इस राज्य में चुनौती भरी शहर और गांवों की तस्वीर संवारने की राह, क्या भाजपा होगी सफल?
Uttarakhand Government उत्तराखंड सरकार शहरों और गांवों की चुनौतियों का समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्य में विकास कार्यों ने गति पकड़ी है लेकिन शहरों में नियोजित विकास और नागरिक सुविधाओं की कमी है। गांवों में पलायन एक बड़ी समस्या है। सरकार शिक्षा स्वास्थ्य और आजीविका के अवसरों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। अगले दो वर्षों में शहरों और गांवों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

राज्य ब्यूरो, जागरण देहरादून। Uttarakhand Government: उत्तराखंड की धामी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के चौथे वर्ष में प्रवेश कर रही है। इस कालखंड में सरकार ने कई महत्वपूर्ण निर्णयों से छाप छोड़ी तो राज्य में विकास कार्यों ने भी गति पकड़ी है। केंद्र सरकार इसमें भरपूर सहयोग कर रही है। बावजूद इसके शहरों और गांवों के परिप्रेक्ष्य में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। दोनों ही भिन्न-भिन्न तरह की चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
अनियोजित विकास की मार से त्रस्त शहरों में उस हिसाब से नागरिक सुविधाएं नहीं विकसित हो पा रहीं, जिनकी दरकार है। गांवों को देखें तो वहां से पलायन का क्रम थमने का नाम नहीं ले रहा। गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं जुटाने के साथ ही आजीविका के अवसर सृजित करने की चुनौती सामने है।
वर्तमान में शहरों की संख्या 107
शहरी क्षेत्रों की संख्या तो राज्य में निरंतर बढ़ रही है, लेकिन ये तमाम झंझावत से जूझ रहे हैं। आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2001 में शहरों की संख्या 63 थी, जो वर्ष 2011 में बढ़कर 72 हो गई। वर्तमान में शहरों की संख्या 107 है। नए शहरी क्षेत्र घोषित करने के पीछे नागरिकों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने की मंशा समाहित है, लेकिन इस मोर्चे पर स्थिति किसी से छिपी नहीं है।
बात चाहे देहरादून की हो अथवा हल्द्वानी या फिर मसूरी, नैनीताल व अल्मोड़ा की, सभी जगह नियोजित विकास, सुगम यातायात, बेहतर सड़कें, पार्क, अतिक्रमण, जल निकासी, सीवेज, साफ-सफाई से जुड़े विषय चुनौती बने हैं। स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य का कोई भी शहर अभी तक सीवेज नेटवर्क से पूरी तरह आच्छादित नहीं हो पाया है।
जागरण आर्काइव।
पलायन के कारण 1726 गांव वीरान
कुछ ऐसा ही हाल राज्य के 15906 गांवों का भी है। राज्य गठन के पहले से गांवों से चला आ रहा पलायन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। पलायन के कारण 1726 गांव पूरी तरह वीरान हो चुके हैं। इसके अलावा ऐसे गांवों की बड़ी तादाद है, जिनमें जनसंख्या अंगुलियों में गिनने लायक रह गई है।
पलायन आयोग की रिपोर्ट ही बताती है कि राज्य के गांवों से पलायन मजबूरी में हो रहा है। यदि गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य समेत अन्य मूलभूत सुविधाएं ठीक से विकसित हों और आजीविका के अवसर हों तो गांवों की तस्वीर संवरने के साथ ही पलायन भी थमेगा।
ऐसा नहीं है कि शहरों व गांवों को लेकर बीते वर्षों में काम नहीं हुआ। राज्य सरकार अपने संसाधनों के साथ ही बाह्य सहायतित योजनाओं के माध्यम से गांव, शहरों की सूरत संवारने के प्रयास कर रही है। इसमें काफी सफलता भी मिली है, लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना शेष है। ऐसे में अगले दो वर्ष में शहर व गांवों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सरकार को अपना हुनर दिखाना होगा।
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