देहरादून में अवैध बोरवेल की अब खुलेंगी परतें, सूचना आयोग ने गठित की जांच समिति
सूचना आयोग ने अवैध बोरवेल की पड़ताल के लिए जांच समिति गठित कर दी है। इस पांच सदस्यीय कमेटी का समन्वयक उपजिलाधिकारी सदर को बनाया है।
देहरादून, सुमन सेमवाल। भूजल जैसी अनमोल संपदा का अवैध दोहन रोकने की जिस पहल का साहस शासन-प्रशासन नहीं जुटा पाया, उसे सूचना आयोग ने कर दिखाया है। सूचना आयोग ने प्रकरण के व्यापक स्तर पर जनहित से जुड़ा होने पर अवैध बोरवेल/सबमर्सिबल की पड़ताल के लिए जांच समिति गठित कर दी है। इस पांच सदस्यीय कमेटी का समन्वयक उपजिलाधिकारी सदर को बनाया है। साथ ही जिलाधिकारी देहरादून को निर्देश दिए गए हैं कि वह समय-समय पर कमेटी की कार्रवाई का परीक्षण करते रहें और जरूरत पड़ने पर उन्हें दिशा-निर्देश भी दें। जांच के लिए आयोग ने तीन माह का समय निर्धारित किया है।
सोशल एक्शन रिसर्च एंड डेवपलमेंट फाउंडेशन के सचिव अजय नारायण शर्मा ने दून में अनियंत्रित ढंग से भूजल का दोहन कर रहे बोरवेल आदि पर कार्रवाई को लेकर जिलाधिकारी से शिकायत की थी। इस पत्र पर क्या कार्रवाई की गई और अवैध बोरवेल की क्या स्थित है, यह जानने के लिए उन्होंने जिलाधिकारी व उपजिलाधिकारी कार्यालय से आरटीआइ में जानकारी मांगी थी। जो जवाब मिला, उससे यह स्पष्ट हो पाया कि प्रशासन ने इतने अहम विषय पर कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। इसके बाद शिकायतकर्ता को मजबूरन सूचना आयोग में अपील करनी पड़ी।
प्रकरण को लेकर दैनिक जागरण ने भी 20 मई के अंक में प्रमुखता से खबर प्रकाशित कर सवाल उठाए थे कि प्रशासन ही नहीं चाहता कि पानी का धंधा बंद हो। खबर में यह भी बताया गया था कि मामले में सूचना आयोग में अपील की सुनवाई होनी है। अब राज्य सूचना आयुक्त चंद्र सिंह नपलच्याल ने अपील पर सुनवाई करते हुए पाया कि सूचना विस्तृत स्वरूप में मांगी गई है और जांच के माध्यम से ही स्थिति को स्पष्ट किया जा सकता है। आयोग ने न सिर्फ एसडीएम सदर के नेतृत्व में जांच टीम गठित कर दी, बल्कि शिकायतकर्ता के पत्रों पर निर्णय लेने के लिए जिलाधिकारी को निर्देश दिए कि वह अपने स्तर पर कार्रवाई करें। जांच में किसी तरह का विलंब न हो, इसके लिए आदेश की प्रति राज्य सूचना आयुक्त ने सभी सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से भी भिजवा दी है।
जांच समिति का यह होगा स्वरूप
- समन्वयक-उपजिलाधिकारी सदर
- सदस्य-जिला समाज कल्याण अधिकारी
- सदस्य-अधिशासी अभियंता जल संस्थान
- सदस्य-पुलिस क्षेत्राधिकारी (पुलिस की ओर से नामित किया जाएगा)
- सदस्य-जिला शिक्षाधिकारी
इसलिए जरूरी है भूजल का अवैध दोहन रोकना
जिन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन किया जा रहा है, वहां भूजल स्तर सालाना 20 सेंटीमीटर की दर से नीचे सरक रहा है। दून और प्रदेश के अन्य मैदानी क्षेत्रों को भूजल संकट से बचाने के लिए केंद्रीय भूजल बोर्ड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व उद्योग विभाग को पत्र लिख चुका है। साथ ही संबंधित जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर भविष्य में भूजल संकट के खतरे के प्रति आगाह किया जा चुका है। इसका कितना असर अधिकारियों पर पड़ा, यह सब दैनिक जागरण पूर्व में भी बता चुका है। हालांकि, अब सूचना आयोग के जांच टीम गठित करने के बाद उम्मीद जगी है कि न सिर्फ अवैध रूप से भूजल दोहन की तस्वीर साफ होगी, बल्कि उन पर कार्रवाई भी की जा सकेगी।
एसडीएम को कार्रवाई का अधिकार, फिर भी आंखें मूंदी
कुमाऊं और गढ़वाल (संग्रह, संचय एवं वितरण) अधिनियम-1975 की धारा 06 में उल्लेखित प्रावधानों के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति उत्तर प्रदेश जल संभरण और सीवर अध्यादेश 1975Ó के अधीन परगनाधिकारी (उपजिलाधिकारी) की अनुमति के बिना किसी भी जल स्रोत से पानी नहीं निकाल सकेगा। इससे स्पष्ट है कि प्रशासन को ही अवैध बोरवेल पर कार्रवाई का अधिकार है। इसके बाद भी प्रशासन की ओर से कार्रवाई न करना व्यवस्था पर गंभीर सवाल भी खड़े करता है।
प्रशासन को नहीं पता कितना भूजल चूस रहे अवैध बोरवेल
जिला प्रशासन को इस बात की भी जानकारी नहीं है कि अवैध बोरवेल कितना भूजल चूस रहे हैं और उससे भविष्य में क्या असर पड़ सकता है। क्योंकि प्रशासन ने तमाम स्तर पर प्रकरण के सामने आने के बाद भी कार्रवाई की जहमत नहीं उठाई। दूसरी तरफ प्रेमनगर क्षेत्र से विकासनगर के बीच में कई अवैध बोरवेल पकड़े जा चुके हैं और इसके बाद भी प्रशासन मौन साधे बैठा है।
ये अवैध बोरवेल/नलकूप आ चुके सामने
- क्षेत्र, संख्या
- प्रेमनगर, 02
- कंडोली, 01
- सुद्धोवाला, 03
- कोल्हूपानी, 03
ये निचोड़ रहे अवैध रूप से भूजल
ऑटोमोबाइल वर्कशॉप, कार/टू व्हीलर वाशिंग सेंटर, निजी टैंकर संचालक, बड़ी आवासीय परियोजना, कमर्शियल कॉम्प्लेक्स, बड़े शिक्षण संस्थान, होटल आदि।
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