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    उत्तराखंड की सियासी बिसात पर नए मोहरे की एंट्री, दिलचस्प होगा मुकाबला

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Mon, 31 Aug 2020 05:17 PM (IST)

    उत्तराखंड में पांचवें विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं लेकिन इस बार बदलाव यह है कि इसमें आम आदमी पार्टी की दखलंदाजी महसूस होने लगी है।

    उत्तराखंड की सियासी बिसात पर नए मोहरे की एंट्री, दिलचस्प होगा मुकाबला

    देहरादून, विकास धूलिया। सूबे के सियासी परिदृश्य में बदलाव नजर आने लगा है। अब तक के चार विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के अलावा बसपा और उत्तराखंड क्रांति दल चुनावी बिसात पर मोहरे चलते दिखते थे। चौथे विधानसभा चुनाव में बसपा और उक्रांद का सूपड़ा साफ हो गया। अब पांचवें विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, लेकिन इस बार बदलाव यह है कि इसमें आम आदमी पार्टी की दखलंदाजी महसूस होने लगी है। आप अपने स्टाइल में भ्रष्टाचार को लेकर पब्लिक की नब्ज थामने की कोशिश में है। अब तक होता यह आया है कि भाजपा और कांग्रेस, दोनों इस मुददे पर सहूलियत के हिसाब से चलती रही हैं। आप के पास तो खोने को कुछ भी नहीं, लिहाजा पार्टी के नए नवेले नेता बगैर कुछ सोचे इस कदर मुंह फाड़ आरोप जड़ रहे हैं कि एक मैं और एक तू का खेल खेलती आ रही भाजपा-कांग्रेस को जवाब नहीं सूझ रहा। 

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    माफ करो मुख्यमंत्री जी, अब नहीं बनना मंत्री 

    साढ़े तीन साल से मंत्री पद के तलबगार सत्तारूढ़ भाजपा के विधायकों का अब हृदय परिवर्तन हो गया है। त्रिवेंद्र मंत्रिमंडल में खाली तीन सीट के लिए 45 विधायकों में मारामारी चल रही थी, मगर अब जब उनकी मुराद पूरी होने के नजदीक है, तो एक दर्जन विधायकों ने दावेदारी छोड़ते हुए यू टर्न ले लिया है। दरअसल, ये विधायक अफसरों की मनमानी से इस कदर त्रस्त हैं कि उन्हें लगता है कि डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदाता उन्हें न जाने क्या सबक सिखाएं। पिछले तीन दिन से विधायक हॉस्टल में सुरक्षित शारीरिक दूरी के साथ सिर जोड़कर कई बैठकें कर चुके इन विधायकों का तर्क है कि भला अगले एक-सवा साल के लिए मंत्री बनकर वे कौन सा किला फतह कर लेंगे। इसके उलट वोटर की उम्मीदें मंत्री बनने पर आसमान छूने लगेंगी। डर यह कि इस चक्कर में कहीं पैरों तले जमीन न खिसक जाए।

    फ्रीहिट के फेर में लटकी रनआउट की तलवार

    विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन की भाजपा में वापसी हो गई। भाजपा ने इन्हें छह साल के लिए बाहर का रास्ता दिखाया था, लेकिन फिर 13 महीने में ही गले लगाने का फैसला कर लिया। सब हैरान हैं फैसले पर। चैंपियन भाजपा या संघ के पुराने कार्यकत्र्ता नहीं हैं। 2016 में कांग्रेस से मोहभंग होने पर अचानक इन्हें भाजपा की विचारधारा रास आने लगी। चाल और चरित्र की पार्टी बात करती है, लेकिन चैंपियन का मिजाज तो इससे कतई भी मेल नहीं खाता। दरअसल, भाजपा के सूबाई मुखिया बंशीधर भगत को इनमें दूर की कौड़ी नजर आई। भगत के पास खुद को साबित करने के लिए समय कम है और चुनौतियां पहाड़ सरीखी। हरिद्वार 11 सीटों वाला जिला है, तो दांव खेल डाला कि कम से कम एक सीट तो कन्फर्म कर ली जाए। अब डर यह कि कहीं भगत फ्रीहिट के चक्कर में नो बॉल पर रनआउट न हो जाएं।

    कांग्रेस का इन्वेस्टमेंट, हरदा की सीएम की दावेदारी

    कांग्रेस के किशोर इन दिनों पार्टी नेताओं से खफा हैं। इतने ज्यादा कि उनके 'आप' के होने की सोशल मीडिया में दिलचस्प चर्चा चल रही है। पूर्व मंत्री और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय कांग्रेस में बिल्कुल हाशिये पर हैं। नाम का असर कहें, या फिर काम का प्रतिफल, इन्हें कोई सीरियसली ले ही नहीं रहा। हाल में बयान दिया, कांग्रेस ने गलत लोगों पर इन्वेस्ट किया, मुख्यमंत्री बनाया, उन्होंने पार्टी छोड़ दी।

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    किशोर का इशारा शायद विजय बहुगुणा की ओर था, जिन्होंने चार साल पहले नौ विधायकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया था। अब सीन में एंट्री हुई हरदा, यानी हरीश रावत की। अब ये मालूम नहीं कि इन्हें बयान समझने में गलती हुई या जानबूझकर मासूमियत का चोला ओढ़ा। मीडिया से बोले, कांग्रेस ने सबसे ज्यादा मुझमें इन्वेस्ट किया, 2022 में इसे साबित करूंगा। समझे आप, फिर सीएम बनने की तैयारी कर रहे हैं हरदा।

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