छह हजार शिक्षकों और कर्मचारियों को तीन महीने से नहीं मिला वेतन
कोरोना महामारी के मौके पर सहायताप्राप्त अशासकीय विद्यालयों को अग्नि परीक्षा देनी पड़ रही है। करीब छह हजार शिक्षकों और कर्मचारियों को तीन महीने से वेतन नहीं मिला।
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। कोरोना महामारी के मौके पर सहायताप्राप्त अशासकीय विद्यालयों को अग्नि परीक्षा देनी पड़ रही है। करीब छह हजार शिक्षकों और कर्मचारियों को तीन महीने से वेतन नहीं मिला। सरकारी तंत्र की लापरवाही चौंकाने वाली है। जिम्मेदार विभागों शिक्षा और वित्त ने अलग-अलग तर्क दिए। यह कहते हुए वेतन रोक दिया कि प्रस्ताव में सृजित पदों का पूरा ब्योरा नहीं है। शिक्षक जगह-जगह गुहार लगा चुके हैं। शिक्षा मंत्री के दर पर दस्तक दी। शिक्षक संगठन के प्रतिनिधियों ने लंबे अरसे से वेतन नहीं मिलने की पीड़ा बताई। इससे नाराज मंत्रीजी अपने अधिकारियों पर खूबे बिफरे। आनन-फानन में आपत्ति हटाकर भरोसा दिया कि तुरंत वेतन दिया जाएगा। एक महीना होने को है, वेतन की 115 करोड़ की धनराशि सचिवालय में फाइल में दबी हुई है। सचिवालय में कोरोना के डर से फाइल आगे नहीं बढ़ रही है। शिक्षक मजबूर हैं। कानों में फिर सुनाई देने लगा है, हमारी मांगें पूरी करो..।
खूब फल रहीं हैं जंगलजलेबियां
सबसे बड़े विभाग शिक्षा में खूब जंगलजलेबियां पनप रही हैं। विभाग में इनकी खूब चर्चा है। यूं कहिए कि विभाग में मिलने वाला खाद-पानी इन जंगलजलेबियों के लिए खासा मुफीद है। इस जायकेदार फली की अन्य खासियत लंबी बेल पर दिलकश अंदाज में लटके रहना और जलेबीनुमा आकार भी है। इनके चाहनेवालों की लंबी कतार है। इसलिए कृपा बरसती है। जिनके पास जायका नहीं है और ईमानदारी का झंडाबरदार समझते हैं, विभाग के ऐसे खैरख्वाह इन चॢचत अधिकारियों को जंगलजलेबी कह कर खुद को तसल्ली देते हैं। हरिद्वार के एक जिला शिक्षाधिकारी ब्रहमपाल सैनी को चार्जशीट सौंपी गई, जांच अधिकारी नियुक्त हुए तो जंगलजलेबियां खूब याद आने लगीं। शिक्षाधिकारियों की फेहरिस्त गिनाने लगे। मसलन जगमोहन सोनी, अशोक कुमार, ओमप्रकाश वर्मा। इनमें रंगे हाथ पकड़े जाने वाले भी हैं। रसूखदारों के खास चहेते अधिकारी भी इसमें हैं। इनका प्रदर्शन शानदार है। यहां बात जंगलजलेबी की हो रही है, जंगलराज की नहीं।
लो गई भैंस पानी में
सचिवालय में किसी भी वक्त बेधड़क दाखिल होने और अटके हुए काम कराने में निपुण शिक्षक संगठनों के पदाधिकारी अक्सर ये गुनगुनाते मिल जाते हैं कि शासन के खेल निराले मेरे भइया। काम होते-होते कब अड़ंगा लग जाए, शासन के गलियारों का यही तो पेशेवर अंदाज है। स्वत: सत्रांत लाभ लेने के लिए शिक्षकों के तमाम संगठन दिन-रात एक किए हुए हैं। अभी यह लाभ मध्य सत्र में सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों को मिल रहा है, लेकिन इसके लिए उन्हें छह महीने पहले आवेदन देकर मंजूरी लेनी होती है। मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री से लेकर शासन के आला अधिकारियों के साथ कई दौर की बैठकों में शिक्षकों के संगठन जोर लगा चुके हैं। शासन स्तर पर यह लाभ देने सहमति बनी। संबंधित शिक्षा अनुभाग ने फटाफट पत्रावली बनाई और इसे वित्त को भेज दिया। वित्त में अब तक कई बार यह प्रस्ताव भेजा जा चुका है। फिर भैंस गई पानी में।
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सेवा सप्ताह में मंत्रीजी सक्रिय
मामला जब आम जन की भावना से जुड़ा हो तो उसे ताडऩे और अंजाम तक पहुंचाने में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय का कोई सानी नहीं। राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। भय पसरते ही 21 सितंबर से नवीं से 12वीं तक कक्षाएं चलाने के लिए स्कूलों को खोलने के खिलाफ सुर बुलंद होने लगे। अनलॉक-चार की गाइडलाइन में यह भी स्पष्ट किया गया है कि उक्त कक्षाएं चलाने का फैसला अभिभावकों की सहमति से ही लागू होगा। जिलों से रायशुमारी के लिए आदेश जारी हुए। शिक्षा सचिव की इन दिनों तबीयत खराब है। मंत्रीजी ने मोर्चा संभाला। संयोग देखिए। भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर सेवा सप्ताह की घोषणा की, उधर मंत्रीजी ने तुरंत फरमान जारी किया कि प्रदेश में कोरोना का खतरा देखते हुए स्कूल नहीं खोले जाएंगे। अब भला सेवा सप्ताह की इससे अच्छी शुरूआत क्या हो सकती है।
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