और ज्ञान का अद्भुत मिश्रण है। यह पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों को विकसित करने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया है। यह सेंटर वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से पर्यावरण के अनुकूल समाधान खोजने, पर्यटन को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने का काम करता है। यह देश और दुनिया के लिए एक मिसाल है।

चकराता के देववन में वन विभाग की ओर से बनाए गए देश के पहले क्रिप्टोगेमी गार्डन में उगाई गई विभिन्न प्रजातियां। साभार- वन विभाग
विजय जोशी, जागरण देहरादून। उत्तराखंड राज्य गठन के 25 वर्ष पूरे होने पर जहां विकास की कई कहानियां सुनाई देती हैं, वहीं एक ऐसी कहानी भी है जिसने न सिर्फ देवभूमि की धरती बल्कि पूरी दुनिया में उत्तराखंड का नाम रोशन किया। उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान शाखा की बीते वर्षों उपलब्धियां इन्हीं में शामिल हैं।
बीते वर्षों में इस शाखा ने वनस्पतियों, कीटों और जैव विविधता संरक्षण की दिशा में ऐसे कदम उठाए हैं, जो देश ही नहीं, वैश्विक स्तर पर भी मिसाल बन गए हैं। चाहे जिम्नोस्पर्म गार्डन, लाइकेन गार्डन, मौस गार्डन हों या फिर फारेस्ट हीलिंग सेंटर और मियावाकी वन, ये सब न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण के मॉडल बने हैं, बल्कि इको-टूरिज्म, शिक्षा और अनुसंधान के केंद्र भी बन रहे हैं। केंद्रीय मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री भी इन उपलब्धियों पर पीठ थपथपा चुके हैं।
उत्तराखंड के ग्रीन इनोवेशन सेंटर
आर्किड संरक्षण केंद्र, मंडल (चमोली)
उत्तर भारत का सबसे बड़ा देशी आर्किड संग्रहालय, जो चमोली की मंडल घाटी में फैला 80 देशी आर्किड प्रजातियों का घर है। यहां के आर्किड ट्रेल और नर्सरी संरक्षण के साथ-साथ पर्यटकों को भी आकर्षित कर रहे हैं।
मौस गार्डन, नैनीताल
भारत का पहला समर्पित मौस गार्डन है। खुर्पाताल में लगभग 10 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह गार्डन 107 प्रजातियों के ब्रायोफाइट्स को सहेजे हुए है। इनमें से दो प्रजातियां इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर की रेड लिस्ट में शामिल हैं।
लाइकेन गार्डन, मुनस्यारी (पिथौरागढ़)
दुनिया का पहला लाइकेन गार्डन, जहां 85 प्रजातियां संरक्षित हैं। यहां स्थापित इंटरप्रिटेशन सेंटर लाइकेनोलाजी के इतिहास और पारिस्थितिक महत्व को बखूबी दर्शाता है।
क्रिप्टोगेमिक गार्डन, देववन (चकराता)
देश का पहला क्रिप्टोगेमिक गार्डन, जहां शैवाल से लेकर फंगस और लाइकेन तक 130 से अधिक प्रजातियां सुरक्षित हैं। यह गार्डन देवदार और बलूत के प्राकृतिक वनों के बीच अनुसंधान का जीवंत प्रयोगशाला है।
हिमालयन स्पाइस गार्डन, रानीखेत
पहाड़ी मसालों की सुगंध से महकता यह उद्यान काला जीरा, जखिया, तिमूर और जांबू जैसी दुर्लभ प्रजातियों का केंद्र है। यहां मसालों के इतिहास और प्रसंस्करण से जुड़ा इंटरप्रिटेशन सेंटर भी बनाया गया है।
फारेस्ट हीलिंग सेंटर, रानीखेत
यह स्वास्थ्य और मानसिक शांति का मेल है। फारेस्ट बाथिंग और ट्री हगिंग जैसी गतिविधियों के माध्यम से यह केंद्र लोगों को प्रकृति से जोड़ रहा है। जापानी शिनरिन-योकू तकनीक और भारतीय परंपरा का अद्भुत संगम यहां देखने को मिलता है।
एलपाइन मेडिसिनल गार्डन, औली
ऊंचाई वाले क्षेत्रों के औषधीय पौधों का संरक्षण केंद्र, जहां नागचत्री, जटामांसी और अतीस जैसी दुर्लभ प्रजातियां सुरक्षित हैं। इनमें से अधिकांश इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर रेड लिस्ट में शामिल हैं।
पालीनेटर पार्क, हल्द्वानी
देश का पहला परागणकर्ता पार्क, जहां 100 से अधिक प्रकार की तितलियां, कीट और पक्षी फूलों से संवाद करते दिखते हैं। इसका उद्देश्य पारिस्थितिक संतुलन और परागण की महत्ता को समझाना है।
फर्नरी, रानीखेत (अल्मोड़ा)
भारत की सबसे बड़ी खुले में स्थित फर्नरी, जिसमें 160 से अधिक फर्न प्रजातियां संरक्षित हैं। इनमें औषधीय और खाद्य फर्न दोनों प्रकार की प्रजातियां हैं।
फाइकस गार्डन, लालकुआं (नैनीताल)
देश का सबसे बड़ा फाइकस गार्डन, जिसमें 104 प्रजातियां मौजूद हैं। यह उद्यान वायुवीय पौधों की विविधता का अनूठा उदाहरण है।
जिम्नोस्पर्म गार्डन, उत्तरकाशी
देश का पहला जिम्नोस्पर्म गार्डन, जहां 39 प्रजातियां संरक्षित हैं। यहां का इंटरप्रिटेशन सेंटर पौधों की प्राचीनतम प्रजातियों के विकास की कहानी सुनाता है।
पक्षी और तितली गैलरी, देहरादून
जौलीग्रांट स्थित यह गैलरी प्रकृति प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुकी है। यहां 10 श्रेणियों के पक्षियों और 105 तितली प्रजातियों की दुर्लभ जानकारी प्रदर्शित है।
रामायण, महाभारत, बुद्ध और भारत वाटिका, हल्द्वानी
हल्द्वानी के जैव विविधता पार्क में स्थापित ये चार वाटिकाएं भारतीय संस्कृति, साहित्य और जैव विविधता का संगम हैं। रामायण वाटिका में 139 पौध प्रजातियां, महाभारत वाटिका में 37 प्रजातियां, बुद्ध वाटिका में जीवन के तीन चरणों से जुड़े वृक्ष और भारत वाटिका में देश के सभी राज्यों के राज्य वृक्ष प्रदर्शित हैं।

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