स्कूल वैन में 11 सीट पर मिले 18 बच्चे, ऐसे ओवरलोड वाहन किए गए सीज
स्कूली वाहनों को लेकर चेकिंग अभियान चलाया तो एक वैन में 18 बच्चे ठूंसे हुए मिले जबकि वैन में नियमानुसार सिर्फ 11 बच्चे ही बैठाए जा सकते हैं।
देहरादून, जेएनएन। शहर में स्कूली बच्चों को ले जा रहे प्राइवेट वैन के चालकों ने ओवरलोडिंग की सीमा पार कर दी है। बच्चों को ठूंस-ठूंसकर वैन में डिग्गी तक में बैठाकर ढोया जा रहा। बुधवार को परिवहन विभाग की टीम ने स्कूली वाहनों को लेकर चेकिंग अभियान चलाया तो एक वैन में 18 बच्चे ठूंसे हुए मिले, जबकि वैन में नियमानुसार सिर्फ 11 बच्चे ही बैठाए जा सकते हैं। ऐसे ओवरलोड वाहनों को सीज किया गया। अभियान में दस वाहन सीज व 55 के चालान किए गए। सीज वाहनों में एक प्राइवेट वाल्वो बस व दो ट्रैक्टर ट्राली भी शामिल हैं।
देहरादून शहर में महज 10 फीसद स्कूल या कालेज ही ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी बसें लगा रखी हैं, जबकि 40 फीसद स्कूल ऐसे हैं जो बुकिंग पर सिटी बस और निजी बसें लेकर बच्चों को परिवहन सुविधा उपलब्ध कराते हैं। बाकी 50 फीसद स्कूल भगवान भरोसे रहते हैं। इनके बच्चे निजी वैन और ऑटो या अपने वाहनों के जरिए स्कूल आते जाते हैं। ऐसे में निजी वैन व ऑटो चालक अभिभावकों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए ओवरलोडिंग करते हैं।
एआरटीओ प्रवर्तन अरविंद पांडे के निर्देशन में चले अभियान में 22 स्कूली वाहनों पर कार्रवाई हुई और दो वैन व दो ऑटो सीज किए गए। दिल्ली के लिए जा रही डग्गामार वाल्वो बस भी सीज की गई। एनआइवीएच के पास बिना कागजात दौड़ रही दो ट्रैक्टर ट्राली भी सीज की गईं। स्कूली वाहनों पर ओवरलोडिंग व सुरक्षा मानक पूरे नहीं करने पर कार्रवाई की गई। अभियान रायपुर समेत लाडपुर, राजपुर, आइएसबीटी, कारगी चौक व अजबपुर आदि क्षेत्रों में चलाया गया।
अभिवभावकों के लिए विकल्प नहीं
निजी स्कूल बसों के साथ ही ऑटो व वैन चालक क्षमता से कहीं ज्यादा बच्चे ढोते हैं। इन्हें न नियम का ख्याल है और न सुरक्षा के इंतजाम। अभिभावक इन हालात से अंजान नहीं हैं, लेकिन दिक्कत ये है कि स्कूलों ने विकल्पहीनता की स्थिति में खड़ा किया हुआ है। निजी स्कूल यह जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं। उन्हें न बच्चों की परवाह है, न अभिभावकों की। बच्चे कैसे आ रहे या कैसे जा रहे हैं, स्कूल प्रबंधन को इससे कोई मतलब नहीं। अभिभावक इस विकल्पहीनता की वजह से निजी बसों या ऑटो-विक्रम को बुक कर बच्चों को भेज रहे हैं।
स्कूली वाहनों में सीटिंग मानक
एआरटीओ अरविंद पांडे ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की गाइड-लाइन के अनुसार स्कूली वाहन में पांच से 12 साल तक के बच्चों को एक यात्री पर आधी सवारी माना जाता है। स्कूल वैन में आठ सीट होती हैं। एक सीट चालक की और सात बच्चों की। सात बच्चों का आधा यानी साढ़े तीन बच्चे (यानी चार)। कुल मिलाकर वैन में पांच से 12 साल तक के 11 बच्चे ले जाए जा सकते हैं। इसी तरह बस अगर 34 सीट की है तो उसमें पांच से 12 साल के 50 बच्चे ले जाए सकते हैं।
पांच साल तक के बच्चे हैं मुफ्त
सुप्रीम कोर्ट की गाइड-लाइन में स्कूली वाहनों में पांच साल तक के बच्चों को मुफ्त ले जाने का प्रावधान है। तय नियम में स्पष्ट है कि ये बच्चे सीट की गिनती में नहीं आते। इसी नियम का फायदा उठाकर वाहन संचालक ओवरलोडिंग करते हैं और चेकिंग में पकड़े जाने पर आधे बच्चों की उम्र पांच साल से कम बताते हैं। यही नहीं कहीं पर भी पांच साल तक के बच्चों को मुफ्त ले जाने के नियम का अनुपालन नहीं किया जाता।
आटो-विक्रम में दरवाजे जरूरी
एआरटीओ के मुताबिक आटो व विक्रम भी स्कूली बच्चों को ले जा सकते हैं मगर इनमें दरवाजे लगाना जरूरी है। खिड़की पर रॉड या जाली लगानी होगी। साथ ही सीट की तय संख्या का पालन करना होगा। जैसे आटो में तीन सवारी के बदले पांच से 12 साल के सिर्फ पांच बच्चे सफर कर सकते हैं। विक्रम में छह सवारी के बदले उपरोक्त उम्र के नौ बच्चे ले जाए जा सकते हैं। इस दौरान शर्त यह भी है कि चालक के बगल में अगली सीट पर कोई नहीं बैठेगा। अगर इन मानकों को आटो-विक्रम पूरा नहीं कर रहे तो बच्चों के परिवहन में अभिभावकों का साथ होना जरूरी है।
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स्कूली वाहनों के मानक
-स्कूल वाहन का रंग सुनहरा पीला हो, उस पर दोनों ओर और बीच में चार इंटर मोटी नीले रंग की पट्टी हो।
-स्कूल बस में आगे-पीछे दरवाजों के अतिरिक्त दो आपातकालीन दरवाजे हों।
-सीटों के नीचे बैग रखने की व्यवस्था हो।
-बसों व अन्य वाहनों में स्पीड गवर्नर लगा हो।
-एलपीजी समेत सभी वाहनों में अग्निशमन संयंत्र मौजूद हो।
-पांच साल के अनुभव वाले चालकों से ही स्कूल वाहन संचालित कराया जाए।
-स्कूल वाहन में फस्र्ट एड बॉक्स की व्यवस्था हो।
-बसों की खिड़कियों के बाहर जाली या लोहे की डबल रॉड लगाना अनिवार्य।
-छात्राओं की बस में महिला परिचारक का होना अनिवार्य।
-वाहन चालक व परिचालक का पुलिस सत्यापन होना जरूरी।
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