पहाड़ का पानी अब लिखेगा नई कहानी, बारिश के पानी का होगा संचय
पहाड़ से युवाओं के पलायन को थामने के लिए सरकार योजना बना रही है तो अब बारिश के पानी के संचय की दिशा में भी तेजी से कदम बढ़ाए गए हैं।
देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड में कहावत प्रचलित है कि पहाड़ का पानी व जवानी यहां के काम नहीं आते, लेकिन अब इसे लेकर तस्वीर बदलने लगी है। पहाड़ से युवाओं के पलायन को थामने के लिए सरकार योजना बना रही है तो अब बारिश के पानी के संचय की दिशा में भी तेजी से कदम बढ़ाए गए हैं। वर्षा जल संचय क्षमता विकसित करने की दिशा में बीते साल के नतीजों से उत्साहित सरकार ने इस बार राज्य में 150 करोड़ लीटर जल संचय क्षमता विकसित करने का निश्चय किया है।
प्रदेश में प्रतिवर्ष सामान्य तौर पर 1521 मिमी बारिश होती है, जिसमें मानसून की भागीदारी 1229 मिमी है। बावजूद इसके यह पानी यूं ही जाया होता रहा है। इसे उपयोग में लाने के मद्देनजर सरकार ने वर्षा जल संचय की मुहिम शुरू की है। इसके तहत बीते वर्ष 132 करोड़ लीटर वर्षा जल संचय की क्षमता राज्यभर में विकसित की गई। इसके लिए बड़ी संख्या में खाल-चाल (बड़े-छोटे तालाबनुमा गड्ढे), चेकडैम, कंटूर टैं्रच का निर्माण किया गया। कई क्षेत्रों में जलस्रोतों के रीचार्ज होने और जंगलों में आग की घटनाएं कम होने के रूप में इसके सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं।
इससे उत्साहित सरकार ने इस वर्ष 150 करोड़ लीटर वर्षा जल संचय की क्षमता विकसित करने की ठानी है। इस मुहिम के तहत वन, ग्राम्य विकास, सिंचाई, कृषि, पेयजल, जलागम समेत अन्य विभागों को लक्ष्य भी दे दिए गए हैं। अकेले वन विभाग को 38 करोड़ लीटर जल संचय क्षमता विकसित करने का लक्ष्य दिया गया है। गत वर्ष इस विभाग ने 50 करोड़ लीटर जल संचय क्षमता विकसित की थी।
वन एवं पेयजल सचिव अरविंद सिंह ह्यांकी के मुताबिक वर्षा जल संचय होने से जहां जलस्रोत रीचार्ज करने में मदद मिलेगी, वहीं गांवों के नजदीक खाल-चाल में जमा पानी का उपयोग खेती समेत दूसरे कार्यों में हो सकेगा। यही नहीं, जंगलों में नमी बरकरार रहेगी तो आग की घटनाएं कम होंगी। इस मुहिम के तहत सभी विभागों ने खाल-चाल, चेकडैम, कंटूर ट्रैंच निर्माण के कार्य शुरू कर दिए हैं। आमजन को भी मुहिम से जोड़ा जा रहा है।
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फिर जिंदा होंगे नौले-धारे
वर्षा जल संचय क्षमता विकसित करने की मुहिम में पर्वतीय क्षेत्रों में पुराने व सूख चुके नौले-धारे (जलस्रोत) के साथ ही गदेरे (बरसाती नदियां) भी पुनर्जीवित किए जाएंगे। इस कड़ी में इनके जलसमेट क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) पर फोकस करते हुए वहां जल संरक्षण में सहायक पौधे लगाने समेत अन्य कदम उठाए जाएंगे।
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