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नया ट्रैफिक प्लान से कुछ नहीं तो तजुर्बा ही सही

अब स्मार्ट सिटी के निर्माण कार्यों की तैयारी के रूप में एक बार फिर पुलिस ने नया ट्रैफिक प्लान तैयार किया है। इसका ट्रायल करते हुए कुछ रूटों में बदलाव किया गया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 20 Jan 2020 12:25 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 12:25 PM (IST)
नया ट्रैफिक प्लान से कुछ नहीं तो तजुर्बा ही सही
नया ट्रैफिक प्लान से कुछ नहीं तो तजुर्बा ही सही

देहरादून, सोबन सिंह गुसाईं। राजधानी के लिए जाम उस लाइलाज मर्ज की तरह हो गया है, जो लाख इलाज करने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ता। वर्षों तक जूझने के बाद शहरवासियों ने भी अब इस परेशानी को आत्मसात कर लिया है। इस वक्फे में शहर में कई पुलिस अधिकारी आए और गए। तकरीबन सभी ने यातायात व्यवस्था कैसे सुचारू हो, इस पर मंथन भी किया, लेकिन हालात जस के तस रहे।

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अब स्मार्ट सिटी के निर्माण कार्यों की तैयारी के रूप में एक बार फिर पुलिस ने नया ट्रैफिक प्लान तैयार किया है। रविवार को इसका ट्रायल करते हुए कुछ रूटों में बदलाव किया गया तो कुछ वन-वे कर दिए गए। नई व्यवस्था को पूरे नंबरों से पास कराने के लिए कप्तान साहब ने पूरा अमला सड़कों पर उतार दिया। हालांकि, शहरवासियों का रुख इसको लेकर मिला-जुला रहा। लोगों ने पुलिस की इस नई कवायद को अगर पास नहीं किया तो पूरी तरह फेल भी नहीं बताया। खैर, समस्या का समाधान न सही इस कदम से कुछ तजुर्बा तो हासिल ही हुआ। अब देखना यह है कि पुलिस का ये प्लान भी बाकियों की तरह ठंडे बस्ते में न चला जाए।

छुट्टी मिले तो बात बनें

पुलिस विभाग में स्टाफ की कमी के कारण छुट्टियों की समस्या हमेशा बनी रहती है। जिन पुलिसकर्मियों की ड्यूटी ऑफिस में अच्छी जगह लगी है, वहां तो जैसे-तैसे छुट्टी मिल भी जाती है, लेकिन फील्ड कर्मियों के लिए छुट्टी मिलना किसी जंग जीतने से कम नहीं है। पुलिसकर्मी यह भी कहते नहीं थक रहे कि विभाग की ओर से जितनी छुट्टियां मिलती हैं, उतनी भी समय पर मिल जाएं तो उनके लिए काफी हैं।  ड्यूटी का टाइम भी पुलिसकर्मियों को काफी परेशान किए हुए हैं। पुलिसकर्मी यह भी कहते दिख रहे हैं कि चाहे 10 से 12 घंटे ड्यूटी लगा दो, लेकिन कम से कम ड्यूटी का टाइम फिक्स तो होना ही चाहिए। उन्हें कभी भी ऑफिस बुलाकर काम करवाया जाता है। जिससे उनके निजी जीवन में भी सामंजस्य बिठाना मुश्किल हो रहा है। इसलिए बदलाव की जरूरत है।

कार्यक्रमों तक सीमित यातायात का पाठ

बढ़ती जनसंख्या के कारण दुर्घटनाओं का आंकड़ा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। स्कूलों में यातायात का पाठ केवल किताबों में ही पढ़ाया जा रहा है। वहीं यातायात विभाग भी यातायात सप्ताह के नाम पर सिर्फ जागरूकता कार्यक्रम चलाकर कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है। अब पुलिस की बात करें तो वह भी यातायात नियम तोड़ने की कार्रवाई के नाम पर सिर्फ हेलमेट चालान तक ही सीमित रहती है। जबकि जरूरत है सख्ती की। जो लोगों को नियम-कानून के पालन के प्रति जागरूक करे और उनकी जान भी बचाए। अगर शहर में यातायात नियम सख्ती से लागू हों तो हादसों में जरूर कमी आ सकती है। अधिकतर देखा गया है कि जहां पुलिस होती है, वहीं पर वाहन चालक नियमों का पालन करते हैं। इससे आगे बढ़ते ही लोग यातायात नियमों को बाय-बाय बोल देते हैं। सबसे पहले नियमों का पाठ सिटी बस चालकों और विक्रमों चालकों को पढ़ाया जाना चाहिए, जोकि अंधाधुंध स्पीड में सड़कों पर दौड़ते हैं।

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बुलट फिर छोड़ने लगी पटाखे

बुलट के शौकीन खुलेआम यातायात नियमों का धुआं निकाल रहे हैं। पुलिस अधिकारियों की सख्ती से कुछ समय पहले तक लोग सलीके से बुलट का इस्तेमाल कर रहे थे, लेकिन अब फिर से नियमों की धज्जियां उड़नी शुरू हो गई हैं। बुलट चालक पटाखे छोड़ते हुए आम देखे जा सकते हैं। अक्सर रात को बुलट चालक ऐसे तूफान की तरह निकलते हैं कि चौक-चौराहों पर खड़े पुलिसकर्मी भी उन्हें देखते रह जाते हैं। शहरवासी भी इनसे परेशान हैं। पुलिस इन चालकों का कोई स्थायी हल नहीं ढूंढ पा रही है। इन पर रोक लगाने के लिए पुलिस को एक बार फिर बड़े स्तर पर कार्रवाई करने की जरूरत है ताकि लोगों को राहत मिल सके। धीरे-धीरे पटाखे छोड़ने वाले बुलट चालकों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती जा रही है।

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