Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    क्या आने वाली चुनौतियाें के आधार पर तय होंगे पोर्टफोलियो

    By Sumit KumarEdited By:
    Updated: Sun, 14 Mar 2021 07:10 AM (IST)

    भले ही प्रदेश की भाजपा सरकार में नेतृत्व परिवर्तन हो गया हो मगर नई सरकार के समक्ष चुनौतियों का अंबार भी कम नहीं है। गर्मी बढऩे पर गांवों शहरों में पानी बिजली की उपलब्धता समेत आमजन से जुड़े तमाम मोर्चों पर तीरथ सिंह रावत सरकार की परीक्षा होनी है।

    Hero Image
    नई सरकार के समक्ष चुनौतियों का अंबार भी कम नहीं है।

    राज्य ब्यूरो, देहरादून: भले ही प्रदेश की भाजपा सरकार में नेतृत्व परिवर्तन हो गया हो, मगर नई सरकार के समक्ष चुनौतियों का अंबार भी कम नहीं है। आने वाले दिनों में गर्मी बढऩे पर गांवों, शहरों में पानी, बिजली की उपलब्धता समेत आमजन से जुड़े तमाम मोर्चों पर तीरथ सिंह रावत सरकार की परीक्षा होनी है। साथ ही कोरोना संकट के बीच हरिद्वार में कुंभ का आयोजन, चारधाम यात्रा के अलावा पलायन व रोजगार, केंद्रीय योजनाओं की रफ्तार, आपदा प्रबंधन जैसी अन्य कई चुनौतियां भी मुंहबाए खड़ी हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इनसे निबटने को वक्त काफी कम है। सरकार को बिना समय गंवाए पूरी सक्रियता व तन्मयता से जुटना होगा। ऐसे में सवाल ये है कि मंत्रियों को दिए जाने वाले विभागों में आने वाले चुनौतियां से पार पाने की इच्छाशक्ति को भी आधार बनाया जाएगा या नहीं। पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के साथ ही आधारभूत ढांचे का विकास किसी भी सरकार की पहली प्राथमिकता होती है। इस नजरिये से देखें तो उत्तराखंड में काम भी हुआ है, मगर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अब जबकि निजाम बदला है तो जन अपेक्षाओं का ज्वार भी हिलोंरे ले रहा है। सूरतेहाल, तीरथ सरकार के पास सालभर का भी वक्त नहीं है और सामने चुनौतियां बेशुमार हैं।

    पेयजल :- इस मर्तबा मौसम के तेवरों से साफ है कि आने वाले दिनों में पेयजल किल्लत बड़ी दिक्कत के रूप में रहेगा। जल संस्थान की रिपोर्ट पर गौर करें तो करीब पांच सौ जलस्रोत सूखने के कगार पर हैं। 512 योजनाओं में जलापूॢत में 50 से 90 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। इनमें सर्वाधिक 185 योजनाएं मुख्यमंत्री के गृह जिले पौड़ी में हैं। प्रदेश में अधिक पेयजल संकट वाले 1500 से अधिक क्षेत्र चिह्नित किए गए हैं। साफ है कि पेयजल के मोर्चे पर सरकार को अभी से फोकस करना होगा।

    बिजली :- गर्मियों में बिजली की खपत भी अधिक बढ़ेगी। इस लिहाज से देखें तो राज्य में विद्युत उत्पादन खपत के सापेक्ष कम है। ऐसे में बिजली की मांग पूरी करने के लिए उत्तराखंड को दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ेगा। बिजली की आपूर्ति निर्बाध रहे, इसके लिए गंभीरता से कदम उठाने की दरकार है।

    यह भी पढ़ें- तीरथ सिंह रावत सरकार के मंत्रिमंडल में स्थान पाने को नहीं लगी दिल्ली दौड़

    कुंभ व चारधाम यात्रा :- कोरोना संकट के बीच अपै्रल में हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होना है तो मई से चारधाम यात्रा की शुरुआत। यह दोनों ही विषय खासे चुनौतीपूर्ण हैं। पहले बात कुंभ की। हरिद्वार में कुंभ के दिव्य-भव्य आयोजन की बात तो हो रही, मगर कोरोना संक्रमण की रोकथाम समेत व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दिया जाना है। कुंभ का स्वरूप क्या रहेगा, इस पर सबकी नजरें टिकी हैं। वहीं, चारधाम यात्रा पिछले साल कोविड के कारण बुरी तरह प्रभावित रही थी। अब परिस्थितियां कुछ सुधरी हैं, मगर खतरा टला नहीं है। लिहाजा, चारधाम यात्रा को हर दृष्टि से सुरक्षित, सुगम व निरापद बनाने की चुनौती है।

    पलायन व रोजगार:-गांवों से पलायन एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है। हालांकि, कोरोना संकट के चलते करीब साढ़े तीन लाख लोग वापस गांव लौटे, जिनमें सक करीब एक लाख वापस लौट चुके हैं। ढाई लाख के करीब अभी गांवों में हैं। उन्हें गांवों में थामे रखने और आगे पलायन न हो, इसके लिए रोजगार, स्वरोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी जरूरी है। राज्य में वर्तमान में भी सात लाख से ज्यादा बेरोजगार पंजीकृत हैं।

    शिक्षा एवं स्वास्थ्य :- सूबे में शिक्षा व स्वास्थ्य की चुनौती निरंतर बनी हुई है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी समेत अन्य व्यवस्थाओं का अभाव है। वहीं, अस्पतालों में डाक्टर, स्टाफ व दवाओं का टोटा है। ऐसे में ये सिर्फ रेफरल सेंटर तक सीमित होकर रह गए हैं।

    केंद्रीय प्रोजेक्ट :- चारधाम आल वेदर रोड, ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट, भारतमाला परियोजना समेत अन्य कई केंद्र पोषित योजनाएं राज्य में चल रही हैं। फिलवक्त इनकी गति ठीक है, यह आगे भी बरकरार रहे। यह सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं है।

    आपदा प्रबंधन :- समूचा उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से संवेदनशील है। हर बरसात में अतिवृष्टि, भूस्खलन मुसीबत का सबब बनते हैं। ऐसे में आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण के लिए प्रभावी रणनीति के साथ तेजी से कदम बढ़ाने होंगे।

    जंगल की आग :- 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड मेें वनों की आग बड़ी चुनौती है। इस मर्तबा तो सर्दियों से ही जंगल धधक रहे हैं। वर्तमान में भी तमाम जंगल सुलग रहे हैं। इसकी रोकथाम को जरूरी संसाधन जुटाने के साथ ही जनता का सहयोग लेेने की दरकार है।

    यह भी पढ़ें- भाजपा प्रदेश अध्‍यक्ष मदन कौशिक ने कहा- मिशन 60 प्लस के लिए कार्यकर्त्‍ता अभी से हों एकजुट

    Uttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें