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    लोहा काट दुश्मन से लोहा लेने को तैयार बिहार का बांका, ऐसे तय किया कारखाने से अफसर बनने तक का सफर

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Sun, 13 Dec 2020 01:52 PM (IST)

    IMA Passing Our Parade जीवन में संघर्ष से ही सफलता की इबारत लिखी जाती है। हालात कितने भी जटिल हों हौसला और जनून आपको मंजिल तक पहुंचा ही देता है। यही साबित कर दिखाया बिहार के एक छोटे से गांव के बालबांका तिवारी ने।

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    लोहा काट दुश्मन से लोहा लेने को तैयार बिहार का बांका।

    आयुष शर्मा, देहरादून। IMA Passing Our Parade जीवन में संघर्ष से ही सफलता की इबारत लिखी जाती है। हालात कितने भी जटिल हों, हौसला और जनून आपको मंजिल तक पहुंचा ही देता है। यही साबित कर दिखाया बिहार के एक छोटे से गांव के बालबांका तिवारी ने। भारतीय सैन्य अकादमी से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वह सेना की मुख्यधारा में शामिल हो गए। हालांकि मंजिल तक पहुंचने के लिए उन्हें लोहे के कारखाने में मजदूरी तक करनी पड़ी और सेना में बतौर जवान भर्ती होकर अफसर बनने का सपना साकार किया।

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    बिहार के जिला भोजपुर के संदुरपुर बरजा गांव के बालबांका तिवारी एक गरीब किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। परिवार खेती-बाड़ी के सहारे है। छोटी उम्र से ही घर के कामों में हाथ बंटाने के साथ उन्होंने दसवीं तक की पढ़ाई गांव के ही हाई स्कूल से पास की। बालबांका बताते हैं कि वर्ष 2008 में दसवीं में वह अपने स्कूल के टॉपर थे। बावजूद इसके पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा। वजह, यह कि परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उनकी पढ़ाई का खर्च उठा सके। ऐसे में बांका अपने एक रिश्तेदार के पास राउरकेला (उड़ीसा) चले गए। 

    यहां उन्होंने सरकारी इंटर कॉलेज में दाखिला लेने के साथ ही लोहे की फैक्ट्री में काम करना शुरू किया। लोहा काटने से लेकर लोहा गलाने का काम करना होता था। करीब सात माह काम करने के बाद वह एक नमकीन की फैक्ट्री में चले गए। यहां भी उन्हें सेल्समैन के तौर पर घर-घर और दुकानों में जाकर नमकीन बेचनी पड़ी। वर्ष 2011 में राउरकेला के कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई के साथ ट्यूशन देना शुरू कर दिया। पैसा अच्छा था तो नमकीन फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी। बालबांका बताते हैं कि वर्ष 2012 में वह सेना में बतौर जवान भर्ती हो गए और फिर आर्मी कैडेट कॉलेज (एसीसी) में प्रवेश की तैयारी की। एसीसी के जरिये अफसर बनने का सपना पूरा किया।

    पीओपी में पहली दफा बेटी से मिले

    शनिवार को पीओपी के दौरान बालबांका की खुशी को दोगुनी हो गई। एक ओर जहां वह सेना में अफसर बने तो दूसरी ओर पहली दफा अपनी बेटी से मिले। बालबांका ने बताया कि कोरोना संक्रमण के कारण वह लंबे समय से घर नहीं जा सके। तीन महीने पहले उनकी बेटी हुई, लेकिन उन्हें घर जाने का अवसर नहीं मिल पाया। अब पीओपी में परिवार से मिलना हुआ है।

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