उत्तराखंड में कर्मचारी आंदोलनों के नाम पर गुजरा छह महीना
सरकारी सेवा की रीढ़ माने जाने वाले कर्मचारी पिछले छह महीने के दौरान आधे से अधिक समय आंदोलनों में व्यस्त रहे।
देहरादून, जेएनएन। सरकारी सेवा की रीढ़ माने जाने वाले कर्मचारी पिछले छह महीने के दौरान आधे से अधिक समय आंदोलनों में व्यस्त रहे। हालांकि, कर्मचारी विरोधी नीतियों को लेकर विरोध और आंदोलन उनका संवैधानिक अधिकार है, लेकिन अब सरकार इसे लेकर सख्त रुख अख्तियार करने के संकेत दे चुकी है। गत दिनों सरकार ने वन विभाग में किसी तरह के आंदोलन और हड़ताल पर रोक लगा दी है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में अन्य कर्मचारी संगठनों को लेकर इस तरह के कदम उठाए जा सकते हैं।
बता दें कि, बीते दिसंबर महीने में बिना आरक्षण पदोन्नति बहाली को लेकर छिड़ा आंदोलन बीते 18 मार्च तक चला। इस दौरान जनरल ओबीसी वर्ग के कर्मचारी करीब 16 दिन पूर्ण रूप से हड़ताल पर भी थे। इस दौरान गैरसैंण विधानसभा सत्र को संपन्न कराने में सरकार को नाको चने चबाने पड़ गए थे।
इस बीच बिना आरक्षण पदोन्नति बहाल तो कर दी गई, लेकिन तभी उत्तराखंड में कोरोना ने दस्तक दे दी। उसके बाद ढाई महीने तक चले लॉकडाउन में सरकारी कामकाज भी पूरी तरह से बाधित रहा।
वहीं, लॉकडाउन के अंतिम चरण से सरकारी दफ्तरों में कामकाज शुरू तो हुआ, मगर अनलॉक-टू के दौरान भी स्थिति अभी तक सामान्य नहीं हो सकी है। इस बीच शासनादेश के बाद भी विभागों में पदोन्नति न होने को लेकर राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद बीती एक जुलाई से विभागों का घेराव कर रहा है। यह सिलसिला 15 जुलाई तक चलेगा। इसका असर कहीं न कहीं सरकारी कामकाज पर पड़ रहा है।
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इसी को देखते हुए पिछले दिनों सरकार ने वन विभाग में कर्मचारियों की हड़ताल पर रोक लगा दी है। कर्मचारी संगठनों की ओर से इसका विरोध भी किया गया, लेकिन सरकार ने अब संकेत दे दिया है कि कोरोना के चलते कामकाज में जो बाधा आई है, उससे उबरने के लिए आने वाले दिनों में दोगुनी से अधिक ऊर्जा के साथ काम करना होगा।
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