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    Pahalgam Attack: पहलगाम से देहरादून लौटे परिवार ने सुनाई आपबीती, कहा- 'ऐन वक्त पर कार्यक्रम न बदलता, तो...'

    उत्तराखंड सरकार के संयुक्त निदेशक के.एस. चौहान अपने परिवार के साथ पहलगाम में आतंकी हमले के समय मौजूद थे। उन्होंने बताया कि कैसे बैसरन वैली जाने का कार्यक्रम बदलने से वे सुरक्षित रहे। हमले के बाद बेताब वैली में अफरा-तफरी मच गई और पर्यटकों में डर का माहौल था। मुख्यमंत्री धामी ने चौहान से फोन पर बात कर उनका हालचाल जाना।

    By Vikas dhulia Edited By: Nirmala Bohra Updated: Thu, 24 Apr 2025 12:34 PM (IST)
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    परिवार संग कश्‍मीर में सूचना एवं लोक संपर्क विभाग में संयुक्त निदेशक केएस चौहान।

    जागरण संवाददाता, देहरादून। Pahalgam Attack: उत्तराखंड सरकार के सूचना एवं लोक संपर्क विभाग में संयुक्त निदेशक केएस चौहान मंगलवार को आतंकी हमले के समय कश्मीर के पहलगाम में ही थे। वह एलटीसी लेकर परिवार के साथ कश्मीर भ्रमण पर गए थे।

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    दैनिक जागरण ने उनसे पहलगाम आतंकी हमले के बाद के उनके अनुभव और 24 घंटे में उन्होंने जो महसूस किया, के बारे में जानना चाहा। केएस चौहान का कभी न भूलने वाला यह अनुभव उनकी ही लेखनी से आपके समक्ष प्रस्तुत है।

    दोपहर लगभग एक बजे पहुंचे पहलगाम

    हम मंगलवार सुबह 10 बजे श्रीनगर से चलकर दोपहर लगभग एक बजे पहलगाम पहुंचे। इरादा था घोड़े लेकर बैसरन वैली जाने का, क्योंकि वहां की प्राकृतिक खूबसूरती के बारे में काफी सुना था। साथ थे पत्नी सुमित्रा, बेटा अभिनव व बेटी अनन्या। लगभग सौ किमी सड़क का सफर किया था तो बेटे ने कहा कि पहले होटल में चेक इन कर लेते हैं, फिर लंच कर चार-पांच किमी दूर स्थित बैसरन वैली जाएंगे।

    यही तय हुआ और दोपहर डेढ़ बजे रेडिसन रिसार्ट पहुंच गए। दो बजे रिसार्ट से बाहर आए तो पहले बेताब वैली और उसके बाद बैसरन जाने का कार्यक्रम फाइनल हुआ। अभी रास्ते में ही थे कि देहरादून से किसी परिचित का फोन आया, आप कहां हैं। उन्हें मालूम था कि पूरा परिवार कश्मीर घूमने के लिए गया है।

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    मैंने बताया कि अभी पहलगाम में हैं, तो उधर से जो कहा गया, उससे पैरों तले जमीन खिसक गई। बताया गया कि पहलगाम में आतंकी हमला हुआ है। अपने ड्राइवर से पूछा, उसने एक दूसरा वाहन रुकवाकर जानकारी ली। किसी घटना की बात तो हुई, लेकिन तब नहीं लगा कि इतना बड़ा आतंकी हमला हो गया है। बेताब वैली पहुंचे तो वहां आए पर्यटकों में अफरा-तफरी और भगदड़ दिखी। शाम चार बजे तक पूरी बेताब वैली खाली हो चुकी थी।

    लगभग पांच किमी की दूरी पर स्थित रिसार्ट लौटने लगे तो सड़क पर वाहनों की भारी भीड़ और लंबा जाम। ड्राइवर ने किसी तरह एक गांव होते हुए रिसार्ट पहुंचाया। वहां भी खलबली, तब महसूस हुआ कि वास्तव में कोई बड़ी घटना घट चुकी है। रिसार्ट में उस समय लगभग दो सौ पर्यटक ठहरे थे लेकिन फिर धीरे-धीरे होटल छोडऩे लगे। हर कोई डरा हुआ और भयभीत।

    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का आया फोन

    पहले सोचा कि हम भी श्रीनगर निकल जाएं, लेकिन वक्त अधिक हो गया था और रात में सफर करना उचित नहीं लगा। जब दोपहर में पहुंचे थे, चहल-पहल थी, लेकिन चंद घंटो में उसके ठीक उलट दृश्य रात को नजर आया, डरावना। इस रिसार्ट में काटेज बने हैं और देवदार के वृक्षों के बीच परिसर में इनकी दूरी सौ-दो सौ मीटर तक है। तब तक आतंकी हमले और इसमें असमय जान गंवाने वालों की संख्या की अपुष्ट जानकारी मिल गई थी। ऐसे में एक बड़ा रिसार्ट भी जंगल के बियाबां जैसा लग रहा था।

    इसी बीच रात लगभग 10 बजे देहरादून से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का फोन आया। उन्होंने कुशलक्षेम पूछी और किसी तरह की चिंता न करने को कहा। इससे काफी साहस और राहत मिली। रात 10 बजे के बाद बफे के लिए लगभग ढाई सौ मीटर दूर डिनर हाल में पहुंचे तो हमारे अलावा केवल एक अन्य परिवार वहां मौजूद था। वेटर भी काफी डरे-डरे दिखे। उन्होंने बताया कि रिसार्ट में जितने पर्यटक अभी हैं, सब अपने कमरों में हैं क्योंकि खुले में उन्हें अधिक भय महसूस हो रहा है।

    कोई दरवाजा खटखटाए तो बिल्कुल मत खोलिएगा

    स्टाफ ने हमें भी कहा कि अगर रात में कोई दरवाजा खटखटाए तो बिल्कुल मत खोलिएगा। वापस अपनी काटेज में लौटे तो नींद पूरी तरह उड़ चुकी थी। देखा-पढ़ा इस वक्त याद आ रहा था कि आतंकवादी ऐसे ही जंगलों की पनाह लेते हैं।

    आधी रात को रिसेप्शन पर फोन किया तो बताया गया कि सैन्य, अर्द्ध सैन्य बलों के कमांडो सुरक्षा के लिए आ गए हैं, चिंता की कोई बात नहीं। इस आश्वासन के बाद भी नींद आंखों से कोसों दूर, बस सब यही सोच रहे थे कि किसी तरह यह रात कट जाए।

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    सुबह आठ बजे रिसार्ट छोडऩे से पहले जानकारी ली कि क्या सुरक्षा बल श्रीनगर तक सड़क मार्ग से जाने की अनुमति देंगे, क्योंकि हमारी फ्लाइट दोपहर दो बजे दिल्ली के लिए रवाना होनी थी। बताया गया कि जा सकते हैं तो आठ बजे चेक आउट कर श्रीनगर के लिए रवाना हो गए। पूरे रास्ते पर्यटकों के अलावा सुरक्षा बलों और पुलिस के वाहन बड़ी संख्या में नजर आए। हम 19 अप्रैल को कश्मीर पहुंचे थे, लेकिन अंतिम चौबीस घंटे जिस तरह गुजरे, उसने जीवन के एक भयावह अनुभव से रूबरू कराया।