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    Chardham Yatra: 600 साल से भी पुराना है सत्यनारायण मंदिर, दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है चारधाम यात्रा

    Updated: Sun, 04 May 2025 02:57 PM (IST)

    Chardham Yatra उत्तराखंड में चारधाम यात्रा शुरू होने के साथ ही रायवाला स्थित सत्यनारायण मंदिर में भक्तों का आगमन शुरू हो गया है। 600 साल से भी पुराने इस मंदिर को चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव माना जाता है। मान्यता है कि यात्रा शुरू करने से पहले भगवान नारायण से अनुमति लेनी होती है इसलिए यहां श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

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    सत्यनारायण मंदिर : सत्यनारायण मंदिर स्थित लक्ष्मी नारायण जी का विग्रह।

    संवाद सूत्र, जागरण रायवाला। Chardham Yatra: उत्तराखंड चारधाम यात्रा शुरू होने के साथ ही रायवाला स्थित पौराणिक सत्यनारायण मंदिर में भी श्रद्धालुओं का आगमन शुरू गया है। मंदिर 600 साल से भी अधिक पुराना है। यहां के बारे में कहा जाता है कि यह स्थान चारधाम यात्रा का पहला चरण है। यात्रा शुरू करने से पहले यहां भगवान नारायण से अनुमति लेनी होती है। यही वजह है कि यहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते ही और दर्शन के बाद ही आगे बढ़ते हैं।

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    मंदिर के पुजारी राजकिशोर तिवाड़ी बताते हैं कि यह मंदिर चारधाम यात्रियों की आस्था का केंद्र है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में माथा टेककर अपनी यात्रा आरंभ करते हैं। साथ ही यहां आए दिन यहां धार्मिक आयोजन, कथाओं और भंडारों का आयोजन चलता रहता है। श्रद्धालुओं का कहना है कि भगवान सत्यनारायण सभी की मनोकामना पूरी करते हैं।

    सत्यनारायण मंदिर स्थित लक्ष्मी नारायण जी का विग्रह व पुजारी।

    सौंग नदी किनारे स्थित है मंदिर

    यह मंदिर हरिद्वार-ऋषिकेश राजमार्ग पर रायवाला के समीप सौंग नदी तट पर स्थापित है। हरिद्वार से इसकी दूरी 15 किलोमीटर है। लक्ष्मी-नारायण के विग्रह के अलावा यहां भगवान गरुड़ की प्रतिमा भी विराजमान है। गरुड़ मंदिर के पास पहले स्नान कुंड भी था। जहां सौंग नदी से जलधारा आती थी। यह कुंड अब बन्द हो गया है। मगर इसके अवशेष अब भी मौजूद हैं। प्राचीन काल में तीर्थ यात्री कुंड में स्नान व यहां विश्राम करने के बाद ही आगे बढ़ते थे।

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    यात्रा की प्रथम चट्टी है सत्यनारायण

    पुराणों में सत्यनारायण मंदिर की महिमा का बखान किया गया है। पंडित राजकिशोर तिवाड़ी बताते हैं कि स्कंद पुराण में इस मंदिर के बारे में भी विस्तार से उल्लेख मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस मंदिर को बदरीनाथ धाम की प्रथम चट्टी के रूप में माना जाता है। बाबा काली कमली वाले ने 1532 में इसकी स्थापना की थी। इस मंदिर का लगभग 600 साल का इतिहास यहां स्थानीय लोगों के पास मौजूद है। लेकिन, कहा जाता है कि इस मंदिर की पौराणिकता इससे भी कई अधिक वर्षों की है।

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