277 पीएचडी डिग्री की अनियमितताओं की जांच की आंच भी पड़ गई मंद
उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय ने जाने कैसी तकनीक अपनाई कि 277 पीएचडी डिग्री की अनियमितताओं की जांच की आंच भी मंद पड़ गई।
देहरादून, सुमन सेमवाल। उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय ने जाने कैसी तकनीक अपनाई कि 277 पीएचडी डिग्री की अनियमितताओं की जांच की आंच भी मंद पड़ गई। वर्ष 2012 से 2016 के बीच बरती गई अनियमितताओं पर राजभवन की संस्तुति भी ठंडे बस्ते में डाल दी गई। ऐसा नहीं कि यह कोरी शिकायत है, बल्कि तीन सदस्यीय जांच कमेटी की रिपोर्ट में गड़बड़ी उजागर भी हो चुकी है। विश्वविद्यालय के कुलाधिपति राज्यपाल हैं तो राजभवन इस पर शासन को कार्रवाई की संस्तुति भी कर चुका है। अब शासन ही प्रदेश के पहले नागरिक की संस्तुति को अनदेखा करने लगे तो कोई क्या कर सकता है। इस टालमटोल के बीच कई अपात्र लोग पीएचडी की डिग्री भी झटक चुके हैं। इस तरह के अयोग्य प्रोडक्ट इस डिग्री का प्रयोग करेंगे तो हो गया शिक्षा उन्नयन। क्योंकि जिस इमारत की नींव ही गड़बड़ हो तो वह कब तक बुलंद रह पाती है, यह बताने की जरूरत नहीं।
गड़बड़ी का पर्याय यूटीयू
लोग गलतियों से सबक लेते हैं और उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय की प्रवृत्ति गलती पर गलती करने की बन गई है। वर्ष 2018 में 212 परीक्षार्थियों ने प्रश्नपत्रों में गड़बड़ी की शिकायत कराई थी। इनका तो विवि ने निस्तारण किया नहीं और अगले ही साल 2019 में यह आंकड़ा 1173 जा पहुंचा। मजाल है जो किसी जिम्मेदार पर इसकी आंच आई हो। फिर गड़बड़ी कहां से दूर की जाती। ऐसा भी नहीं कि प्रश्नपत्रों में छोटी-मोटी गलती रही हो। गलत प्रश्नों के साथ ही एक प्रश्नपत्र के सवाल दूसरे पत्रों में भी रिपीट कर दिए गए। ऐसे में कई छात्रों का रिजल्ट तक अटक गया। पर, छात्रों की पड़ी किसे है। विवि प्रशासन तो गलतियों पर गलती करने और फिर उसके डैमेज कंट्रोल में जुटा है। सवाल उठने लगे है कि जिस दून को स्कूलों की राजधानी का तमगा मिला है, क्या वह उच्च शिक्षा का भी आदर्श हब बन पाएगा।
अब करके दिखाओ मनमानी
कड़ाके की सर्दी हो या मूसलाधार बारिश, हमारे ज्यादातर निजी स्कूल बच्चों की छुट्टी करने को राजी नहीं होते। कारोना वायरस से सुरक्षा के मद्देनजर स्कूल बंद करने के आदेश को भी स्कूल संचालकों ने उसी नजर से देखा। हालांकि, सरकारी आदेश पचाने के आदी बन चुके स्कूल पहली बार फंदे में फंसे हैं। स्कूल प्रशासन इस अकड़ में रहते हैं कि अफसरों के बच्चे भी तो उनके यहां पढ़ते हैं। पर इस बार सारी खुशफहमी धुलती दिख रही है। जिलाधिकारी डॉ. आशीष श्रीवास्तव ने नाफरमानी करने वाले कई स्कूलों को चिह्नीतत कराया है। मुख्य शिक्षाधिकारी को आदेश भी दे डाले कि जो स्कूल बाज नहीं आ रहे, उन पर सीधे डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट में मुकदमा दर्ज करो। गलतफहमी के शिकार स्कूलों के प्रबंधन की हालत अब खिसियाई बिल्ली खंभा नोचे जैसी है। जो कोरोना राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जा चुका है, उस पर भी नहीं चेते तो कब चेतेंगे।
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हम सब कठघरे में
दूसरे को दोष देना दुनिया का सबसे आसान काम है। पर बात तो तब है, जब अपने दोष देखे जाएं। ऐसा हो पाता तो आज दून की तमाम कॉलोनियों की सड़कें महज 20-25 फीट चौड़ी नहीं होती। दो कारें भी एक साथ आमने-सामने हो जाएं तो उनका गुजरना भारी पड़ जाता है। सड़क के लिए अपने हिस्से की एक इंच जगह छोडऩा तो दूर सड़क के हिस्से की जमीन मारने में भी लोग पीछे नहीं रहते। नतीजा तो रोज दून की कॉलोनियों में दिख ही रहा है। बेशक सिस्टम की अनदेखी भी इसकी वजह है, पर क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं? क्या यह शहर हमारा नहीं? ताजा मामला शनिवार सुबह जोगीवाला के पास अलकनंदा एन्क्लेव की सड़क का है। एक बस इस सड़क पर क्या घुसी कि पूरा ट्रैफिक ठप हो गया। प्रकरण एक कॉलोनी का है, मगर हाल अधिकतर का ऐसा ही है। चेत सकें तो अब चेत जाइए।
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