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तानाशाही के लिए देश में कोई स्थान नहीं: प्रकाश पंत

आपातकाल की 43वीं बरसी पर आयोजित इस संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि सरकार को आपातकाल के दौरान जेल जाने वालों का रिकार्ड लेकर उसे लिपिबद्ध करना चाहिए।

By Edited By: Published: Tue, 26 Jun 2018 03:01 AM (IST)Updated: Wed, 27 Jun 2018 05:20 PM (IST)
तानाशाही के लिए देश में कोई स्थान नहीं: प्रकाश पंत
तानाशाही के लिए देश में कोई स्थान नहीं: प्रकाश पंत

देहरादून, [जेएनएन]: श्री नित्यानंद स्वामी जनसेवार्थ समिति की ओर से 'लोकतंत्र का सरंक्षण, संव‌र्द्धन एक राष्ट्रीय सार्थकता' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में आपातकाल के दौरान उत्तराखंड समेत देश की अन्य जेलों में बंद रहे लोगों ने अपने अनुभव साझा किए। कहा कि इंदिरा गांधी की दमनकारी नीतियों के बावजूद संघ के सेवकों ने आपातकाल के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी जनांदोलन चलाया। इसी का नतीजा था कि 1977 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी को पराजय का मुंह देखना पड़ा। 

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आपातकाल की 43वीं बरसी पर आयोजित इस संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि सरकार को आपातकाल के दौरान जेल जाने वालों का रिकार्ड लेकर उसे लिपिबद्ध करना चाहिए। ताकि भविष्य की पीढ़ी जान सके कि आपातकाल के दौरान संघ के स्वयं सेवकों को कैसी यातनाएं सहनी पड़ीं।

मुख्य अतिथि वित्तमंत्री प्रकाश पंत ने कहा कि आपातकाल में इंदिरा गांधी ने लोकत्रंत को गला घोंटकर देशभर में जनसंघ के 1.30 लाख स्वयं सेवकों को जेलों में ठूंस दिया था। कुछ स्वयं सेवकों एवं आम लोगों को तो इतनी यातनाएं दी गईं कि उनकी जेल में ही मृत्यु हो गई। 

जसवीर सिंह, जार्ज फर्नाडिस के छोटे भाई लारेंस फर्नांडिस, गायत्री देवी, विजय लक्ष्मी, राज सिंधिया, दुर्गा भागवत जैसे कई नाम हैं, जिन्हें जेल में यातनाएं दी गई। 

पंत ने भरोसा दिलाया कि आपातकाल के दौरान जेलयात्रा करने वालों का रिकॉर्ड जुटाया जाएगा और उन्हें चिह्नित कर सम्मानित भी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि तानाशाही के लिए देश में कोई स्थान नहीं संगोष्ठी में स्वतंत्रता सेनानी एवं वरिष्ठ पत्रकार डॉ. आरके वर्मा व ओमपाल मिश्रा ने भी विचार रखे। 

इस मौके पर समिति के संरक्षक गोपाल कृष्ण मित्तल, सचिव गोपालपुरी, कार्यकारिणी सदस्य इंद्रपाल सिंह कोहली, संयोजक योगेश अग्रवाल आदि मौजूद रहे। 

लोकतंत्र बचाने को 110 दिन जेल लाजकृष्ण गांधी 

सहारनपुर के पूर्व विधायक एवं आपातकाल के दौरान जेल में रहे लाजकृष्ण गांधी ने अपने साथ घटी घटनाओं को सिलसिलेवार प्रस्तुत किया। बताया कि आपातकाल के दौरान वह बीए प्रथम वर्ष के छात्र थे। अपने छह साथियों के साथ आपातकाल का विरोध करने पर सात दिसंबर 1975 को उन्हें गिरफ्तार कर मेरठ जेल भेज दिया गया, जहां वे 110 रहे। बताया कि आपातकाल के दौरान जिन 1.30 लाख लोगों को जेलों में रखा गया था, उनमें एक लाख संघ से जुड़े थे। इसलिए देश की आजादी की दूसरी लड़ाई में संघ की भूमिका का उल्लेख इतिहास में होना चाहिए। अभिलेख एकत्र करे सरकार  

विजय विश्व संवाद केंद्र के निदेशक विजय कुमार ने कहा कि आपातकाल के खिलाफ लड़ाई करीब 19 महीने चली, लेकिन आज 43 साल बाद भी जिला प्रशासन जेलों में बंद रहे लोगों का रिकार्ड नहीं जुटा पाया। कहा कि सरकार को आपातकाल के अभिलेखों को एकत्र करने पर ध्यान देना चाहिए। 

मीडिया पर भी लगा प्रतिबंध 

उत्तरांचल उत्थान परिषद के अध्यक्ष प्रेम बड़ाकोटी ने कहा कि आपातकाल की घोषणा के अगले दिन समाचार पत्रों में संपादकीय पृष्ठ पर केवल एक प्रश्न वाचक चिह्न छपा था, जो प्रमाण था कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर भी प्रतिबंध लग चुका है। 

इन बंदियों को किया गया सम्मानित 

आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहे लोगों को वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। इनमें तारा चंद गुप्ता, ओमपाल शास्त्री, कुंवर सिंह, रणजीत सिंह, नीरज मित्तल, राजकुमार टांक, विजय शर्मा, हरीश, डॉ. विजयपाल सिंह, विद्यादत्त त्रिपाठी, मक्खन लाल, रणजीत सिंह जियाड़ा, हर्षवर्धन मिश्रा, विजय कुमार, शंभू प्रसाद भट्ट, धनश्याम, प्रेम बड़ाकोटी, डॉ. आरके वर्मा, सत्यदेव गुप्ता, लाजकृष्ण गांधी आदि शामिल थे।

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