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यहां 12 लाख 50 हजार की धोखाधड़ी को सिविल मैटर बता टरकाया, जानिए

पुलिस ने धोखाधड़ी के एक मामले को सिविल मैटर बताकर टरका दिया। पीड़ित व्यक्ति को इस बात की जानकारी तब मिली जब उन्होंने आरटीआइ में जानकारी मांगी।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 04:38 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 04:38 PM (IST)
यहां 12 लाख 50 हजार की धोखाधड़ी को सिविल मैटर बता टरकाया, जानिए
यहां 12 लाख 50 हजार की धोखाधड़ी को सिविल मैटर बता टरकाया, जानिए

देहरादून, जेएनएन। पुलिस ने 12.50 लाख रुपये की धोखाधड़ी के एक मामले को सिविल मैटर बताकर टरका दिया। पीड़ित व्यक्ति को इस बात की जानकारी तब मिली, जब उन्होंने आरटीआइ में जानकारी मांगी। अपील के रूप में सूचना आयोग पहुंचे इस प्रकरण में राज्य सूचना आयुक्त चंद्र सिंह नपलच्याल ने पुलिस को कार्रवाई के निर्देश जारी किए हैं। 

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12 लाख 50 हजार रुपये की धोखाधड़ी को लेकर सहसपुर के शेरपुर वासा गांव के निवासी महेश्वर प्रसाद ने 17 अप्रैल 2018 को एसएसपी को शिकायत भेजी थी। इस शिकायती पत्र पर की गई कार्रवार्इ को लेकर महेश्वर प्रसाद ने 20 अप्रैल को एसएसपी कार्यालय से आरटीआइ में जानकारी मांगी। यहां से आरटीआइ का आवेदन पत्र सहसपुर पुलिस को अंतरित कर दिया गया था। 

तय समय के भीतर जवाब न मिलने पर उन्होंने डीआइजी कार्यालय में इसकी अपील की। तब जाकर सहसपुर के थानाध्यक्ष ने जवाब दिया कि मामले में जांच की जा रही है और इस क्रम में उन्हें पहले पांच जून और फिर 25 जून को उपस्थित होना पड़ेगा। पांच जून को महेश्वर प्रसाद के शहर से बाहर होने के चलते वह उपस्थित नहीं हो पाए। इसके बाद सहसपुर पुलिस का एक पत्र उन्हें मिला, जिसमें कहा गया था कि यह प्रकरण सिविल प्रवृत्ति का है। हालांकि इसके बाद वह 25 जून को पुलिस के समक्ष प्रस्तुत हुए, मगर तब तक प्रकरण को समाप्त किया जा चुका था। 

इसके बाद महेश्वर ने सूचना आयोग में अपील दायर की। अपील पर सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त चंद्र सिंह नपलच्याल ने पाया कि महेश्वर सिंह ने अलग-अलग तिथियों में जब्बार और राजू रावत नाम के व्यक्ति को बैंक के माध्यम से साढ़े नौ लाख रुपये और तीन लाख रुपये कैश में दिए हैं। आयुक्त नपलच्याल ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यहां पर रकम दिए जाने की पुष्टि हो रही है। ऐसे में पुलिस को आइपीसी की धारा 420 यानि धोखाधड़ी के तहत कार्रवाई करनी चाहिए थी। लिहाजा, सहसपुर थानाध्यक्ष दोबारा मामले की जांच करें और विधिक कार्रवार्इ को अमल में लाकर उससे आयोग को भी अवगत कराएं। 

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