राहुल बाबा राजी, तो मौज में विधायक काजी निजामुद्दीन
उत्तराखंड में कांग्रेस के विधायक काजी निजामुददीन इन्हें सियासत विरासत में मिली है। वाकपटु तो हैं ही विधायी जानकारी के लिहाज से भी दिग्गजों पर भारी पड़ते हैं।
देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड में कांग्रेस के विधायक काजी निजामुद्दीन, इन्हें सियासत विरासत में मिली है। वाकपटु तो हैं ही, विधायी जानकारी के लिहाज से भी दिग्गजों पर भारी पड़ते हैं। विधायक भले ही उत्तराखंड के हैं, लेकिन इन दिनों अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में सचिव संगठन की भूमिका निभा रहे हैं। हाल तक राजस्थान के प्रदेश सहप्रभारी रहे हैं तो राज्यसभा चुनाव के लिए जयपुर में डेरा डाला। काजी को राहुल गांधी का करीबी समझा जाता है तो इनके राजस्थान पहुंचने के बाद सियासी गलियारों में जो चर्चाएं चलीं, उन्हें उत्तराखंड पहुंचते देर नहीं लगी। इनका लब्बोलुआब यह कि राजस्थान में राज्यसभा सीटों के चुनाव में पायलट कैंप को तवज्जो न मिलने की शिकायत के बाद काजी, राहुल गांधी के कुछ अन्य विश्वस्त नेताओं के साथ हालात संभालने राजस्थान गए। अब इसमें कितनी सच्चाई है, मालूम नहीं, मगर इससे उत्तराखंड में कांग्रेस के कुछ नेताओं में कसमसाहट जरूर नजर आ रही है।
भगत-भगत के फेर में मची हलचल
हाल ही में एक शाम अचानक सोशल मीडिया में तेजी से खबर वायरल हुई। इसके मुताबिक महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के आवास पर पहुंचे। हालांकि दोनों के रिश्ते बहुत पुराने हैं और कोश्यारी उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं लेकिन फिर भी कुछ अटपटा लगा। यह इसलिए, क्योंकि महाराष्ट्र, खासकर मुंबई में कोरोना के कोहराम के बीच भला कैसे और क्यों राज्यपाल उत्तराखंड आएंगे। फिर राज्यपाल का अपना प्रोटोकॉल होता है, अमूमन मुख्यमंत्री ही उनसे मुलाकात करते हैं। मीडिया में हलचल होनी ही थी, लेकिन जब असलियत सामने आई तो हर कोई दूसरे का मुंह तक रहा था। दरअसल, यह सब नाम के कारण हुआ। मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने। ब्रेकिंग न्यूज के फेर में बगैर नाम कन्फर्म किए चर्चा चला दी गई महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के देहरादून पहुंच मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र से मुलाकात की।
हरदा पहुंचे दून, छिना कई का सुकून
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत यूं तो राष्ट्रीय महासचिव होने के नाते कांग्रेस की केंद्र की राजनीति का हिस्सा हैं, लेकिन यह बात किसी से छिपी नहीं कि उनका दिल दिल्ली नहीं, देहरादून में ही रमता है। यह बात दीगर है कि सूबाई सियासत में सक्रियता उन्हीं की पार्टी के तमाम नेताओं को दखलंदाजी लगती है। तजुर्बेकार हैं तो अकसर तोल-मोल कर ऐसे वक्त जुबां खोलते हैं कि एक तीर से कई निशाने एक साथ सध जाएं। जब मार्च में देशभर में लॉकडाउन लागू हुआ, तब हरदा दिल्ली थे। तीन महीने वहीं रहना पड़ा। हालांकि तब भी सोशल मीडिया में खासे एक्टिव रहे लेकिन जैसे ही अनलॉक वन में रियायत मिली, तुरंत देहरादून में आमद दर्ज करा दी। आते ही सरकार को निशाने पर लेना शुरू कर दिया। वैसे उनकी अपनी पार्टी के कई नेता अब असहज दिख रहे हैं। यह तो तब, जबकि अभी हरदा 21 दिन होम क्वारंटाइन हैं।
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सादगी क्या होती है, कोई इनसे सीखे
सादा जीवन और उच्च विचार। उत्तराखंड के पुलिस प्रमुख अनिल रतूड़ी और शासन में अपर मुख्य सचिव उनकी पत्नी राधा रतूड़ी पर यह लोकोक्ति सटीक बैठती है। इस दंपती ने न सिर्फ अपने सरल-सहज व्यवहार के साथ ही सादगी को आत्मसात किया है, बल्कि विचारों की उच्च परंपरा के मानदंड स्थापित किए हैं। स्वजनों को इसके लिए प्रेरित किया है। एक बार फिर उन्होंने सादगी की मिसाल पेश की। मौजूदा दौर में जहां लोग अपने पुत्र-पुत्रियों के विवाह में शानो-शौकत का दिखावा करने से नहीं चूकते, वहीं इस दंपती ने सादगीपूर्ण ढंग से अपनी पुत्री का विवाह कर लोगों को संदेश दिया। न तो नाते-रिश्तेदारों का जमावड़ा न अफसरों, राजनेताओं व परिचितों का और न कोई समारोह। विवाह अत्यंत सूक्ष्म तरीके से संपन्न हुआ। ठीक है कि कोरोना संकट के चलते बंदिशें भी इसके पीछे रहीं, मगर रतूड़ी दंपती की सादगी का तो पहले से हर कोई मुरीद रहा है।
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