संयुक्त रोटेशन : 48 साल से कायम है आस्था का अटूट रिश्ता
चारधाम यात्रा से जुड़ी संयुक्त रोटेशन यातायात व्यवस्था समिति का जो बीते 48 सालों से यात्रा का पर्याय बन चुकी है।
ऋषिकेश, दुर्गा नौटियाल। समय के साथ हिमालय की प्रसिद्ध चारधाम यात्रा का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा है चारधाम यात्रा से जुड़ी संयुक्त रोटेशन यातायात व्यवस्था समिति का, जो बीते 48 सालों से यात्रा का पर्याय बन चुकी है। चारधाम यात्रा ही नहीं, गढ़वाल मंडल के तकरीबन सभी जिलों में परिवहन सेवाएं संचालित करने का जिम्मा भी इसी संस्था के कंधों पर है। बावजूद इसके संयुक्त रोटेशन को सरकारी तंत्र से कुछ भी हासिल नहीं हुआ, जबकि पहाड़ का परिवहन ही नहीं, आधे पहाड़ की आजीविका भी इस व्यवसाय पर निर्भर है।
गढ़वाल मंडल के प्रवेशद्वार ऋषिकेश में संयुक्त रोटेशन यातायात व्यवस्था समिति की स्थापना वर्ष 1971 में हुई थी। तब समिति से तीन परिवहन कंपनियां यातायात, जीएमओयू व टीजीएमओ शामिल थीं। शुरुआती दौर में संयुक्त रोटेशन के पास कुल 103 बसों का बेड़ा था। इसका जिम्मा संपूर्ण गढ़वाल मंडल में नियमित सेवाओं के साथ चारधाम यात्रा का संचालन करना भी था। पहाड़ में परिवहन का एकमात्र सशक्त साधन निजी परिवहन सेवा ही है। हालांकि, परिवहन विभाग ने भी कुछ क्षेत्रों में सेवाएं संचालित कीं, मगर यहां की आवश्यकता के लिहाज से यह नाकाफी ही साबित हुई। यही नहीं, कुछ जगह तो घाटे का सौदा ठहराते हुए परिवहन विभाग ने सेवाएं बंद ही कर दीं। ऐसे में संयुक्त रोटेशन ने नित नए आयाम स्थापित कर इस चुनौती का डटकर मुकाबला किया।
पिछले चार दशक के दौरान संयुक्त रोटेशन में कुल नौ परिवहन कंपनियां शामिल हो चुकी हैं और इसके पास बसों की संख्या भी 2500 पहुंच गई है। संस्था इसी बेड़े में से 60-40 के अनुपात में बसों का संचालन चारधाम यात्रा व लोकल रोटेशन में करती है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में संस्था कई झंझावतों से भी जूझ रही है। यात्रा काल में ट्रैवल एजेंटों की मनमानी और डग्गामार वाहनों ने इस व्यवसाय को खासा प्रभावित किया है। लेकिन, तमाम सरकारी और विभागीय प्रयास इस डग्गामारी को रोक पाने में असफल साबित हुए। यात्रा मार्गों पर चालक-परिचालकों के लिए कोई ठोस सुविधा मुहैया नहीं की गई है। कई महत्वपूर्ण पड़ावों पर तो पार्किंग व्यवस्था भी दुरुस्त नहीं है।
गढ़वाल मंडल की बात की जाए तो एक बड़ी आबादी इसी परिवहन और पर्यटन व्यवसाय से ताल्लुक रखती है। उसके लिए यह व्यवसाय मात्र नहीं, बल्कि रोटी जुटाने का भी साधन है। गढ़वाल मंडल के प्रवेशद्वार ऋषिकेश में तो लगभग 70 फीसद आबादी परिवहन और पर्यटन पर ही निर्भर है। ऐसे में इस व्यवसाय को पोषित करने के लिए सरकार को उचित कदम उठाने की जरूरत है।
पहले पांच-छह दिन में लौट जाती थी बसें
संयुक्त रोटेशन के गठन से लेकर नब्बे के दशक तक चारधाम यात्रा में संचालित होने वाली बसें स्टेज कैरिज के रूप में संचालित की होती थी। यानी ऋषिकेश से कोई बस एक धाम के यात्रियों को ही ले जाती थी। जबकि, उस धाम से दूसरे और फिर तीसरे-चौथे धाम के लिए यात्रियों को अलग-अलग बस लेकर जाती थीं। यानी एक बस महज पांच से छह दिन के भीतर यात्रा से लौट आती थी। मगर, 1991 से चारधाम यात्रा कांट्रेक्ट कैरिज में तब्दील हो चुकी है। यानी अब यात्रियों का दल ऋषिकेश से पूरी बस को एक धाम, दो धाम, तीन धाम या चारधाम के लिए बुक करता है। अब तो यात्री ऑनलाइन बुकिंग की व्यवस्था हो जाने से घर बैठे ही अपना यात्रा पैकेज बुक कराने लगे हैं।
चार वर्ष नहीं बना संयुक्त रोटेशन
संयुक्त रोटेशन की 1971 में स्थापना के बाद अब तक चार दौर ऐसे भी आए जब संयुक्त रोटेशन का गठन नहीं हो पाया। सबसे पहले वर्ष 1998 में संयुक्त रोटेशन का गठन नहीं हो पाया। वर्ष 2013 में भी कुछ कंपनियों ने संयुक्त रोटेशन से किनारा कर दिया। इस वर्ष यात्रा इतनी तेज हो गई कि प्रशासन के लिए व्यवस्था संभालना मुश्किल हो गया था। इसी बीच जून 2013 में आपदा आ गई और यात्रा ठप पड़ गई। इसके बाद वर्ष 2013, 2014 व 2015 में संयुक्त रोटेशन का गठन नहीं हो पाया। हालांकि, वर्ष 2016 से संयुक्त रोटेशन निरंतर जारी है।
इन कंपनियों से मिलकर बनता है संयुक्त रोटेशन
जीएमओयू, टीजीएमओ, यातायात, सीमांत सहकारी संघ, गढ़वाल मंडल कांट्रैक्ट कैरिज, रूपकुंड पर्यटन विकास संघ, दून वैली कांट्रेक्ट कैरिज, गढ़वाल मंडल बहुद्देश्यीय व यूजर्स रामनगर।
पहाड़ों में यातयात की लाइफलाइन है संयुक्त रोटेशन
सुधीर राय (पूर्व अध्यक्ष, संयुक्त रोटेशन) का कहना है कि संयुक्त रोटेशन चारधाम यात्रा समेत गढ़वाल मंडल के सभी जिलों में अपनी सेवाएं देता है। पहाड़ों में तो यातयात की लाइफलाइन ही संयुक्त रोटेशन है। इन 48 वर्षों में संयुक्त रोटेशन ने चारधाम यात्रा व लोकल परिवहन की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है और दिनोंदिन हमारा प्रयास यात्रियों को बेहतरीन सेवाएं देने का रहता है।
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