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जैमर से नहीं रोक सकते मोबाइल का इस्तेमाल, पढ़िए पूरी खबर

फोर जी में अपग्रेड सिम का नेटवर्क जाम करने में जैमर भी नाकाम है। इसलिए बार-बार मोबाइल मिलने और बजट मंजूर होने के बावजूद जेल में जैमर नहीं लगाया जा रहा है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 07 Nov 2019 06:55 PM (IST)Updated: Thu, 07 Nov 2019 06:55 PM (IST)
जैमर से नहीं रोक सकते मोबाइल का इस्तेमाल, पढ़िए पूरी खबर
जैमर से नहीं रोक सकते मोबाइल का इस्तेमाल, पढ़िए पूरी खबर

हरिद्वार, मेहताब आलम। अपराधों के खुलासों और बदमाशों की नाक में नकेल डालने में तकनीक का इस्तेमाल बखूबी हो रहा है। मोबाइल की कॉल डिटेल और लोकेशन का पता चलने से पुलिस का काम काफी आसान हो गया है, लेकिन जेल में तकनीक की मदद से मोबाइल का इस्तेमाल बंद करने में तकनीक ही अड़चन बन रही है। फोर जी में अपग्रेड सिम का नेटवर्क जाम करने में जैमर भी नाकाम है। इसलिए बार-बार मोबाइल मिलने और बजट मंजूर होने के बावजूद जेल में जैमर नहीं लगाया जा रहा है।

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जनपद हरिद्वार में जेल के भीतर मोबाइल चलाने की शुरुआत कुख्यात सुनील राठी ने रुड़की जेल से की थी। राठी मोबाइल के सहारे जेल से ही रंगदारी का पूरा उद्योग संचालित करता आ रहा है। राठी के बाद उसके गुर्गों ने भी जेल में मोबाइल थाम लिया। कुख्यात प्रवीण वाल्मीकि ने रोशनाबाद जेल में बैठे-बैठे तो 25 जनवरी 2015 को रुड़की नगर निगम के सफाई नायक बसंत की हत्या करा दी। पांच महीने पहले कुख्यात संजीव उर्फ जीवा के शूटर शाहरुख पठान व मुजाहिद से मोबाइल मिलने पर कैदियों और बंदी रक्षकों के बीच जमकर मारपीट भी हुई। पिछले साल एक कैदी ने मुख्यमंत्री के नाम अपना वीडियो बनाकर जेल से ही सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था। अब एक सप्ताह पहले फिर से रोशनाबाद जेल से भाजपा नेता के बेटे से 20 लाख रुपये की रंगदारी मांगने का मामला सामने आया है।

कुल मिलाकर जेल में बैठे-बैठे अपराधी पुलिस की नाक में दम कर रहे हैं। समय-समय पर यह सवाल उठता है कि जेल में आखिरकार जैमर क्यों नहीं लगाया जाता है। पिछले दिनों कैदियों और बंदी रक्षकों का विवाद होने पर तत्कालीन जिलाधिकारी दीपक रावत ने जैमर के लिए बजट की संस्तुति भी कर दी।

इसके बावजूद जैमर नहीं लगाया जा सका। इस बारे में आइजी जेल पीवीके प्रसाद का कहना है कि आज-कल सभी टेलीकॉम कंपनियों ने अपने सिम फोर जी में अपग्रेड कर दिए हैं और फोर जी सिम का नेटवर्क जैमर से नहीं रोका जा सकता है। इसलिए जैमर लगाकर मोबाइल पर रोक नहीं लग सकती है, इससे केवल बजट बर्बाद होगा। जेल में मोबाइल पूर्ण प्रतिबंधित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं।

सीसीटीवी के सामने क्यों नहीं होती मुलाकात

जेल में मोबाइल के अलावा कैदियों से मिलने-जुलने वाले भी उन तक खबरें पहुंचने का काम करते हैं। करीब एक साल पहले जेल में कुख्यातों की मिलाई पर सख्ती कर दी गई। आम कैदियों से मिलने वालों पर भी नजर रखी जा रही थी। कुख्यातों से मुलाकात के दिन तय कर खुफिया विभाग की मौजूदगी और सीसीटीवी कैमरे की नजर में मुलाकात कराई जाने लगी थी। उस दौरान जेल में बंद कुख्यातों का नेटवर्क कुछ कमजोर पड़ा था। लेकिन कुछ दिन से मुलाकात कैमरे के सामने नहीं कराई जा रही है। पुलिस व खुफिया की पकड़ भी ढीली पड़ गई है। नतीजतन जेल में फिर से गैर कानूनी गतिविधियां जोर पकड़ने लगी हैं।

मोबाइल चोर भी चला रहा था मोबाइल

जेल में खूंखार अपराधी व उनके गुर्गे ही नहीं, छोटे अपराधों में जेल जाने वाले छुटभैये अपराधी भी मोबाइल चलाते हैं। जेल में मोबाइल किस कदर आम है, आइजी जेल के निर्देश पर चले अभियान में इसकी पोल खुल गई। एक बंदी विक्रांत मलिक के पास से बरामद हुआ है। विक्रांत मोबाइल चोरी के मामले में जेल में बंद है। वह गैंग का लीडर बताया गया है।

पुलिस की चेकिंग में नहीं मिलते मोबाइल

जेल में मोबाइल मिलना कोई नई बात नहीं है, लेकिन जेल प्रशासन के अधिकारी मोबाइल चलने की बात कुबूल नहीं करते। हद तो यह है कि पुलिस व सीआइयू की चेकिंग में कभी मोबाइल नहीं मिले हैं। हर बार जेल की अपनी तलाशी में ही मोबाइल बरामद होते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि पुलिस व सीआइयू की चेकिंग से मोबाइल कहां गायब हो जाते हैं, या छिपा दिए जाते हैं। ताजा मामले में आईजी जेल ने मोबाइल मिलने की पुष्टि की, मगर जेल प्रशासन की ओर से देर शाम तक भी कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया गया। कुल मिलाकर जेल प्रशासन की भूमिका सवालों के घेरे में है। आइजी जेल ने जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई का दावा किया है।

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देहरादून से शिफ्ट हुआ है विक्रांत

तलाशी के दौरान दो मोबाइल फोन विक्रांत मलिक से मिले हैं। मूलरूप से शामली मुजफ्फरनगर का निवासी विक्रांत पहले देहरादून जेल में बंद था। कुछ दिन पहले ही उसे हरिद्वार जेल शिफ्ट किया गया है। तीन मोबाइल फोन अन्य कैदियों के पास मिले है।

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