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कुलपतियों की तलाश को गठित की जाने वाली सर्च कमेटी का आकार बढ़ाने की तैयारी, पढ़िए पूरी खबर

विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की तलाश को गठित की जाने वाली सर्च कमेटी का आकार बढ़ाने की तैयारी है। अब तक इसमें तीन सदस्य रहे हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Thu, 23 Jul 2020 05:44 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jul 2020 06:00 AM (IST)
कुलपतियों की तलाश को गठित की जाने वाली सर्च कमेटी का आकार बढ़ाने की तैयारी, पढ़िए पूरी खबर
कुलपतियों की तलाश को गठित की जाने वाली सर्च कमेटी का आकार बढ़ाने की तैयारी, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, जेएनएन। सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की तलाश को गठित की जाने वाली सर्च कमेटी का आकार बढ़ाने की तैयारी है। अब तक इसमें तीन सदस्य रहे हैं। इनकी संख्या बढ़ाकर पांच की जाएगी। प्रदेश में सरकारी विश्वविद्यालयों के लिए अंब्रेला एक्ट बनाने की कवायद चल रही है। एक्ट का मसौदा बनाने को गठित मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने सर्च कमेटी की सदस्य संख्या बढ़ाने की सिफारिश की है। इसकी वजह जानेंगे तो दंग रह जाएंगे।

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दून विश्वविद्यालय में एक कुलपति की नियुक्ति में पात्रता शर्तों की अनदेखी को लेकर सरकार की खूब किरकिरी हुई थी। मामला हाईकोर्ट में गया तो जवाब देने में सरकार के हाथ-पांव फूल गए। तत्कालीन सर्च कमेटी में कुलपति पद के आवेदकों की स्क्रीनिंग में असहमति के सुर उभरे थे। ऐसी कुछेक घटनाओं से सबक लेकर नई व्यवस्था की पैरवी की गई है। लिहाजा पांच सदस्यीय कमेटी में मतभेद हुए तो बहुमत के आधार पर फैसला किया जा सकेगा।

अधिकारों में कटौती की पहल

नए अंब्रेला एक्ट में सरकार अपने अधिकार में कटौती करने जा रही है। कुलपति की नियुक्ति में कुलाधिपति यानी राज्यपाल को ज्यादा तरजीह मिलेगी। मौजूदा व्यवस्था में सर्च कमेटी कुलपति पद का पैनल तैयार कर राजभवन भेजती है। राजभवन कुलपति के चयन में सरकार की सिफारिश को तवज्जो देता रहा है। कई मर्तबा ऐसा भी हुआ जब कुलपति पद पर पसंद को लेकर राजभवन और सरकार के बीच मतभेद गहरे हुए।

मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने कुलपति चयन में राज्यपाल के अधिकार की पैरवी की है। इस सिफारिश को लेकर समिति के सदस्य मंत्रियों ने काफी देर सिर खपाया। एक मत ये सामने आया कि सरकार की पसंद को पहली वरीयता मिलनी चाहिए। बाद में सहमति यह बनी कि राजभवन का ज्यादा अधिकार अच्छे कुलपतियों के चयन में अहम भूमिका निभा सकता है। अधिकारों के विकेंद्रीकरण पर यह तस्वीर पूरी तरह साफ तब होगी, जब इस फैसले पर मंत्रिमंडल की मुहर लगेगी।

वाह, दर्द को बनाया दवा

सरकार बहादुर जो न कर दें वही कम है। दर्द को ही दवा बना डाला। अब चमत्कार को सब नमस्कार कर रहे हैं। स्ववित्तपोषित बीएड पाठ्यक्रम चला रहे सरकारी डिग्री कॉलेजों ने बैठक में उच्च शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ धन सिंह रावत को पीड़ा सुनाई। बीएड का पुराना रुतबा घट गया है, जब बीएड डिग्रीधारक चुपके से बड़ी संख्या में बतौर प्राथमिक शिक्षक सरकारी नौकरी में एंट्री मार लेते थे। अब छात्र-छात्राएं कम दाखिला ले रहे हैं। संकट खड़ा हो गया है कि इन कॉलेजों में बीएड पाठ्यक्रम के लिए मानकों के मुताबिक रखे गए शिक्षक और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों का वेतन नहीं निकल पा रहा है। मंत्रीजी ने फैसला सुनाया हर कॉलेज में व्यावसायिक पाठ्यक्रम खोले जाएंगे। इसका खाका तैयार करने को उच्च शिक्षा अपर सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर दी वेतन न मिलने से परेशान कार्मिक अब व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के सुनहरे भविष्य को देखकर अचंभित हैं।

अफसर पर भड़के जनसंपर्क अधिकारी 

शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय के जनसंपर्क अधिकारी को कमजोर समझने की जुर्रत विभागीय अधिकारी को भारी पड़ गई। उत्तरकाशी जिले में मंत्रीजी की मौजूदगी में हरेला पर्व पर पर्यावरण संरक्षण का दृढ़ संकल्प जताने को कार्यक्रम हुआ। मौके पर मौजूद जनप्रतिनिधियों ने विभागीय समस्याओं का शिद्दत से जिक्र किया। जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक जितेंद्र सक्सेना स्थानीय नेताओं के निशाने पर आ गए।

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आरोप वही पुराना, काम नहीं करते हैं। मंत्रीजी ने भी अधिकारी को समझाया, भई ऐसे काम करो जिससे जनता खुश रहे। बातचीत के इस दौर में ही बात बिगड़ गई। जिले से ताल्लुक रखने वाले एक जनसंपर्क अधिकारी भड़क गए। इसके बाद सोशल मीडिया पर जनसंपर्क अधिकारी के थप्पड़ मारने की धमकी की बात वायरल हो गई। उक्त अधिकारी ने मंत्रीजी और शिक्षा महानिदेशक को पत्र लिखकर अभद्र व्यवहार की शिकायत की। अब मंत्रीजी ने भी सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर जांच के निर्देश दे दिए हैं। 

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