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    विश्व हीमोफीलिया दिवस: कोरोना संकट में और बढ़ा हीमोफीलिया के मरीजों का मर्ज

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Fri, 17 Apr 2020 11:04 AM (IST)

    कोरोना संकट के बीच कई गंभीर बीमारियों के मरीजों की जान जोखिम में है। ऐसी ही कुछ मुश्किलों का सामना हीमोफीलिया के मरीजों को भी करना पड़ रहा है।

    विश्व हीमोफीलिया दिवस: कोरोना संकट में और बढ़ा हीमोफीलिया के मरीजों का मर्ज

    देहरादून, जेएनएन। कोरोना संकट के बीच कई गंभीर बीमारियों के मरीजों की जान जोखिम में है। ऐसी ही कुछ मुश्किलों का सामना हीमोफीलिया के मरीजों को भी करना पड़ रहा है। उन्हें जीवन रक्षक फैक्टर समय पर नहीं मिल पा रहे हैं। कहीं अस्पताल आने-जाने में दिक्कत है तो कहीं अस्पताल पहुंचकर भी मर्ज की दवा नहीं मिल रही। कारण ये कि अस्पताल में सिर्फ कोरोना का ही उपचार चल रहा है।

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    विदित हो कि हीमोफीलिया एक अनुवांशिक रक्त विकार है। जिसमें अंदरूनी या बाहरी चोट लगने पर खून का थक्का नहीं बनता और रक्तस्नाव लगातार होता रहता है। जिसके कारण जोड़ों में सूजन से विकलांगता होने का भय बना रहता है। इलाज के अभाव में जान जाने को भी जोखिम बना रहता है। फैक्टर ना मिलने पर असहनीय दर्द व परेशानी से मरीज को दो चार होना पड़ता है।

    उत्तराखंड में तो पहाड़ी इलाके के कारण मरीजों को दोगुनी परेशानी झेलनी पड़ रही है। प्रदेश में हीमोफीलिया के मरीजों को तीन अस्पतालों दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय, बेस अस्पताल हल्द्वानी व संयुक्त चिकित्सालय कोटद्वार में ही निश्शुल्क फैक्टर उपलब्ध कराए जाते हैं। कुछ समय पहले यह दावा किया गया कि मरीजों को नजदीकी अस्पताल में ही हीमोफीलिया फैक्टर उपलब्ध कराया जाएगा। पर यह व्यवस्था अब तक नहीं बन पाई है। ऐसे में लॉकडाउन के दौरान ऐसे मरीज अत्याधिक परेशान हैं। एक तो आने-जाने में परेशानी, उस पर फैक्टर की अनुपलब्धता के कारण भी दर्द झेलना पड़ रहा है।

    जनपद देहरादून का ही उदाहरण लें तो तकरीबन आठ साल से दून अस्पताल में हीमोफीलिया फैक्टर मरीजों को उपलब्ध कराए जाते रहे हैं। पर वर्तमान समय में अस्पताल को कोरोना के इलाज के लिए आरक्षित कर दिया गया है। ऐसे में हीमोफीलिया के मरीजों को न उपचार मिल रहा है और न दवा।

    इतना ही नहीं इन मरीजों के लिए कहीं अन्य जगह भी उपचार का इंतजाम नहीं किया गया है। हल्द्वानी व कोटद्वार में भी मरीजों को कुछ इसी तरह की दिक्कतें उठानी पड़ रहा है। एक तो अस्पताल पहुंचना मुश्किल, उस पर दवा की अनुपलब्धता उनका मर्ज बढ़ा रही है।

    मरीजों की स्थिति

    • प्रदेश में 208 मरीज
    • गढ़वाल मंडल में 152 मरीज
    • कुमाऊं मंडल में 56 मरीज
    • देहरादून में 40 मरीज

    किस-किस फैक्टर की जरूरत

    • 70 फीसद मरीज फैक्टर-8
    • 20 फीसद मरीज फैक्टर-9
    • 10 फीसद मरीज फैक्टर-7, 10, 5, 13 व वीडब्लयूडी

    दीपक सिंघल (चेयरमैन रीजनल काउंसिल, हीमोफीलिया फेडरेशन ऑफ इंडिया) का कहना है कि कोरोना संकट व लॉकडाउन के बीच मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हीमोफीलिया फैक्टर की अनुपलब्धता उनकी तकलीफ बढ़ा रही है। इसके अलावा आने-जाने में भी उन्हें दिक्कतें उठानी पड़ रही है। राज्य सरकार दवा की उपलब्धता के साथ ही इनके लिए एंबुलेंस की भी व्यवस्था करे।

    पंकज पांडे (प्रभारी सचिव स्वास्थ्य) का कहना है कि कुछ दिन पहले ही स्वास्थ्य महानिदेशक ने हीमोफीलिया फैक्टर की कमी बताते हुए खरीद की अनुमति मांगी थी, तभी अनुमति दे दी गई थी। अस्पतालों में फैक्टर उपलब्ध क्यों नहीं हैं, इसकी जानकारी ली जाएगी। यदि कोई अस्पताल कोविड हॉस्पिटल बन भी गया है, तो अन्य जगह व्यवस्था की जानी चाहिए।

    प्‍लाज्‍मा थैरपी की तैयारी में जुटा दून मेडिकल कॉलेज

    कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के उपचार के लिए दून मेडिकल कॉलेज भी अब प्लाज्मा थैरेपी अपनाने पर विचार कर रहा है। इसके लिए पहले इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) से अनुमति लेनी होगी। कॉलेज प्रशासन इसका प्रस्ताव तैयार कर रहा है।

    कोरोना के इलाज के लिए दुनियाभर के शोधकर्ता प्लाज्मा थैरेपी को उपयोगी बता रहे हैं। भारत में ही कई राज्यों में इस थैरेपी का इस्तेमाल हो रहा है। कई जगह इसके सकारात्मक नतीजे भी आए हैं। जानकारों का कहना है कि पहले भी प्लाज्मा थैरेपी से कई वायरस और बीमारियों का इलाज किया जा चुका है। ऐसे में अब दून मेडिकल कॉलेज में भी कोविड-19 के मरीजों पर इस थेरेपी के इस्तेमाल पर विचार हो रहा है। कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने बताया कि इस बावत प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। मंजूरी मिलने के बाद इसे शुरू कर दिया जाएगा। जनपद देहरादून में अब तक कोरोना संक्रमण के 18 मामले सामने आए हैं। जिनमें 17 दून मेडिकल कॉलेज में भर्ती किए गए। इनमें सात ठीक भी हो चुके हैं।

    ऐसे काम करती है प्लाज्मा थेरेपी

    किसी भी बीमारी से उबरने वाले मरीजों के शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम से उस बीमारी से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज बनती हैं, जो प्लाज्मा में ताउम्र मौजूद रहती हैं। इसे दवा में तब्दील करने के लिए ब्लड से प्लाज्मा को अलग किया जाता है। इसके बाद प्लाज्मा से एंटीबॉडीज निकालकर नए मरीज के शरीर में इंजेक्ट की जाती हैं। इस प्रक्रिया को प्लाज्मा डेराइव्ड थेरेपी कहा जाता है। ये एंटीबॉडीज मरीज के शरीर में जाकर तब तक रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती हैं, जब तक शरीर खुद इस लायक न बन जाए।

    नई तकनीक

    • इस पद्धति से इलाज के लिए कॉलेज को पहले आइसीएमआर से लेनी होगी अनुमति, बनाया जा रहा प्रस्ताव
    • इस प्रक्रिया में कोरोना को मात दे चुके मरीजों के शरीर में मौजूद एंटीबॉडीज से होगा नए मरीजों का इलाज
    • देश के ही कई राज्यों में प्लाज्मा थेरेपी से किया जा रहा है कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का उपचार

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    एम्स ऋषिकेश में भी प्लाज्मा से होगा उपचार

    अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में भी इस दिशा में कार्य शुरू कर दिया गया है। एम्स के निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने बताया कि संस्थान के पास उपचार के लिए आधुनिक संरचना उपलब्ध है। उपचार शुरू करने के लिए अनुमोदन प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इंस्टीट्यूट एथिक्स कमेटी और आइसीएमआर से अनुमति मिलने के बाद उपचार शुरू कर दिया जाएगा।

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