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जानिए क्या है जूना अखाड़े का इतिहास, जिससे जुड़े हैं पालघर मॉब लिंचिंग के शिकार हुए साधु

पालघर में हुई मॉबलिंचिंग का शिकार हुए साधु जूना अखाड़ा से जुड़े हैं। पुलिस की मौजूदगी में संतों और उनके ड्राइवर की हत्या पर हरिद्वार में भी संत समाज बेहद आक्रोशित है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 20 Apr 2020 10:41 PM (IST)Updated: Mon, 20 Apr 2020 10:41 PM (IST)
जानिए क्या है जूना अखाड़े का इतिहास, जिससे जुड़े हैं पालघर मॉब लिंचिंग के शिकार हुए साधु
जानिए क्या है जूना अखाड़े का इतिहास, जिससे जुड़े हैं पालघर मॉब लिंचिंग के शिकार हुए साधु

देहरादून, जेएनएन। महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं की मॉब लिंचिंग कर दी गई। ये दोनों ही जूना अखाड़ा से जुड़े हुए थे। आरोप है कि पुलिस की मौजूदगी में साधुओं और उनके ड्राइवर की हत्या  कर दी गई, जिसपर हरिद्वार में भी संत समाज बेहद आक्रोशित है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि ने हत्यारों को फांसी देने की मांग की है। तो चलिए इस पूरे मामले और नागा साधुओं के सबसे बड़े अखाड़े जूना अखाड़े के इतिहास के बारे में जानते हैं।     

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क्या है पूरा मामला 

महाराष्ट्र के पालघर जनपद के गढ़चिंचले गांव में 16 अप्रैल की रात को जूना अखाड़ा से संबंधित दो संत मॉबलिंचिंग का शिकार हुए थे। ये घटना उसवक्त घटी जब ये दोनों गाड़ी से अपने गुरु की अंत्येष्टि में शामिल होने सूरत जा रहे थे। इस बीच भीड़ ने दोनों संतों और उनके ड्राइवर को पुलिस के सामने पीट-पीटकर मौत के घाट उतार डाला। बताया जा रहा है कि इन्हें बच्चा चोर समझकर मारा गया। 

निहत्थे संतों की हत्या करने वाले नहीं हो सकते इंसान 

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरी ने कहा कि निहत्थे संतों की हत्या करने वाले इंसान नहीं हो सकते। पुलिस की मौजूदगी में तीन लोगों से कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा हो गया है। इसकी जांच होनी चाहिए। संतों को बचाने में नाकाम रहे पुलिसकर्मियों को तत्काल नौकरी से बर्खास्त किया जाए। वहीं, अखाड़ा परिषद के महामंत्री और जूना अखाड़ा सरंक्षक श्रीमहंत हरि गिरि ने कहा कि संतों की हत्या करने वालों को फांसी से कम कुछ मंजूर नहीं है। सिद्धपीठ श्री दक्षिण काली पीठाधीश्वर महांडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी बेकसूर निहत्थे संतों की निर्मम हत्या अत्यन्त निंदनीय है। श्री सिद्धेश्वर महादेव मिस्सरपुर कनखल के महंत विनोद गिरि हनुमान बाबा ने कहा कि उच्चस्तरीय जांच कर फास्टट्रैक कोर्ट में मामला चलाते हुए इतनी सख्त कार्रवाई की जाए। वहीं महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि ने इस बारे में कुंभ मेलाधिकारी को ज्ञापन देकर कार्रवाई की मांग की।

जूना अखाड़े के इतिहास पर एक नजर 

श्रीपंचायती दशनाम् जूनादत्त कहें या जूना अखाड़ा। इस अखाड़े की स्थापना 1145 में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग(चमोली) में हुई थी। (भगवान शंकराचार्य के जन्म के हिसाब से इसकी स्थापना विक्रम संवत् 1202 में मानी जाती है)। हरिद्वार में भी इसकी स्थापना का वर्ष यही बताया जाता है। श्रीपंचदशनाम् जूना अखाड़ा नागा साधुओं का सबसे बड़ा अखाड़ा है, जिसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं। इनके ईष्ट देव रुद्रावतार भगवान दत्तात्रेय हैं। 

जूना अखाड़ा का मुख्यालय केंद्र वाराणसी में बड़ा हनुमान घाट पर है और हरिद्वार में मायादेवी मंदिर पर भी अखाड़े का  केंद्र स्थित। नागा संन्यासियों की सबसे अधिक संख्या इसी अखाड़े में है। इस अखाड़े के नागा साधु जब शाही स्नान के लिए बढ़ते हैं, तो मेले में आए श्रद्धालुओं समेत पूरी दुनिया उस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए जहां की तहां रुक जाती है। इस समय इसके आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज हैं। वह महामृतंजय आश्रम टेढ़ी नीम वाराणसी और हरिद्वार में कनखल स्थित हरिहर आश्रम में रहते हैं। 

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17 सदस्यीय कमेटी करती है जूना अखाड़े का संचालन  

जूना अखाड़े का संचालन 17 सदस्यीय कमेटी करती है। मां मायादेवी मंदिर, आनंद भैरव मंदिर, श्री हरिहर महादेव पारद शिवलिंग महादेव मंदिर इसी अखाड़े के अधीन है। हरिद्वार में यह अखाड़े काफी प्राचीन हैं। कई ऐतिहासिक और धार्मिक पुस्तकों में भी इसका वर्णन मिलता है। इस समय अखाड़े में दर्जन से अधिक की संख्या में महामंडलेश्वर हैं, जिनकी शोभा यात्रा कुंभ मेले की शान होती है और उसे भव्यता और दिव्यता प्रदान करती है। अखाड़े की अन्य शाखाएं देश भर में फैली हुई हैं। बनारस, जूनागढ़, उज्जैन, नासिक, अमरकंटक, ओंकारेश्वर प्रमुख हैं।

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