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    Mahatma Gandhi: पछवादून के खाराखेत में नमक कानून तोड़कर ब्रिटिश हुकूमत को दी थी चुनौती

    By Sumit KumarEdited By:
    Updated: Sat, 30 Jan 2021 06:40 AM (IST)

    Mahatma Gandhi उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून से महज 18 किमी दूर पछवादून का खाराखेत गांव गुमनामी की जिंदगी जी रहा है। देश की आजादी के 72 साल बाद भी इस गांव को वह पहचान नहीं मिल पाई जिसका वास्तव में वह हकदार था।

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    खाराखेत में नमक तोड़ो कानून स्थल पर बने गांधी स्तंभ तक पहुंचने के लिए 300 मीटर पैदल चलना पड़ता है।

    राजेश पंवार, विकासनगर:  Mahatma Gandhi उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून से महज 18 किमी दूर पछवादून का खाराखेत गांव गुमनामी की जिंदगी जी रहा है। देश की आजादी के 72 साल बाद भी इस गांव को वह पहचान नहीं मिल पाई, जिसका वास्तव में वह हकदार था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर वर्ष 1930 में आजादी के दीवानों ने खाराखेत में नमक कानून तोड़ा था।

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    यहां बने गांधी स्तंभ की देखरेख राम भरोसे है। ग्राम पंचायत के अलावा शायद ही किसी ओर ने इस ओर ध्यान दिया हो। यही वजह है कि खाराखेत में नमक तोड़ो कानून स्थल पर बने गांधी स्तंभ तक पहुंचने के लिए आज भी 300 मीटर पैदल चलना पड़ता है।

    20 अप्रैल 1930 को अखिल भारतीय नमक सत्याग्रह समिति के नेतृत्व में स्वयंसेवियों ने पछवादून के सहसपुर ब्लॉक स्थित खाराखेत गांव में एकत्र होकर नमक कानून को चुनौती दी थी। नमक तोड़ो आंदोलन में स्वतंत्रता सेनानी हुकम सिंह, अमर सिंह, रीठा सिंह , धनपति, रणवीर सिंह, कृष्ण दत्त वैद्य, नारायण दत्त, महावीर त्यागी, नरदेव शास्त्री, दाना सिंह , श्रीकृष्ण, नत्थूराम, ध्रुव सिंह, किशन लाल, गौतम चंद, चौधरी बिहारी, स्वामी विचारानंद, हुलास वर्मा, रामस्वरूप, नैन सिंह व किरण चंद की अहम भूमिका रही थी। इन सभी के नाम स्तंभ पर दर्ज हैं। 

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    ग्राम प्रधान सुमन के अनुसार खाराखेत में बने गांधी स्तंभ के पास नमकीन पानी का स्रोत आज भी मौजूद है। खाराखेत को सड़क सुविधा से जोड़ने के लिए करीब दो साल पहले पौंधा मोटर मार्ग से पांच किमी संपर्क मार्ग बनाया गया, लेकिन सड़क से गांधी स्तंभ तक पहुंचने को कोई संपर्क मार्ग नहीं है। जबकि, खाराखेत को मॉडल विलेज के रूप में विकसित किया जाना चाहिए था। इससे खाराखेत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलती। 

    आधारभूत सुविधाओं से वंचित खाराखेत

    खाराखेत गांव में आज भी आधारभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। यहां तक कि आसपास कोई अस्पताल भी नहीं है। ऐसी स्थिति में ग्रामीणों को आज भी गांव से करीब दस किमी दूर अपने प्रेमनगर व सहसपुर अस्पताल जाना पड़ता है। 

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