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तीन तलाक बिल पास होने पर मुस्लिम महिलाओं ने बांटी मिठाई, बताया ऐतिहासिक फैसला

राज्यसभा में तीन तलाक बिल पास होने के बाद मुस्लिम महिलाओं ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी जताई और मोदी सरकार के इस फैसले को ऐतिहासिक करार दिया।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 31 Jul 2019 09:30 AM (IST)Updated: Wed, 31 Jul 2019 09:30 AM (IST)
तीन तलाक बिल पास होने पर मुस्लिम महिलाओं ने बांटी मिठाई, बताया ऐतिहासिक फैसला
तीन तलाक बिल पास होने पर मुस्लिम महिलाओं ने बांटी मिठाई, बताया ऐतिहासिक फैसला

देहरादून, जेएनएन। राज्यसभा में तीन तलाक बिल पास होने के बाद मुस्लिम महिलाओं ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी जताई और मोदी सरकार के इस फैसले को ऐतिहासिक करार दिया। माजरा में देर सायं भाजपा प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स के कैंप कार्यालय पर मुस्लिम महिलाएं एकत्रित हुईं। उन्होंने मोदी सरकार के इस फैसले की सराहना की और एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी जताई। उनका कहना था कि पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत 22 मुल्कों में तीन तलाक बैन है। अब भारत में भी यह बिल पास होने से मुस्लिम महिलाएं भी सशक्त होंगी। 

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मुस्लिम महिलाओं के मुताबिक, अब मामूली विवादों में मुस्लिम महिलाओं के परिवार नहीं टूटेंगे। वहीं तलाक देने पर एफआइआर और सजा से महिलाओं का उत्पीडऩ करने वाली पुरुष प्रधान मानसिकता पर भी नकेल कसेगी। उबैदा खातून ने कहा कि मोदी सरकार का मुस्लिम महिलाओं के हित में महत्वपूर्ण, ऐतिहासिक और सराहनीय फैसला है। इस बिल में शौहर के खिलाफ मुकदमा, सजा से पत्नी का उत्पीडऩ थमेगा। 

अमरीन ने बताया कि सऊदी अरब में तीन तलाक पर 100 कोड़े की सजा है। अब भारत में भी सजा का प्रावधान होने से मुस्लिम महिलाएं सशक्त होंगीं। अब व्हाट्सअप, लेटर, ईमेल के जरिए तीन तलाक देने पर सजा होगी तो शौहर के मिजाज भी ठिकाने पर रहेंगे। 

तीन तलाक बिल: महिलाओं के नए युग का आगाज 

तीन तलाक बिल राज्य सभा में भी पारित हो जाने पर दून की मुस्लिम महिलाओं ने खुशी व्यक्त की है। जागरूक वर्ग की महिलाएं इसे नए युग का आगाज बता रही हैं। उनका मानना है कि कानून के रूप में तीन तलाक पर संरक्षण मिलने से महिलाएं और अधिकार संपन्न होंगी। 

मसूरी वन प्रभाग की प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ) कहकशां नसीम का कहना है कि मुस्लिम वर्ग की महिलाएं अब उत्पीड़न का शिकार नहीं हो पाएंगी। वह हक के साथ अपनी बात रख पाएंगी और उन्हें अब कानूनी संरक्षण मिलने की राह भी खुल गई है। क्योंकि अक्सर देखने में आता था कि तीन तलाक के डर से महिलाएं चुपचाप अत्याचार सहती रहती थीं। 

वहीं, उत्तराखंड बार काउंसिल की अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता रजिया बेग का कहना है कि सरकार का यह कदम देश की मुस्लिम महिलाओं के हित से सीधे तौर पर जुड़ा है। जो लोग तीन तलाक कानून के खिलाफ बोल रहे हैं या इसकी राह में रोड़े अटकाते रहे हैं, वह ये बताएं जब महिला को तलाक देकर सड़क पर छोड़ दिया जाता है, तब वह कहा रहते हैं। अब कम से कम तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में लाकर महिलाओं को इस तरह की स्थिति से नहीं गुजरना पड़ेगा। 

दूसरी तरफ अपना घर संस्था की अधीक्षक नाजिया कौसर मानती हैं कि रूढ़ीवादी ताकतों की वजह से तीन तलाक वर्ग विशेष की मुस्लिम महिलाओं के लिए लिए नासूर बन चुका था। इसकी मुखालफत करना समय की माग थी। क्योंकि तीन तलाक का दुरुपयोग होता था और महिलाओं की जिंदगी नर्क बन जाती थी। इस्लाम में कहीं भी तीन तलाक नहीं लिखा है। जिन महिलाओं को शरीयत की जानकारी नहीं होती, वे सबसे अधिक इसका शिकार हो रही थीं।

इसके अलावा उनका कहना है कि महिलाओं और बेटियों के संरक्षण के लिए ठोस कानून बनाने की जरूरत है। क्योंकि घुट-घुट कर जीना भी कोई उपाय नहीं है। होम्योपैथिक विभाग की पूर्व निदेशक नसरीन फातिमा भी इस बात से इत्तेफाक रखती हैं। 

उनका कहना है कि इस्लाम में कहीं भी तुरंत तीन तलाक की व्यवस्था नहीं है। घुसे में आकर में आकर तीन तलाक बोलकर रिश्ते को खत्म कर देना किस तरह चल में आया यह बड़ा सवाल बन गया था। खैर, तीन तलाक बिल पारित हो जाने के बाद कानून का भय जरूर ऐसे प्रकरणों में कमी लाएगा।

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