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प्रवासियों की चिंता देख शिक्षकों ने बदली इस स्‍कूल की सूरत, पढ़िए पूरी खबर

चमोली के एक विद्यालय ऐसा भी है जिसकी तस्वीर स्वयं शिक्षकों ने बदल डाली। विद्यालय के भवन को देखकर ऐसा लगता है जैसे दिल्ली के किसी सरकारी स्‍कूल को देख रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 21 Sep 2020 09:27 AM (IST)Updated: Mon, 21 Sep 2020 09:27 AM (IST)
प्रवासियों की चिंता देख शिक्षकों ने बदली इस स्‍कूल की सूरत, पढ़िए पूरी खबर
प्रवासियों की चिंता देख शिक्षकों ने बदली इस स्‍कूल की सूरत, पढ़िए पूरी खबर

गोपेश्वर(चमोली), देवेंद्र रावत। उत्तराखंड में सरकारी विद्यालयों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। लेकिन, चमोली जिले के नारायणबगड़ ब्लॉक में एक विद्यालय ऐसा भी है, जिसकी तस्वीर स्वयं शिक्षकों ने बदल डाली। यह विद्यालय है राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय चोपता। विद्यालय के भवन को देखकर ऐसा लगता है, जैसे हम दिल्ली के किसी सरकारी विद्यालय को देख रहे हैं। शिक्षकों का विद्यालय भवन को सजाने-संवारने के पीछे का भाव भी दूरदृष्टि वाला है। वह कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान वापस लौटे प्रवासी जब अपने पाल्यों को यहां दाखिल करवाएं तो उनके मन में विद्यालय को लेकर कोई शंका नहीं होनी चाहिए।

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ब्लॉक मुख्यालय नारायणबगड़ से 26 किमी दूर स्थित आदर्श प्राथमिक विद्यालय चोपता को लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों के लिए क्वारंटाइन सेंटर के रूप में इस्तेमाल किया गया। इस अवधि में दिल्ली, मुंबई सहित अन्य शहरों से लगभग 45 परिवार विद्यालय से जुड़े गांवों में लौटे। उनकी पहली चिंता थी बच्चों के भविष्य की। विद्यालय भवन की जर्जर स्थिति को देखकर उनका ऐसा सोचना स्वाभाविक था कि शहरों के सुविधा-संपन्न निजी विद्यालयों में पढऩे वाले उनके पाल्यों का भविष्य क्या इस विद्यालय में संवर पाएगा। उनकी यही चिंता विद्यालय के शिक्षकों के दिलों में घर कर गई। इसके बाद उन्होंने तय किया कि वे भी अपने विद्यालय का इस कदर कायाकल्प कर देंगे, जिसे देख प्रवासियों का सरकारी विद्यालयों के प्रति नजरिया बदल जाए।

प्रभारी प्रधानाध्यापक नरेंद्र भंडारी बताते हैं कि विद्यालय भवन के रंग-रोगन के लिए एक बड़ी धनराशि की जरूरत थी। सो, विद्यालय कल्याण कोष व विद्यालय रूपांतरण के लिए शिक्षा विभाग की ओर से जारी 80 हजार की धनराशि का सदुपयोग किया गया। विद्यालय के सहायक अध्यापक परमानंद सती बताते हैं कि भवन की सूरत बदलने के साथ ही दीवारों पर आकर्षक ढंग से बालिका शिक्षा, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य व स्वच्छता संबंधी संदेश अंकित किए गए। जबकि, पूरे आंगन में टाइल्स बिछाई गई हैं।

रंग लाई मुहिम

शिक्षकों की इस मुहिम का ही नतीजा है कि रैंस, चोपता, कुनेणा व भंगोटा गांव लौटे प्रवासी परिवारों के 12 बच्चे यहां अलग-अलग कक्षाओं में प्रवेश ले चुके हैं। अन्य अभिभावक भी अपने बच्चों के प्रवेश को संपर्क कर रहे हैं। बीते वर्ष जहां विद्यालय की छात्र संख्या 34 थी, वहीं इस वर्ष 54 पहुंच गई है। 

हटकर हैं विद्यालय के तौर-तरीके

विद्यालय में अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की तरह ही ड्रैस कोड लागू है। कक्षाओं के अलग-अलग सदन बनाकर ड्रैस डिजायन की गई है। सप्ताह के लिए अलग-अलग रंग की चार ड्रैस तय हंै। दो दिन बच्चे केंद्रीय विद्यालय की तर्ज पर ग्रे कलर का ब्लेजर, दो दिन हाउस ड्रैस, एक दिन स्पोट्र्स ड्रैस व एक दिन ट्रैक शूट में विद्यालय आते हैं। इसके अलावा हर बच्चे को परिचय पत्र भी दिया गया है। 

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स्मार्ट क्लास भी

बच्चों को स्मार्ट क्लास से जोड़ा गया है। स्मार्ट क्लास शिक्षक व अभिभावकों के सहयोग से चलती है। इसमें प्रोजेक्टर के जरिये अंग्रेजी, विज्ञान, गणित, पर्यावरण आदि विषयों का ज्ञान बांटा जाता है। सभी के लिए हर दिन एक स्मार्ट क्लास लेना अनिवार्य है। विद्यालय में कंप्यूटर की शिक्षा भी दी जाती है। 

यशवंत सिंह रावत (अध्यक्ष, शिक्षक-अभिभावक संघ) का कहना है कि शिक्षक व अभिभावक मिलकर विद्यालय में बेहतर शैक्षणिक माहौल बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं। भविष्य में शिक्षकों के साथ मिलकर छात्र-छात्राओं के लिए और बेहतर संसाधन जुटाए जाएंगे।

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