Coronavirus: कोरोना से जंग की खातिर पुलिस ने परिवार से बना ली दूरी
कोरोना से लड़ने के लिए उत्तराखंड पुलिस योद्धा बनकर काम कर रही है। अधिकारी रात-दिन पुलिस टीम के साथ सड़कों पर व्यवस्था बनाने में लगे हैं। उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई है।
देहरादून, जेएनएन। कोरोना से लड़ने के लिए उत्तराखंड पुलिस योद्धा बनकर काम कर रही है। अधिकारी रात-दिन पुलिस टीम के साथ सड़कों पर व्यवस्था बनाने में लगे हैं। प्रयास किया जा रहा है कि लॉकडाउन को सफल बनाया जाए और रोजमर्रा की जरूरतों को लेकर लोगों को किसी तरह की दिक्कत न हो। संक्रमण के खतरे को देखते हुए पुलिस कर्मियों ने कलेजे पर पत्थर रखकर परिवार और बच्चों तक से दूरी बना ली है। लेकिन प्रदेशवासियों को खतरे से बचाने के लिए उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई है।
पुलिस अधीक्षक ग्रामीण प्रमेंद्र डोबाल के अनुसार देहरादून ग्रामीण क्षेत्र के विकासनगर का इलाका हिमाचल प्रदेश से सटा होने के कारण उन्हें दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। जब से कोरोना का खतरा बढ़ा है, तब से पता नहीं चल रहा है कि कब सुबह हुई और कब दोपहर और कैसे शाम ढल गई। वह कहते हैं कि छह बजते ही घर से क्षेत्र के लिए निकल जाते हैं।
प्रमुख बाजारों में लगने वाले फोर्स को ब्रीफ करने के बाद सेलाकुई, विकासनगर जैसे सेंटर प्वाइंट से सभी से अपडेट लेते रहते हैं। इस दौरान नाश्ता मिल गया तो ठीक नहीं, कहीं से किसी तरह की गड़बड़ी की सूचना आ गई तो फिर उसका भी ठिकाना नहीं।
प्रमेंद्र डोबाल के मुताबिक, विकासनगर में ड्यूटी लगाने के बाद सेलाकुई में गरीबों-निराश्रितों के लिए खाने के पैकेट तैयार हो रहे थे, जिन्हें दोपहर होने से पहले बांटने की व्यवस्था कर दी जानी चाहिए थी। क्योंकि मेरी भूख तो तभी मिट जाएगी, जब सभी निराश्रितों और शेल्टर होम में समय गुजार रहे लोगों के मुंह तक निवाला पहुंच जाए। दोपहर दो बजे तक तकरीबन सभी तक जब खाना पहुंच गया तो गाड़ी में ही बैठकर खाना खाया।
लोग भी कर रहे हैं हमारी मदद
पुलिस अधीक्षक ग्रामीण के मुताबिक, कुछ लोग अपने आसपास चौराहों पर तैनात पुलिसकर्मियों के जज्बे को सलाम करते हैं। उन्हें समय पर चाय और पानी देने पहुंचते, तब उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब समझाते हुए उनकी मदद ली जाती है। दूसरी ओर कुछ दवा व्यापारी पुलिसकर्मियों को मास्क और सेनिटाइजर भी उपलब्ध करा रहे हैं।
बच्चों से बना ली है दूरी
पुलिस अधीक्षक ग्रामीण प्रमेंद्र डोबाल बताते हैं कि जब से कोरोना ड्यूटी शुरू हुई है, तब से उन्होंने बच्चों से दूरी बना ली है। पत्नी सरिता डोबाल इंटेलीजेंस में हैं, वह भी सुबह ड्यूटी को निकल जाती हैं। हम दोनों को ही कब कहां जाना पड़ जाए कोई ठिकाना नहीं रहता। ऐसे में अब घर में बच्चों का कमरा अलग कर दिया है। उनसे फोन पर बात होती है। देर शाम या रात जब घर पहुंचते हैं और पूरी तरह सेनिटाइज हो जाते हैं, तभी बच्चों को पास बुलाते हैं। वहीं, कई दिनों से बच्चे घर से बाहर भी नहीं निकल पा रहे हैं, लेकिन वह हमारे काम को बखूबी समझते हैं। थोड़ा मायूस तो होते हैं, लेकिन वह भी अब हालात की गंभीरता को समझने लगे हैं।
पुलिसकर्मियों को भी बचाना है
एसपी ग्रामीण कहते हैं कि क्षेत्र में लोगों की आवाजाही रोकने और लॉकडाउन को पूरी तरह से लागू करने के लिए डेढ़ दर्जन से अधिक प्वाइंट बनाए हैं। पुलिस की प्लानिंग है कि यदि इन जगहों पर लोगों को रोका गया तो लोगों का शहर में घूमना संभव नहीं होगा। इन जगहों पर भारी फोर्स तैनात की गई है। पीएसी को भी साथ लगाया गया है। पुलिस टीम लगातार चेकिंग कर रही हैं। इस दौरान सबसे अहम बात होती है कि पुलिसकर्मी को चेकिंग के दौरान संक्रमित व्यक्ति से दूर रखना। इसके लिए सभी को ग्लब्स, मास्क और सेनिटाइजर दिए गए हैं, उन्हें चेक करना होता है कि वह इसका सावधानी पूर्वक प्रयोग कर रहे हैं या नहीं।
पुलिस को लीड कर रही एसपी सिटी
कोरोना से जंग में एसपी सिटी श्वेता चौबे शहर की पुलिस को लीड कर रही हैं। बतौर श्वेता, रोजाना वह सुबह चार से पांच बजे के बीच घर से निकलती हैं। रात को कब घर जाना होगा, इसका पता नहीं होता। गुरूवार की सुबह पांच बजे ऑफिस पहुंच कर शहर के सभी थानेदारों और चौकी प्रभारियों से बात कर उन्हें सात बजे मार्केट खुलने के दौरान प्रमुख बाजारों में व्यवस्था बनाए रखने के बाबत दिशा-निर्देश दिए। नौ बजे तक यही चलता रहा, ऑफिस में ही हल्का नाश्ता करने के बाद शहर के भ्रमण पर निकलने के साथ गरीबों और निराश्रितों के भोजन का प्रबंध करने में जुट गईं।
उन्होंने बताया कि दरअसल, मेरे लिए यह सबसे अहम है कि लॉकडाउन की वजह से कोई भूखा न रह जाए। यही नहीं पुलिस कंट्रोल रूम में आए फोन कॉल्स पर नजर रखनी पड़ती है, सेट पर जैसे ही यह गूंजता है कि किसी को दवा की जरूरत है या घर में राशन आदि खत्म हो गया है तो उसे भी प्राथमिकता के आधार पर पूरा कराना होता है।
बच्चों को गले लगाए कई दिन गुजरे
एसपी सिटी थोड़ा भावुक होकर कहती हैं कि, दिन भर लोगों के बीच रहने के कारण परिवार से भी दूरी बना ली है। बच्चों को अलग कमरों में शिफ्ट कर दिया है। कोशिश होती है कि बच्चे सो जाएं तब घर पहुंचूं, इसलिए उनसे फोन पर भी दुलारती रहती हूं। लेकिन बच्चे तो बच्चे हैं। जैसे ही गाड़ी के आने की आवाज सुनते हैं तो पास आने की कोशिश करते हैं, तब उन्हें बड़ी मुश्किल से समझा पाती हूं।
हालांकि पूरी तरह सेनिटाइज होने के बाद बच्चों के पास जाते हैं, ताकि परिवार सुरक्षित रहे। क्योंकि अगर हम सुरक्षित रहंेगे, तभी आम लोगों की सेवा कर पाएंगे। आज पंद्रह दिन हो गए, अपने बच्चों को छुआ तक नहीं।
लोगों की तारीफ से बढ़ता है हौसला
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, सुबह से शाम तक लोगों के लिए व्यवस्था करने, लॉकडाउन को प्रभावी बनाने और अधिकारियों के निर्देशों पर अमल करना ही प्राथमिकता है। जब कहीं चेकिंग आदि के लिए रुकती हैं तो लोग पुलिस की खूब तारीफ करते हैं, इससे हम सभी का हौसला बढ़ता है। इतना ही नहीं चौराहों और कॉलोनियों में पिकेट के आसपास रहने वाले लोग सुबह-शाम चाय-नाश्ते के लिए पुलिस वालों को पूछ लेते हैं तो हमें भी अपनेपन का संबल मिलता है।
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